एक व्हिसल-ब्लोअर का भारत सरकार द्वारा ट्विटर को अपने एजेंट को काम पर रखने के लिए मजबूर करने और इस तरह उस एजेंट का इस प्लेटफॉर्म के उपयोगकर्ताओं के डेटा तक पहुंचना संभव होने संबंधी खुलासा इस देश के लोकतंत्र की सेहत को लेकर जरा सा भी चिंतित रहने वाले किसी भी व्यक्ति के कान खड़े कर देने के लिए काफी होना चाहिए। कम से कम, इस बारे में सरकार और यकीनन आज के सबसे प्रभावशाली सोशल मीडिया नेटवर्क ट्विटर की ओर से भी एक आधिकारिक प्रतिक्रिया की दरकार है। इसके उलट, उधर अभी खामोशी है। लेकिन हाल के वर्षों में जिस तरह से इस किस्म के मामले सामने आए हैं, उसे देखते हुए यह शायद बहुत हैरतअंगेज नहीं है। यह खुलासा पिछले महीने अमेरिकी सरकारी एजेंसियों और कांग्रेस की समितियों के सामने किया गया था। लेकिन ‘सीएनएन’ और ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ द्वारा पिछले हफ्ते इस बारे में खबर छापे जाने के बाद यह मामला लोगों के सामने आया। यह खुलासा करने वाले व्हिसल-ब्लोअर साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ पीटर ‘मुज’ जटको हैं, जिन्हें नवंबर 2020 में सुरक्षा एवं गोपनीयता से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए जैक डोर्सी द्वारा संचालित ट्विटर की मदद करने के लिए लाया गया था। उन्हें इस साल की शुरुआत में श्री डोर्सी के उत्तराधिकारी पराग अग्रवाल ने निकाल दिया था। खुलासे की खबरों में बताया गया है कि ट्विटर में अपने छोटे से कार्यकाल के दौरान श्री जटको ने पाया कि इस प्रभावशाली सोशल मीडिया प्लेटफार्म को सुरक्षा संबंधी अपनी कमजोरियों को दूर करने के लिए अभी काफी लंबा सफर तय करना है। खबरों में कहा गया, “उन्होंने ट्विटर की भारी और गंभीर खामियों को उजागर किया”। लेकिन श्री जटको के खुलासे के हिसाब से, ट्विटर ने बाहरी दुनिया को एक बहुत ही अलग संदेश दिया और इस तरह उसने उपयोगकर्ताओं से लेकर निवेशकों तक तथा संघीय व्यापार आयोग से लेकर एलन मस्क (जो हाल तक इस सोशल मीडिया नेटवर्क को खरीदने के इच्छुक थे) तक, सभी को धोखे में रखा।
इस पूरे मामले में भारतीय कोण भले ही एक छोटा सा पहलू हो, लेकिन यह चिंताजनक रूप से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिहाज से, श्री जटको के मुताबिक, “कई प्रकरणों से यह पता चलता है कि ट्विटर में विदेशी खुफिया एजेंसियों की घुसपैठ थी और / या ट्विटर लोकतांत्रिक शासन को खतरा पहुंचाने की कवायद में भागीदार था,” के दायरे में आता है। निश्चित रूप से उनके खुलासे के इस हिस्से, जिसकी सबसे महत्वपूर्ण पंक्ति है: “भारत सरकार ने ट्विटर को कुछ खास लोगों को नियुक्त करने के लिए मजबूर किया, जो सरकारी एजेंट थे और जिन्हें (ट्विटर के बुनियादी संरचनात्मक खामियों की वजह से) बड़े पैमाने पर ट्विटर के संवेदनशील डेटा तक पहुंच मिली”, को लेकर कई अनसुलझे सवाल हैं। मसलन, यह स्पष्ट नहीं है कि श्री जटको जिस एजेंट का जिक्र कर रहे हैं, वह कहीं शिकायत अधिकारी तो नहीं है जिन्हें भारत में काम कर रहे सोशल मीडिया नेटवर्क को पिछले साल बनाए गए नए कानूनों के मुताबिक नियुक्त करना जरूरी है। साथ ही, ऐसा लग सकता है कि इस एजेंट के पास संवेदनशील डेटा तक पहुंच सकने का मौका ट्विटर की अपनी खामियों का नतीजा है और कुछ नहीं। इसलिए, इस मसले पर एक स्पष्टीकरण बेहद जरूरी है। हाल के वर्षों में, सरकार अपने आलोचकों को सोशल प्लेटफार्म पर ब्लॉक करने के लिए बेहद व्यग्र रही है। साथ ही उपयोगकर्ताओं के संवेदनशील डेटा तक बेधड़क पहुंच, जैसा कि इस खुलासे में आरोप लगाया जा रहा है, बोलने की आजादी का गला घोंट सकता है। इसलिए अब समय आ गया है कि सरकार सभी को यह भरोसा दिलाए कि वह वाकई व्यक्ति की बोलने की आजादी और निजता के अधिकारों के प्रति सजग है।
This editorial has been translated from English which can be read here.