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एक बेरहम बढ़ोतरी: छोटी बचत खातों पर मिलने वाले ब्याज दरों का मामला

October 27, 2022 11:12 am | Updated 11:12 am IST

अस्थिर मुद्रास्फीति के बीच, छोटी बचतों पर मिलने वाले ब्याज की दरों को और बेहतर रखना चाहिए था

सरकार ने हाल ही में अक्टूबर से दिसंबर की चालू तिमाही के लिए कुछ छोटी बचतों पर मिलने वाले ब्याज (रिटर्न) में 0.1 से 0.3 फीसदी अंक की बढ़ोतरी की है। मगर मध्यम वर्ग के बीच लोकप्रिय पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ) और नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट जैसे निवेश के विकल्पों को बिसरा दिया गया। कागज पर, तुलनीय परिपक्वता के साथ सरकारी प्रतिभूतियों पर मिलने वाले प्रतिफल (यील्ड) पर 0 से 100 आधार अंक (एक आधार अंक 0.01 फीसदी के बराबर होता है) के प्रसार के साथ, निवेश के इन विकल्पों पर ब्याज (रिटर्न) को बाजार-निर्धारित आधार पर तय किया जाना होता है। लंबे समय तक इन दरों में कोई बदलाव नहीं होने के मद्देनजर, एक सरसरी नज़र में ही यह बिल्कुल साफ है कि ब्याज दर तय करने की इस परिपाटी का पालन नहीं किया गया है। मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के इरादे से इस साल ब्याज दरों में की गई बढ़ोतरी के बाद, सरकारी प्रतिभूतियों का प्रतिफल (यील्ड) बढ़ रहा है। इस महीने, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा कि चालू तिमाही में विभिन्न बचत योजनाओं पर दी जाने वाली ब्याज दरें फॉर्मूला-अंतर्निहित दरों से 44 से लेकर 77 आधार अंक तक नीचे हैं। मिसाल के तौर पर, पीपीएफ पर इस तिमाही में 7.1 फीसदी के बजाय 7.72 फीसदी की दर से ब्याज मिलनी चाहिए थी। यह गौरतलब है कि केंद्रीय बैंक, जो आमतौर पर हर महीने या दो महीने में फॉर्मूला-आधारित छोटी बचत दरों को प्रकाशित करता है, ने इन दरों के बारे में मई से लेकर सितंबर तक बिल्कुल चुप्पी साधे रखी थी। हालांकि, अगस्त में इतना जरूर कहा गया था कि मौजूदा दरों और फॉर्मूला-आधारित दरों के बीच का प्रसार ‘अधिकांश बचत योजनाओं के लिए नकारात्मक’ हो गया है।

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इस साल जनवरी से लगातार छह फीसदी से अधिक की मुद्रास्फीति से जूझ रहे और पिछले कुछ महीनों में सात फीसदी से अधिक की महंगाई झेलने वाले परिवारों में उत्साह भरने के लिहाज से यह मामूली बढ़ोतरी नाकाफी है। यहां यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि पिछले 27 महीनों में - अप्रैल 2020 में लागू की गई सभी बचत योजनाओं में 0.5 और 1.4 प्रतिशत अंकों की भारी कटौती के बाद - इन योजनाओं की ब्याज दरों में यह पहला बदलाव था। यह हकीकत कि

राजनीतिक नफा - नुकसान अभी भी छोटे बचतकर्ताओं को मिलने वाले फायदों का पैमाना निर्धारित करते हैं, इसका अंदाजा हाल के उन कुछ मौकों से लगाया जा सकता है जब ब्याज दरों में बदलाव किए गए या फिर उन बदलावों को वापस ले लिया गया। पिछली बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जनवरी 2019 में की गई थी। मार्च 2021 में, सरकार ने 0.4 फीसदी से 1.1 फीसदी तक की एक और कटौती की घोषणा की थी। लेकिन, पांच राज्यों में चल रहे चुनाव अभियान के बीच ही एक ‘चूक’ का हवाला देते हुए कटौती के उस फैसले को रातोंरात वापस ले लिया गया था। हालांकि, आगामी चुनावों के मद्देनजर मतदाताओं के लिए एक प्रतीकात्मक कदम के तौर पर ही सही, छोटी बचतों के ब्याज दरों में इस ताजा बदलाव से कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है। जैसाकि भारतीय रिजर्व बैंक के शीर्ष अधिकारियों ने पहले चेतावनी दी है कि अगर आम लोग, जो कि सबसे बड़े ऋणदाता हैं, अपनी बचत को ऐसे निश्चित आय के साधनों और बैंकों में रखना बंद कर दें तो नकारात्मक रिटर्न का अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर होगा। छोटी बचतों में मुद्रास्फीति द्वारा लगाई जा रही सेंध पर लगाम लगाने के लिए अगली तिमाही में एक उचित एवं बेहतर ब्याज दर तय किया जाना चाहिए।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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