ADVERTISEMENT

पंजाब में संकट: धार्मिक कट्टरता, विदेशी सहायता प्राप्त अवसरवाद और एक सामाजिक संकट का पहलू

March 22, 2023 12:25 pm | Updated 12:25 pm IST

केंद्र और राज्य सरकार को अलगाववाद के खिलाफ चौकस रहना चाहिए 

पंजाब में हिंसक अलगाववादियों के खिलाफ पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई देर से ही सही लेकिन एक दुरुस्त कदम है। हाल के वर्षों में राज्य में धार्मिक कट्टरता ने एक बार फिर से अपना बदसूरत चेहरा दिखाना शुरू कर दिया है और केंद्रीय मंत्रियों सहित राज्य के अधिकारियों के खिलाफ हिंसा के खुले आह्वान और धमकियों के बीच हाल के महीनों में स्थितियां नियंत्रण से बाहर जाती दिख रही हैं। पिछले 23 फरवरी को, एक भीड़ द्वारा एक पुलिस थाने पर धावा बोलकर संदिग्धों को मुक्त करा लिए जाने की घटना ने कानून और व्यवस्था को पूरी तरह से चरमरा दिया था। अनुभवहीन आम आदमी पार्टी की सरकार के लिए यह चुनौती बेहद मुश्किल जान पड़ती है और ऐसी परिस्थिति में केंद्र एवं राज्य सरकार की ओर से अधिक स्पष्ट तालमेल और कार्रवाई की जरूरत है। वर्ष 1980 के दशक में पाकिस्तान समर्थित एक अलग खालिस्तान के लिए चले हिंसक अभियान ने इस राज्य को तहस - नहस कर दिया था और एक मौजूदा प्रधानमंत्री तथा सिख समुदाय को निशाने पर रखकर किए गए एक आक्रोश भरे नरसंहार में हजारों बेकसूर लोगों की जान ले ली थी। उस जख्म को फिर से हरा होने देने और सिख समुदाय या भारत को मुसीबत में डालने की इजाजत कतई नहीं दी जानी चाहिए। सिख एक बेहद गतिशील और उद्यमी कौम है, जो अब दुनिया भर में फैला हुआ है। लेकिन इन दिनों यह कौम आर्थिक और सामाजिक ठहराव की चपेट में आ रहा है। खेती एक संकट के दौर से गुजर रही है और नशीले पदार्थों का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है। ऐसे में उपद्रवी तत्व हिंसा भड़काने का मौका ढूढ़ रहे हैं।

एक नासूर को पनपने देने पर वह पूरे शरीर को बीमार कर देगा। धार्मिक कट्टरता, विदेशी सहायता प्राप्त अवसरवाद और एक सामाजिक संकट के मिश्रण से पंजाब में भड़कते इस संकट को और हवा मिल रही है। अलगाववाद के लिए यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में प्रवासी सिखों के एक वर्ग का जमावड़ा भी भारत के लिए एक चिंताजनक संकेत है। इस बीमारी को बढ़ने से रोकने के लिए केंद्र को पंजाब और विदेशी सरकारों के साथ मिलकर काम करना होगा। हिंसक प्रवृत्तियों को अपना फन उठाने से पहले ही कुचल देना होगा और नफरत के समर्थकों को इसकी कीमत चुकाने के लिए मजबूर करना होगा। साथ ही, जहरीले तत्वों को अलग-थलग करने के लिए व्यापक पैमाने पर सिख समुदाय के साथ संवाद का सचेत प्रयास करना होगा। दुनिया भर के लोगों और नागरिकों को यह बिल्कुल साफ संदेश दिया जाना चाहिए कि भारत एक बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक राष्ट्र है, जिसे अलगाववाद बर्दाश्त नहीं है या इसकी जरूरत नहीं है। केंद्र सरकार और पंजाब के किसानों के बीच भरोसे की कमी ने 2021 में कृषि क्षेत्र में सुधार की पेशकश करने वाले कानूनों को पटरी से उतार दिया था। हिंसक तत्वों के खिलाफ सख्ती और आम जनता में भरोसा जगाने की मिलीजुली कार्रवाई सरकार की बयानबाजियों और नीतियों के केंद्र में होना चाहिए। किसी भी सूरत में, किसी भी पक्ष की ओर से ऐसी बयानबाजी को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए जो अलगाव और भड़काने की वजह बने।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

This is a Premium article available exclusively to our subscribers. To read 250+ such premium articles every month
You have exhausted your free article limit.
Please support quality journalism.
You have exhausted your free article limit.
Please support quality journalism.
The Hindu operates by its editorial values to provide you quality journalism.
This is your last free article.

ADVERTISEMENT

ADVERTISEMENT