खतरनाक पल: यूक्रेन में व्लादिमीर पुतिन की सैन्य लामबंदी की घोषणा

पुतिन को अपनी नाकामयाबी को युद्ध की अतार्किकता के सबूत के तौर पर देखना चाहिए

September 22, 2022 12:39 pm | Updated 12:39 pm IST

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आंशिक सैन्य लामबंदी की घोषणा, यूक्रेन में उनके "विशेष सैन्य अभियान" की सीमाओं के साथ-साथ, नाकामयाबी के जवाब में हमले को और तेज करने की उनकी हड़बड़ी को दर्शाता है। उनकी वास्तविक योजना सीमित समय के युद्ध के जरिए सैन्य उद्देश्यों को पूरा करने की थी। उन्होंने 1,50,000 से ज्यादा सैनिकों को इकट्ठा कर 24 फरवरी को यूक्रेन पर एक साथ कई मोर्चों से धावा बोलने का आदेश दिया था। हालांकि अमेरिका और यूरोप से सैन्य एवं आर्थिक मदद पाने वाले यूक्रेनी बलों ने रूसी हमले के पैनापन को कुंद कर दिया और रूस को जिस तेजी की उम्मीद थी वह सुस्त पड़ने के साथ-साथ आर्थिक तौर पर भी यह उसके लिए महंगा साबित होने लगा। इससे पहले, श्री पुतिन को कीव और खारकीव के आसपास से सैनिकों को वापस बुलाना पड़ा। उसे अपना ध्यान यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी इलाकों पर केंद्रित करना पड़ा, जो उसके कब्जे में है। लेकिन, रूस को इस महीने की शुरुआत में पूर्वोत्तर इलाके के खारकीव ओब्लास्ट की युद्धभूमि में पहली बड़ी हार का सामना करना पड़ा, जहां बिजली की रफ्तार से टूटे यूक्रेनियों ने उसके सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। ऐसा लगता है कि इस झटके ने क्रेमलिन को तेजी से यह फैसला लेने को मजबूर किया कि वह अब तक यूक्रेन में कब्जाए गए क्षेत्रों पर ही ध्यान दे और वहां अपनी स्थिति मजबूत रखे। पूरब में लुहान्स्क और दनियत्स्क और दक्षिण में खरसॉन और जपोरिज्जिया में रूस समर्थक अलगाववादी, अब रूसी संघ में शामिल होने के लिए जनमत संग्रह करने की योजना बना रहे हैं। मतदान का नतीजा एक भी वोट गिरने से पहले ही सबको मालूम है, लेकिन युद्ध से पहले की सीमाओं के आधार पर अब बातचीत के जरिए समाधान ढूंढने की संभावनाओं का दरवाजा बंद होता जा रहा है।

युद्ध को तेज करने से श्री पुतिन को अन्य जोखिमों का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने सीमित सैन्य टुकड़ियों के साथ यूक्रेन पर धावा बोला था क्योंकि उन्हें पता था कि सामान्य तैनाती के लिए उन्हें राष्ट्रव्यापी सैन्य भर्ती की जरूरत पड़ेगी और लोग इससे नाराज हो सकते हैं। लेकिन, लगभग आठ महीने बाद देखें तो यह युद्ध उनके उद्देश्यों को पूरा करने में नाकाम रहा है। उद्देश्य यूक्रेन के ‘असैन्यीकरण’ का था, लेकिन उनके फैसले ने नाटो में नई जान फूंक दी और नाटो ने न सिर्फ यूक्रेन में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, बल्कि फिनलैंड और स्वीडन को अपना

सदस्य बनाकर वह रूस की सीमाओं के और करीब पहुंच गया है। श्री पुतिन और उनके रक्षा मंत्री सर्गेई शेइगु ने बुधवार को इन चुनौतियों को स्वीकार किया। एक तरफ श्री पुतिन, ने यह कहते हुए परमाणु हमले की धमकी दी कि यूक्रेन में उनके सैनिक सबसे आधुनिक “पश्चिमी सैन्य मशीनों” से लड़ रहे हैं, वहीं अब तक इस सैन्य अभियान को युद्ध कहने से बचने वाले श्री शेइगु ने कहा कि “यह सामूहिक पश्चिम के खिलाफ युद्ध” है। युद्ध के मैदान में मिल रही नाकामयाबी, आर्थिक प्रतिबंधों और भू-राजनीतिक चुनौतियों से जूझ रहे श्री पुतिन का मानना है कि युद्ध को तेज करना ही आगे का रास्ता है। हालांकि, यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि आंशिक लामबंदी से त्वरित नतीजे मिलेंगे। अलबत्ता, इससे तनाव बढ़ाने का एक चक्र शुरू हो सकता है। इन सबका कुल जमा मतलब यह है कि युद्ध और ज्यादा खतरनाक चरण में प्रवेश कर रहा है।

This editorial has been translated from English, which you can read here.

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