गुजरात की एक अदालत में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि के एक मामले में सुनाए गए विवादास्पद फैसले के बाद उन्हें लोकसभा से निष्कासित किया जाना कम से कम फिलहाल के लिए विपक्षी दलों के बीच एकता का एक नया बिंदु बन कर उभरा है। तमाम तकनीकी दलीलों को दरकिनार कर दें, तो अधिकतर विपक्षी दल श्री गांधी को अयोग्य ठहराए जाने को सत्तारूढ़ भाजपा के राजनीतिक कदम के रूप में देख रहे हैं। क्षेत्रीय राजनीतिक दल दोनों राष्ट्रीय दलों भाजपा और कांग्रेस के साथ अपने संबंधों को लगातार अपनी जरूरतों के हिसाब से चलाते रहते हैं। इस मामले में कई क्षेत्रीय दलों के लिहाज से यह सुविधाजनक बात है कि भाजपा और कांग्रेस अनिवार्यत: दो विरोधी सिरों पर खड़े दल नहीं हैं। क्षेत्रीय दल आम तौर से राष्ट्रीय दलों के साथ उतार-चढ़ाव वाले संबंधों के माध्यम से अपने प्रभाव और शक्ति का विस्तार करने के प्रयास में रहते हैं, भले ही वे तकनीकी रूप से दोनों से समान दूरी बनाए रखें। जाहिर है, दिल्ली की सत्ता में बैठी पार्टी हमेशा लाभ की स्थिति में होती है तो बाकी क्षेत्रीय दल अक्सर उसके दबाव में होते हैं। हाल के वर्षों में केंद्रीय एजेंसियों (ईडी और सीबीआई) ने विपक्षी नेताओं का घेराव किया है और भाजपा की सुविधा के हिसाब से उनके खिलाफ आक्रामक या लचीला रुख अपनाया है। इन्हीं तथ्यों के मद्देनजर क्षेत्रीय नेता भाजपा का सामना करने से घबराते रहे हैं और अक्सर बाकियों के साथ उन्हें अपने संबंध तोड़ने पड़े हैं। मसलन, अडानी विवाद पर भाजपा के खिलाफ कांग्रेसनीत रणनीति से टीएमसी सहमत नहीं रही है।
आम तौर से कांग्रेस से सतर्क रहने वाली टीएमसी, आम आदमी पार्टी, भारत राष्ट्र समिति और समाजवादी पार्टी ने राहुल गांधी के निष्कासन की निंदा की है और इसे तानाशाही करार दिया है। इन दलों को संभवतः एहसास है कि भाजपा एवं केंद्रीय एजेंसियों का डर और इनकी आपसी प्रतिद्वंद्विता इन्हें हाशिये पर धकेल सकती है या इससे भी बदतर, और ज्यादा प्रतिशोध का शिकार बना सकती है। इनमें से 14 पार्टियों ने अब केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे 42 फीसदी मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और एजेंसियों द्वारा दायर किए गए 95 फीसदी मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ हैं। जाहिर है, यह खुद को बचाने का एक कदम है। ये पार्टियां अब भी कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर साझा दृष्टिकोण बनाने से बहुत दूर हैं। भाजपा और कांग्रेस के बीच टकराव के केंद्र में अडानी समूह की कंपनियों के बारे में कुछ सवाल हैं, जिन पर संदिग्ध स्वामित्व पैटर्न और व्यावसायिक हेराफेरी का आरोप है। अब तक भाजपा और केंद्र इन सवालों से मुंह मोड़ते आए हैं। हालांकि बीजद और वाइएसआरसीपी जैसे विपक्षी दलों ने इस मामले में खुद को अलग-थलग रखा है। उल्लेखनीय है कि अन्य विपक्षी नेता श्री गांधी के निष्कासन के खिलाफ खुलकर सामने आ गए हैं। इसके बावजूद भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष का निर्माण अब भी अधूरा है। इसके अलावा, अडानी के बजाय गांधी पर ध्यान केंद्रित रहे, यह भाजपा के लिए ही फायदेमंद सौदा है।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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