मेघालय और असम की सीमा पर 22 नवंबर को हुई गोलीबारी में, मेघालय के पांच ग्रामीण और असम वन रक्षा विभाग के एक जवान की मौत हो गई, जबकि दो अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हैं। असम सरकार का कहना है कि यह घटना तब हुई जब उनके वन रक्षकों ने अवैध लकड़ी की तस्करी कर रहे एक ट्रक को रोकने की कोशिश की। जब ट्रक को रोका गया, तो वन कर्मियों को अज्ञात गुंडों ने घेर लिया गया और हिंसा शुरू कर दी। असम सरकार के मुताबिक वन रक्षाकर्मियों ने अपनी जान बचाने के लिए फायरिंग का सहारा लिया। मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा ने ट्विटर पर कहा कि असम पुलिस और वन रक्षकों ने मेघालय की सीमा में घुसकर “अकारण गोलीबारी शुरू की”। दोनों राज्यों के बयान अलग-अलग हैं और दोनों ने घटना की अलग-अलग जांच शुरू कर दी है, लेकिन पूर्वोत्तर में ऐसी घटनाओं की वजह बनने वाले अविश्वास और सतह के नीचे चलने वाले संघर्ष कहीं गहरे हैं। असम और मेघालय के बीच का सीमा विवाद पांच दशक पुराना है। सन् 1970 में असम से स्वायत्त क्षेत्र के रूप में अलग होने वाले मेघालय को 1972 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिला। मार्च में असम और मेघालय ने अपनी 884.9 किमी सीमा में कुल 12 ऐसी विवादित जगहों में से छह जगहों पर सीमा विवाद सुलझा लिया। जल्द ही अगले दौर की बातचीत होनी थी। हालांकि, ताजा झड़प इस समझौते में समायोजित की गई सीमा वाली जगह पर नहीं हुई। यह एक विवादित सीमा खंड पर घटित हुई।
असम से अलग होने वाले राज्यों के साथ उसका समय-समय पर सीमा विवाद रहा है। चाहे वह अरुणाचल प्रदेश हो, नागालैंड हो, मेघालय हो या फिर मिजोरम। पिछले साल, असम और मिजोरम की पुलिस आपस में भिड़ गई थी जिसमें असम के पांच लोग मारे गए। पूर्वोत्तर राज्यों में सीमाओं पर होने वाली झड़पों में, बीते वर्षों में दर्जनों लोग मारे गए हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने असम से उन पुराने विवादों को सुलझाने के लिए पहल करने को कहा था। इन राज्यों के नक्शे औपनिवेशिक काल में खींचे गए थे जिनमें स्थानीय लोगों के रहन-सहन के तौर-तरीकों की अनदेखी की गई। लोगों के शिकार, चारागार और खेती के मैदान, आधुनिक प्रशासनिक सीमाओं में बंट गए। नए राज्य बनने के बाद ये चिंताएं और गंभीर हो गईं। नागाओं की एकीकृत मातृभूमि की मांग, अब नागालैंड की सीमाओं के पार पहुंच गई है। यह दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद है
कि वे राज्य एक-दूसरे के साथ हिंसक झड़पों में शामिल हैं जो भारतीय संघ के हिस्सा हैं। पूर्वोत्तर के ज्यादातर राज्यों में अब भाजपा की सरकार है और इस क्षेत्र में सभी पुराने विवादों के व्यापक समाधान करने के लिए अभी उसके पास जरूरी माहौल है। समुदायों को विश्वास में लेना होगा और सीमाओं को समायोजित करना होगा। किसी भी सूरत में मानव-निर्मित इन रेखाओं को, आजीविका की खातिर आवाजाही करने वाले लोगों को रोकने की अनुमित नहीं दी जानी चाहिए।
This editorial has been translated from English, which can be read here.