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खुला रुख: ऑस्ट्रेलियाई संसद द्वारा भारत के साथ व्यापार समझौते को मंजूरी

November 25, 2022 10:00 am | Updated 10:00 am IST

भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार समझौते पर मुहर अच्छी बात है, लेकिन भारत का प्रतिस्पर्धी बनना ज्यादा महत्वपूर्ण है

एक दशक से अधिक की अवधि में एक विकसित अर्थव्यवस्था के साथ हुए भारत के पहले बड़े मुक्त व्यापार समझौते यानी इस साल अप्रैल में ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए समझौते के पहले चरण के जल्द ही लागू हो जाने की संभावना है। इससे भारतीय सेवाओं और वस्तुओं की ऑस्ट्रेलियाई बाजार तक पहुंच आसान हो जाएगी। अपने पूर्ववर्ती और अब विपक्ष के नेता स्कॉट मॉरिसन द्वारा भारत के साथ आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (ईसीटीए) पर हस्ताक्षर किए जाने के एक महीने बाद सत्ता संभालने वाले प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीस के प्रशासन ने ऑस्ट्रेलियाई संसद से इस समझौते पर मुहर लगवाने में कामयाबी हासिल की। इस तरह, भारत-ऑस्ट्रेलिया साझेदारी को कैनबरा में व्यापक और द्विदलीय समर्थन प्राप्त हुआ है। खासकर उस स्थिति में, जब ऑस्ट्रेलिया विशेष रूप से चीन द्वारा ‘व्यापार का शस्त्रीकरण’ किए जाने से परेशान है। इस साझेदारी ने निश्चित रूप से भारत के अधिक भरोसेमंद भागीदार होने संबंधी भावना को जगाने में काफी मदद की है। दोनों देश जहां पहले से ही हाल ही में गठित चार-राष्ट्रों वाले क्वाड, जोकि त्रिपक्षीय आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी एक सुदृढ़ पहल है और इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फोरम (आईपीईएफ) जैसे वैश्विक गुटों का हिस्सा हैं, वहीं यह द्विपक्षीय व्यापार समझौता घिसी-पिटी आपूर्ति श्रृंखलाओं से हटकर ‘चाइना प्लस वन’ की रणनीति की ओर बढ़ रही दुनिया के सामने भारत की साख के संदर्भ में एक मजबूत सकारात्मक संकेत है। विभिन्न व्यापारिक साझेदारों, जिनमें से कुछ भारत के साथ इसी किस्म के समझौते पर बातचीत कर रहे हैं, की निगाहें भी इन दोनों देशों के बीच एक अपेक्षाकृत अधिक व्यापक संधि को मजबूत करने की दिशा में अगले चरण की बातचीत की रूपरेखा पर जमीं हैं।

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भारत को उम्मीद है कि अगले पांच वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार 31 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मौजूदा स्तर से बढ़कर लगभग 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा। इस बढ़ोतरी में भारतीय निर्यात की हिस्सेदारी आधी होगी। इससे श्रम प्रधान क्षेत्रों में एक लाख नए रोजगार सृजित होंगे। कुल 98.3 फीसदी ऑस्ट्रेलियाई टैरिफ लाइनों पर इस समझौते के लागू होने वाले दिन से मिलने वाले शून्य शुल्क के लाभ को पांच साल के भीतर सभी भारतीय उत्पादों तक बढ़ा

दिया जाएगा। बदले में, ऑस्ट्रेलिया को भारत को किए जाने वाले उसके 90 फीसदी निर्यात (मूल्य के संदर्भ में) पर शून्य शुल्क लाभ हासिल होगा। इसके लदान (शिपमेंट) में कोयला, धातु और ऊन जैसे कच्चे माल के वर्चस्व होने का सीधा मतलब भारतीय फर्मों के लिए सस्ता इनपुट होगा। भारतीय रसोइयों एवं योग प्रशिक्षकों के लिए वार्षिक वीजा कोटा तथा भारतीय छात्रों के लिए अध्ययन के बाद कामकाज के लिए वीजा की व्यवस्था और ऑस्ट्रेलिया द्वारा एक दोहरे कराधान से बचाव संबंधी समझौते को मंजूरी से द्विपक्षीय संबंध और अधिक मजबूत होंगे। दोहरे कराधान से बचाव संबंधी समझौते से भारतीय आईटी फार्मों को एक वर्ष में लाखों डॉलर की बचत होने की उम्मीद है। अब जबकि भारत यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ और कनाडा के साथ व्यापारिक समझौतों को अंजाम देने के करीब है, एक उद्योग-स्तरीय साझेदारी की परिकल्पना करने वाला ऑस्ट्रेलिया के साथ शराब आयात संबंधी प्रावधान अन्य देशों के लिए एक नमूना बन सकता है। यहां यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि व्यापार समझौते नए दरवाजे खोलते जरूर हैं, लेकिन इनका स्वचालित अर्थ उच्च निर्यात या बेहतर व्यापार संतुलन नहीं होता है जैसाकि आसियान और जापान के साथ भारत के पिछले समझौतों के मामले में साफ हुआ है। भारत की समग्र वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बेहतर करने का कोई शॉर्टकट या आसान विकल्प उपलब्ध नहीं है।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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