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डावांडोल लोकतंत्रः इमरान खान की जान पर हमला

Updated - November 07, 2022 01:11 pm IST

Published - November 07, 2022 12:20 pm IST

जल्द चुनाव कराना ही पाकिस्तान के लिए इकलौता सही रास्ता है

पाकिस्तानी राजनीति की आदतन उथल-पुथल बीते हफ्ते तब खतरनाक मोड़ पर पहुंच गई, जब सात महीने पहले सत्ता से बेदखल किए गए पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर जानलेवा हमला किया गया। हमलावर ने उन पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई। श्री खान बच तो गए, लेकिन उनके पैर में गोली लग गई। इस घटना के एक दिन बाद श्री खान ने सरकार और सेना पर उनकी हत्या की साचिश रचने का आरोप लगया। श्री खान ने इससे पहले अपनी तुलना पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो से की थी। श्री भुट्टो को 1979 में फांसी दे दी गई थी। उन्होंने तुलना में कहा कि उनकी तरह ही वे भी एक लोकप्रिय नेता हैं और उन्हें हासिल जनादेश में भी सैन्य प्रतिष्ठान अड़ंगा डाल रहा है। उन्होंने बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान का भी उदाहरण दिया। प्रधानमंत्री शरीफ और सेना ने श्री खान के आरोपों को खारिज कर दिया। हालांकि श्री खान की ओर से पैदा हो रही चुनौतियों को खारिज करना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है। अप्रैल में संसद में विश्वासमत साबित करने में नाकाम रहने के बाद, उन्हें पद छोड़ने पर मजबूर किया गया। सभी अदालती अपीलों में भी उन्हें हार मिली, लेकिन तबसे उन्होंने सड़क का रास्ता अख्तियार कर लिया है। वे जल्द से जल्द आम चुनाव की मांग कर रहे हैं। वह राजनीति में सेना की भूमिका पर काफी मुखर हैं। उन्होंने “डर्टी हैरी” पर पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के समर्थकों को कैद करने और प्रताड़ित करने का आरोप लगाने के साथ-साथ, इस महीने रिटायर होने वाले सेना प्रमुख जनरल बाजवा के इस बयान का भी मजाक उड़ाया कि सेना अपनी “तटस्थ” भूमिका बरकरार रखेगी। उन्हें इन सबका खामियाजा भी भुगतना पड़ा है। सितंबर में उच्च न्यायालय पर उंगली उठाने के लिए उन पर अदालत की अवमानना का मुकदमा चला। हालांकि उनके ऊपर से आंतकवाद के आरोप हटा लिए गए हैं, लेकिन सरकारी अधिकारियों पर मुकदमा ठोकने की धमकी देने के आरोप में उन पर आपराधिक मामले अब भी चल रहे हैं। अक्टूबर में, चुनाव आयोग ने उन्हें अघोषित आधिकारिक उपहारों से जुड़े एक मामले में दोषी ठहराया और उन्हें सार्वजनिक पद पर बैठने से अयोग्य घोषित कर दिया। न्यायपालिका

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और सशस्त्र बलों को बदनाम करने के मामले में उनकी संसदीय सीट पर भी कानून का शिकंजा कसता जा रहा है।

पहले से ही विनाशकारी बाढ़, अफगानिस्तान की ओर से सुरक्षा संकट, बढ़ते आर्थिक संकट और खराब संबंध की वजह से भारत द्वारा जरूरी व्यापारिक राजस्व रोके जाने के संकटों से चौतरफा घिरी शरीफ सरकार के सामने बेहद मुश्किल घड़ी में श्री खान की चुनौती खड़ी हुई है। लगातार विदेशी दौरे करने में मशगूल श्री शरीफ को घरेलू हालात पर भी ध्यान देना चाहिए और अगर उन्हें अपनी साख मजबूत करनी है, तो श्री खान पर हुए हमलों की ठोस जांच करानी चाहिए। कई नाकामयाबियां झेलने के बावजूद श्री खान की लोकप्रियता बरकरार है। बीते महीने आठ में से छह उपचुनावों में उन्हें जीत हासिल हुई। उनकी हत्या की इस कोशिश के बाद, पीटीआई के कार्यकर्ताओं ने रावलपिंडी, पेशावर, क्वेटा, और कराची में विरोध जुलूस निकाला। अगर गतिरोध ऐसे ही जारी रहा, तो सरकार के लिए कानून-व्यवस्था बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती साबित होगी। वैसी स्थिति में लोकतंत्र की कमी से जूझ रहे इस देश में जल्द से जल्द चुनाव कराना ही इकलौता सही विकल्प साबित होगा।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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