भारत के किसी राजनीतिक पार्टी के लिए एक दुर्लभ घटना के तौर पर शीर्ष पद के लिए प्रतियोगिता की वजह से सबका ध्यान कांग्रेस पर टिका हुआ है। इसी 17 अक्टूबर को करीब 8,000 नेता पार्टी के नए मुखिया के लिए वोट डालेंगे। पार्टी की बागडोर संभालने से राहुल गांधी के इनकार के बाद, गेंद इस दिशा में घूमी। श्री गांधी ने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी मां सोनिया गांधी अध्यक्ष पद पर नहीं बनी रह सकतीं और बहन प्रियंका गांधी वाड्रा चुनाव नहीं लड़ सकतीं। इससे, शीर्ष पद के लिए अपेक्षाकृत खुली प्रतियोगिता की राह खुली, जो आम तौर पर गांधी परिवार के किसी सदस्य की ओर से दावेदारी पेश करने के बाद उनके लिए आरक्षित होता था। श्री गांधी ने देश के दक्षिणी छोर से उत्तर की ओर पदयात्रा शुरू की है। उनकी भारत जोड़ो यात्रा अब तक जिन क्षेत्रों को गुजरी है, वहां लोगो के साथ जुड़ाव दिखा है। श्रीमती गांधी चाहती थीं कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चुनाव लड़ें। शुरू में वे सहमत भी थे। लेकिन राज्य में सत्ता के हस्तांतरण की कोशिशें अव्यवस्था पर जाकर खत्म हुईं। इससे श्री गहलोत की उम्मीदवारी भी खत्म हो गई। राजस्थान के विधायक चाहते हैं कि श्री गहलोत अपने पद पर बने रहें। राजस्थान प्रकरण को पार्टी ने बुरे अंदाज में संभाला। इससे पार्टी के एक दिग्गज वफादार की बुरी छवि बनी। इससे बचा जा सकता था।
दरअसल यह मुकाबला कांग्रेस में दूसरे सबसे महत्वपूर्ण पद के लिए है। यह स्पष्ट है कि श्री गांधी के पास ही पार्टी में अंतिम फैसला लेने का अधिकार होगा और निर्वाचित अध्यक्ष को संगठन चलाने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। भाजपा के पास पार्टी अध्यक्षों से ऊपर की हैसियत वाले नेता रहे हैं- एक समय पर ए. बी. वाजपेयी और एल. के. आडवाणी और इस समय नरेंद्र मोदी और अमित शाह। एक मान्य धारणा है कि गांधी परिवार शशि थरूर के खिलाफ एक उम्मीदवार- मल्लिकार्जुन खड़गे- के पक्ष में झुका हुआ है। इस धारणा को दूर करने की जरूरत है। पार्टी पर नेहरू-गांधी परिवार का नैतिक अधिकार, आंतरिक लड़ाइयों में इसकी तटस्थता और निष्पक्षता से उपजा है। उस अधिकार का इस्तेमाल अक्सर उन प्रतिनिधियों के जरिए किया जाता है जो कभी-कभी तटस्थता बनाए रखने में विफल रहे हैं। नवजोत सिंह सिद्धू की पदोन्नति और श्री गहलोत पर दबाव बनाने जैसे पंजाब और राजस्थान के हालिया प्रकरण ने परिवार के इस नैतिक अधिकार को कमजोर किया है। मध्यस्थ के बतौर तटस्थ होना अच्छी बात है। इसके अलावा, खुद को इस स्थिति में तटस्थ बनाए रखने की जरूरत की यह मांग है कि श्री गांधी लोकप्रिय नेताओं को पार्टी में मजबूती से उभरने में सक्षम बनाएं। श्री खड़गे या श्री थरूर में से जो भी सचमुच लोकप्रिय हैं, उसे जीत मिलनी चाहिए। श्री गांधी अगर सार्वजनिक रुप से यह ऐलान करते हैं कि परिवार का अपना कोई पसंदीदा उम्मीदवार नहीं है, तो इससे वे अपने अधिकार को और मजबूत बनाएंगे।
This editorial was translated from English, which can be read here.