हंगामे और अनिश्चितता के बीच कांग्रेस पार्टी ने अपने नए अध्यक्ष के चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा कर दी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता बगावत कर रहे हैं, मौजूदा अध्यक्ष सोनिया गांधी अपनी खराब सेहत से जूझ रही हैं और उनके बेटे राहुल गांधी कमान संभालने को राजी नहीं हैं। कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा स्वीकृत कार्यक्रम के मुताबिक, पार्टी 17 अक्टूबर को अपने अध्यक्ष का चुनाव करेगी। पार्टी एक मार्च की योजना भी बना रही है। कुल 150 दिनों में लगभग 3,500 किलोमीटर की दूरी तय करने वाला ‘भारत जोड़ो यात्रा’ नाम का यह मार्च 12 राज्यों और दो केंद्र - शासित प्रदेशों से होकर गुजरेगा और इसका नेतृत्व श्री गांधी करेंगे, जिनकी पार्टी में भविष्य की भूमिका अभी अस्पष्ट बनी हुई है। पार्टी 4 सितंबर को दिल्ली में महंगाई के खिलाफ एक रैली भी करने वाली है। निश्चित रूप से, गांधी परिवार असमंजस में है। अगर उनमें से कोई भी अध्यक्ष बनता है, तो इसका मजाक बनाया जाएगा और उनमें से कोई भी अगर कमान नहीं संभालता है, तो पार्टी के भीतर एक नया परिदृश्य बनेगा जिसके नतीजे अप्रत्याशित हो सकते हैं। अगर गांधी परिवार अध्यक्ष पद की दौड़ में किसी खास शख्स का समर्थन करता दिखता है, तो इससे पूरी चुनावी प्रक्रिया बेमानी होगी। इन सबके बावजूद, पार्टी और गांधी परिवार के लिए सबसे बढ़िया रास्ता हरसंभव तरीके से चुनाव प्रक्रिया को आगे बढ़ाना और इसका इस्तेमाल पार्टी में व्यापक बदलाव लाने के बारे में एक ईमानदार संवाद के लिए करना ही है। पार्टी अभी गर्त में है और सत्ता से बाहर रहने के समय को जैसे – तैसे काट लेने की उसकी पुरानी रणनीति इस बार काम नहीं आने वाली। कांग्रेस पार्टी एक चौराहे पर खड़ी है या बंद गली में, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वह अब क्या फैसला लेती है।
कांग्रेस किन बीमारियों से ग्रसित है इसका इशारा लंबे अरसे तक पार्टी में एक अहम शख्सियत रहे गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे के खत में मिलता है। इस खत में गरिमा और आभार की निहायत ही कमी है, लेकिन खुद श्री आजाद का करियर ही उनके द्वारा पार्टी के खिलाफ लगाए गए आरोपों की वैधता का सबूत है। कम लोकप्रिय होने और बिना किसी जवाबदेही के बावजूद वह पार्टी में एक अहम भाग्यविधाता बने रहे। कई बार केंद्रीय मंत्री रहे, एक बार जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री बने और पांच बार यानी कुल मिलाकर कुल 30 साल तक राज्यसभा के सदस्य रहे। राज्यसभा में इतनी लंबी पारी तो सिर्फ 11 लोगों ने ही खेली है। जब वह कहते हैं कि पार्टी एक मंडली द्वारा चलाई जा रही है, तो उन्हें यह अच्छे से पता है कि वह किस बारे में बात कर रहे हैं। दरअसल, नेताओं के वेश में जड़ से कटे प्रबंधकों ने यह सुनिश्चित किया कि जनाधार वाले नेताओं को अपमानित किया जाए और उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया जाए। ऐसे जनाधार वाले नेताओं की सूची लंबी है, जो कांग्रेस में नहीं रह पाए। इनमें ममता बनर्जी से लेकर शरद पवार और वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी के नाम शामिल हैं। श्री गांधी के राजनीतिक पटल पर आने से बहुत पहले से ही कांग्रेस पार्टी पर एक स्वयंभू कबीले ने कब्जा करना शुरू कर दिया था। कोई भी दूसरी पार्टी जनता को लामबंद करने और चुनाव जीतने में असमर्थ रहने वाले लोगों को कांग्रेस की तरह इस कदर फलने-फूलने नहीं देती। इस सांगठनिक चुनाव को पार्टी के आम कार्यकर्ताओं और जमीनी स्तर के नेताओं को संगठन में अपनी दावेदारी पेश करने और सत्ता के दलालों को उनकी औकात बताने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
This editorial has been translated from English which can be read here.