उम्मीद का पड़ाव: नागा शांति वार्ता फिर से शुरू करने का एनएससीएन (आइएम) का फैसला

सशर्त होने के बावजूद, एनएससीएन (आईएम) की शांति वार्ता की मंशा गतिरोध को तोड़ती है

September 21, 2022 11:14 am | Updated 11:14 am IST

अगस्त 2015 में हुए फ्रेमवर्क समझौते को आधार बनाकर, विद्रोही समूह नागालिम राष्ट्रवादी समाजवादी परिषद (इसाक-मुइवा गुट) का केंद्र सरकार के साथ दोबारा सशर्त बातचीत शुरू करने का फैसला स्वागत योग्य है। अक्टूबर 2019 को शांति समझौते की समयसीमा के रूप में निर्धारित किया गया था, लेकिन उसके बाद से अब तक इस पर गतिरोध जारी है। ताजा फैसले से यह गतिरोध टूटता हुआ नजर आ रहा है। वार्ता फिर से शुरू होने की संभावना को पिछले हफ्ते तब बल मिला जब एनएससीएन (आईएम) और अन्य नागा समूहों ने नागा राष्ट्रीय राजनीतिक समूह (एनएनपीजी) के बैनर तले एक संयुक्त बयान जारी किया। इस बयान में “अविश्वास को दूर करने“ का संकल्प लिया गया और कहा गया कि वे समझौते की दिशा में “आगे बढ़ने के लिए वार्ता को लेकर प्रतिबद्ध“ हैं। राज्य के विधायकों और मंत्रियों के एक समूह ने एनएससीएन (आईएम) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी। यह एक ऐसी पहल रही जिसके नतीजे मिलते दिख रहे हैं। इन कोशिशों के बाद, अब बातचीत के लिए आगे बढ़ने का मंच तैयार हो गया है। यह एक ऐसी प्रक्रिया थी जिसे अक्टूबर 2019 से स्थगित कर दिया गया था। वर्ष 2015 में हुए फ्रेमवर्क समझौते के बाद क्या गलतियां हुईं और 1997 में दोनों पक्षों के बीच हुए ऐतिहासिक युद्धविराम समझौते के बाद किस-किस तरह की जटिलताएं बनी रहीं, इसकी केंद्र और एनएससीएन (आईएम) को समीक्षा करनी चाहिए।

व्यापक शांति समझौते की राह में एक बड़ी बाधा नागा विद्रोह का बिखरा हुआ स्वरूप और एनएससीएन (आईएम) के अलावा अलग-अलग समूहों से बात करने की केंद्र सरकार की मजबूरी रही है। हालांकि समग्र रूप से देखें, तो समय के साथ उग्रवाद काफी कमजोर हुआ है और इस स्थिति ने पिछले करार के आधार पर वार्ता की राह खोली है। दूसरा, एनएससीएन (आईएम) समेत अन्य नागा विद्रोहियों की वृहत्तर “नगालिम“ की मांग की जद में दूसरे राज्य भी आते हैं। इस पहलू ने वार्ता को और जटिल बना दिया। समझौते में इस बात को लेकर सतर्क रहना चाहिए कि देश के मौजूदा राज्यों की सीमाओं में कोई बदलाव न हो। ऐसा होने पर पूर्वोत्तर राज्यों में टकराव की आशंका बढ़ जाएगी, जहां पहले से ही अंतर-जातीय संबंध बेहद नाजुक है। एक तरफ़, केंद्र सरकार द्वारा किसी भी सूरत में करार कर लेने के रवैये और खासकर बातचीत की गुप्त प्रकृत्ति ने वार्ता में गतिरोध पैदा करने का काम किया। वहीं, अलग झंडा और अलग संविधान की एनएससीएन की जिद भरी मांग ने भी वार्ता में रोड़े अटकाए। पूर्व राज्यपाल और वार्ताकार आर.एन. रवि और एनएससीएन (आईएम) के बीच की तल्खी से भी मामला बिगड़ा। उपरोक्त मुद्दों पर जारी मतभेदों को सीधे नागा समूहों और सरकार के प्रतिनिधियों द्वारा सुलझाए जाने की जरूरत है। सिर्फ प्रचार के लिए समाधान का वादा करना ठीक नहीं है।

This editorial has been translated from English, which you can read here.

0 / 0
Sign in to unlock member-only benefits!
  • Access 10 free stories every month
  • Save stories to read later
  • Access to comment on every story
  • Sign-up/manage your newsletter subscriptions with a single click
  • Get notified by email for early access to discounts & offers on our products
Sign in

Comments

Comments have to be in English, and in full sentences. They cannot be abusive or personal. Please abide by our community guidelines for posting your comments.

We have migrated to a new commenting platform. If you are already a registered user of The Hindu and logged in, you may continue to engage with our articles. If you do not have an account please register and login to post comments. Users can access their older comments by logging into their accounts on Vuukle.