भविष्य पर अनिश्चितता के बादल: चिली के नए संविधान के खारिज होने का मुद्दा

चिली के लोगों ने भले ही नए संविधान को खारिज कर दिया है, लेकिन उन्हें पुराने संविधान को बदलने की जरूरत है

September 08, 2022 01:14 pm | Updated 01:14 pm IST

चिली के मतदाताओं का नए संविधान को खारिज करने का फैसला देश में राजनीतिक विभाजन को गहरा कर सकता है और देश को एक अनिश्चित भविष्य की ओर धकेल सकता है। नया संविधान जनरल ऑगस्टो पिनोशे की क्रूर सैन्य तानाशाही के तहत लिखे गए 1980 के चार्टर को बदलने की मंशा से लाया गया था। चिली के 36 वर्षीय वामपंथी राष्ट्रपति गेब्रियल बोरिक द्वारा समर्थित यह नया दस्तावेज मुक्त बाजार के सबसे अधिक अनुकूल इस दक्षिणी अमेरिकी देश को एक राज्य-संचालित व अधिकारों के मामले में समृद्ध कल्याणकारी समाज में बदल देता। लेकिन ऐसा लगता है कि मतदाताओं की नजर में यह मसौदा अपने लक्ष्य से कुछ ज्यादा ही आगे चला गया। अब जबकि लगभग सारे मतों की गिनती हो चुकी है, कुल 62 फीसदी मतदाताओं ने 'नहीं' के पक्ष में अपना मत डाला। इस संविधान का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया अपने आप में महीनों से चले आ रहे सामाजिक एवं राजनीतिक संघर्षों का नतीजा था। वर्ष 2019 में मेट्रो किराए में मामूली वृद्धि के खिलाफ चिली की सड़कों पर उमड़े विरोध ने तत्कालीन राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा को संविधान को फिर से लिखने का वादा करने के लिए मजबूर किया। विभिन्न संशोधनों के बावजूद, पिनोशे-युग का संविधान एक ऐसा व्यापार-समर्थक व बाज़ार-समर्थक दस्तावेज बना हुआ है जो अर्थव्यवस्था में राज्य के हस्तक्षेप को प्रतिबंधित करता है। अपने बाजार सुधारों के बाद से तेज रफ्तार विकास का गवाह बना चिली भी दुनिया के इस भूभाग के बेहद असमानता वाले देशों में शुमार हो गया है, जिससे बेचैनी बढ़ रही है। इसी अराजकता की पृष्ठभूमि में श्री बोरिक का उभार हुआ। उन्होंने 2021 के अपने चुनाव प्रचार में एक नई शुरुआत का वादा किया था। यह जनमत संग्रह उनके लिए चिली के भविष्य को नए सिरे से गढ़ने का सबसे अच्छा मौका था। लेकिन ऐसा लगता है श्री बोरिक और उनके साथी सुस्त पड़ गए हैं।

कुल 170-पृष्ठों और 388-अनुच्छेदों वाले इस दस्तावेज़ में गर्भपात को वैध बनाने, सभी को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने, सरकार में लैंगिक समानता को अनिवार्य करने, श्रमिक संघों को

सशक्त बनाने और खनन के नियमों को सख्त बनाने का वादा किया गया था। इस दस्तावेज ने चिली को एक “बहु – राष्ट्रीयता वाले” देश के रूप में परिभाषित किया था, जो अपने 11 देशी समूहों, जिनकी आबादी तकरीबन 13 फीसदी है, को मान्यता देता और इन समूहों को अपना खुद का शासकीय ढांचा और कानूनी प्रणाली अपनाने की इजाजत देता। यही प्रस्तावित प्रावधान ही खारिज करने वाले खेमे का मुख्य हथियार बन गया। इस खेमे ने तर्क दिया कि इन देशी समुदायों के बढ़े हुए अधिकार (बड़ी परियोजनाओं को वीटो करने की शक्ति सहित) और नए संविधान द्वारा सुरक्षा एजेंसियों पर अंकुश लगाने के प्रस्ताव अराजकता को बढ़ावा देंगे। बढ़ती मुद्रास्फीति और मापुचे समुदाय के उग्रवादी विद्रोह ने श्री बोरिक के लिए मतदाताओं को इन प्रस्तावों पर सहमत करना मुश्किल बना दिया। चिली अब लौटकर वापस वहीं पहुंच गया है, जहां से चला था। चिली का राजनीतिक वर्ग जबतक आगे का रास्ता नहीं खोज लेता, पुराना संविधान लागू रहेगा। श्री बोरिक ने संविधान निर्माण की प्रक्रिया को एक बार फिर से दोहराने का वादा किया है। यानी दोबारा से संविधान सभा के चुनाव कराए जायेंगे और फिर एक दूसरा मसौदा तैयार कर उसपर जनमत संग्रह कराया जाएगा। जाहिर है, इन सबमें समय लगेगा। तानाशाही के पतन के बाद से चिली की सत्ता पर काबिज रहा रूढ़िवादी और मध्यमार्गी खेमा आने वाले चुनावों में अपने हितों को अधिक से अधिक साधने का प्रयास करेगा। पर इस राजनीतिक रस्साकशी से मौजूदा राजनीतिक संकट के और अधिक नाजुक बन जाने का खतरा है। जैसा कि चिली के लोगों की मांग है कि पुराने संविधान को निरस्त कर उसकी जगह एक नया संविधान लाया जाए, अब यह राजनेताओं पर निर्भर है कि वे लोगों के सामने एक ऐसा दस्तावेज पेश करें जो उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरता हो और जिसका वे समर्थन कर सकें। इसके लिए उन्हें देश के भविष्य को लेकर एक आम राय कायम करने की शुरुआत करनी चाहिए।

This editorial has been translated from English, which can be read here

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