अक्सर खेल प्रशासक नकारात्मक वजहों से सुर्खियों में होते हैं। बीते कुछ महीनों से भारत के खेल प्रशासक लगातार खबरों में रहे हैं। शायद ही कोई दिन ऐसा बीता है जब अदालत ने उनमें से किसी की खिंचाई न की हो, किसी को जबरन इस्तीफा न देना पड़ा हो या किसी और ने उस पद के लिए अपनी दावेदारी न पेश की हो। सबसे ताजा मामले में जिस खेल प्रशासक का नाम सुर्खियों में आया, वे हैं- अनिल खन्ना। बुधवार को उन्होंने भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) के कार्यवाहक अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया। जुलाई में नरिंदर बत्रा के मजबूरन पद से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने पदभार ग्रहण किया था। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने स्पष्ट कर दिया है कि वह आईओए के किसी भी कार्यवाहक/अंतरिम अध्यक्ष को मान्यता नहीं देगी। आईओसी इस बात से खुश नहीं है कि आईओए में काफी समय से लंबित चुनाव नहीं हुए हैं। इस बात को लेकर उसने भारत को गंभीर नतीजे भुगतने की धमकी भी दी। दिसंबर तक अगर चुनाव नहीं होते हैं, तो आईओसी भारत पर प्रतिबंध लगा सकती है। अगर ऐसा होता है, तो भारतीय एथलीट ओलंपिक समेत कई महत्वपूर्ण आयोजनों में देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाएंगे और भारत को आईओसी से फंड नहीं मिलेगा। सिर्फ एक महीने पहले, गोकुलम केरला फ़ुटबॉल टीम को पता चल चुका है कि ऐसे प्रतिबंध लागू के क्या मायने होते हैं। उज्बेकिस्तान में एफसी महिला क्लब चैंपियनशिप में हिस्सा लेने पहुंची खिलाड़ियों को वहां से उल्टे पांव लौटना पड़ा था। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि विश्व फुटबॉल नियंत्रक निकाय फीफा ने अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) पर प्रतिबंध लगा दिया था।
उसके बाद प्रतिबंध हटा लिया गया और एआईएफएफ ने भी चुनाव करवा लिए। लेकिन, हॉकी और टेबल टेनिस जैसे और भी खेल हैं, जो अदालतों द्वारा नियुक्त प्रशासकों की समितियों के जरिए संचालित हो रहे हैं। बहरहाल, भारतीय खेल प्रशासन की इस दुर्गति की मुख्य वजह 2011 में केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए भारत के राष्ट्रीय खेल विकास संहिता को अपनाने में हर खेल निकाय की हिचकिचाहट है। इस संहिता को नेक मंशा से तैयार किया गया था। इसमें प्रशासक के कार्यकाल और उम्र की सीमा तय कर दी गई थी, ताकि खेल संघों को चुनिंदा लोगों की जागीर होने से बचाया जा सके। ऐसे चुनिंदा लोगों में कई राजनेता थे। टोक्यो ओलंपिक, बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेल, थॉमस कप और शतरंज ओलंपियाड ने दिखाया कि भारत के पास सिर्फ क्रिकेट ही नहीं, बल्कि और भी खेलों में जगमगाते सितारे हैं। ऐसे समय में जब भारतीय खेल
जगत की प्रतिभा पहले से कहीं ज्यादा उभरकर सामने आ रही है, प्रशासन को अपने कार्यकलाप को ठीक करने की जरूरत है। पद पर बैठे लोगों को सम्मान के साथ ऐसे नए लोगों के लिए जगह छोड़नी चाहिए जिनके पास नई दृष्टि है। साथ ही, अहम प्रशासनिक पदों के लिए पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को मौका देना चाहिए।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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