भारत दुनिया की सबसे बड़ी प्रवासी आबादी वाला देश है। करीब 1.35 करोड़ अनिवासी भारतीय दुनिया भर में फैले हुए हैं। इनमें से कई अल्प अवधि वाले कार्य के लिए देश छोड़ते हैं और अपने कुछ अधिकारों का प्रयोग करने से वंचित रह जाते हैं। मसलन, भारत के विधानसभा या संसदीय चुनावों में अपना मतदान करना। फिलहाल, भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) नामांकित प्रवासी नागरिकों को उस निर्वाचन क्षेत्र में मतदान केंद्र पर व्यक्तिगत रूप से मतदान करने की अनुमति देता है जहां वह व्यक्ति प्रवासी मतदाता के रूप में पंजीकृत है। व्यक्तिगत रूप से मतदान करने की बाध्यता और लागत ने प्रवासी नागरिकों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने की इच्छा को हतोत्साहित करने के लिए मजबूर किया है। इसकी पुष्टि 2019 के लोकसभा चुनाव में ऐसे मतदाताओं से जुड़े तथ्यों से होती है – तब कुल 99,844 पंजीकृत प्रवासी मतदाताओं में से 25,606 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। वर्ष 2014 में, प्रवासी मतदाताओं के मताधिकार को संभव बनाने के तरीकों का पता लगाने के लिए ईसीआई द्वारा गठित एक समिति ने यह राय दी थी कि प्रॉक्सी वोटिंग सबसे व्यवहारिक विकल्प है। हालांकि, कुछ राजनीतिक दलों ने इस विचार पर ऐतराज जताया था। इस विकल्प को संभव बनाने के लिए 16वीं लोकसभा (2014-19) में एक विधेयक पारित किया गया था, लेकिन वह कालातीत /व्यपगत हो गया। वर्ष 2020 में, ईसीआई ने अनिवासी भारतीयों को पहले से ही सैन्यकर्मी मतदाताओं द्वारा इस्तेमाल की जा रही प्रणाली के जैसी ही प्रक्रिया से डाक मतपत्रों के जरिए मतदान करने की इजाजत देने के लिए सरकार से संपर्क किया। सैन्यकर्मी मतदाताओं द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रणाली यानी इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम (ईटीपीबीएस) डाउनलोड किए गए ईटीपीबी पर अपना मत दर्ज करने और उसे संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाची पदाधिकारी को भेजने की सुविधा देता है।
पहली नजर में, प्रवासी भारतीयों को डाक मतपत्र के इस्तेमाल की इजाजत देना एक अच्छा कदम जान पड़ता है। अलबत्ता, इससे दूतावास या कांसुलर अधिकारियों पर बोझ बढ़ जाएगा।
प्रॉक्सी नियुक्त करने के बरक्स मतदान का यह तरीका कहीं ज्यादा भरोसेमंद है। इसकी इजाजत वर्तमान में सैन्यकर्मियों को है, जो प्रवासी भारतीयों के उलट प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में सीमित संख्या में हैं। कुछ राज्यों में प्रवासी भारतीय वहां का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण मतदाता वर्ग साबित हो सकते हैं। ईसीआई द्वारा आयोजित 2014 की चर्चा में, कुछ राजनीतिक दलों ने यह सवाल उठाया था कि क्या प्रवासी भारतीयों को वैसी सुविधा दी जाएगी जिससे आंतरिक प्रवासी श्रमिक वंचित हैं। लेकिन, भारत के भीतर सफर करने की तुलना में विदेश से वापसी के सफर का अधिक खर्चीला होना प्रवासी भारतीयों को आंशिक रूप से इलेक्ट्रॉनिक पोस्टल बैलेटिंग सुविधा की इजाजत देने की एक वाजिब वजह है। कई लोकतांत्रिक देश अपने प्रवासी नागरिकों को इस विकल्प की अनुमति देते हैं। लेकिन, किसी भी देश को भारत जैसे विशाल तादाद की समस्या से रूबरू नहीं होना पड़ता है। प्रवासी भारतीयों को मतदान की सुविधा प्रदान करते समय एक बेहद महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या लंबी अवधि के प्रवासियों को भी अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने की इजाजत दी जानी चाहिए क्योंकि इससे मतदाताओं को उनके निवास के आधार पर एक विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्र तक सीमित करने का विचार निष्फल हो जाएगा। लिहाजा अगर पोस्टल बैलेट प्रणाली वाकई अपनायी जाती है, तो देश से बाहर बिताई गई अवधि के आधार पर ऐसे मतदाताओं की पात्रता की शर्तों के लिए स्पष्ट नियम बनाए जाने चाहिए।
This editorial has been translated from English, which can be read here.