नागालैंड, जिसने 27 फरवरी को हुए विधानसभा चुनाव में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी)-बीजेपी गठबंधन की सत्ता को जारी रखने के लिए मतदान किया, में विभिन्न हित समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी अक्सर इस तथ्य पर आधारित रहती है कि राज्य की किस्मत केंद्र के साथ इसके संबंध से गहराई से जुड़ी हुई है। दिल्ली में सत्ता में रहने वाली पार्टी को इस राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका मिलती है। एनडीपीपी और बीजेपी के बीच 40-20 सीटों के तालमेल में, उनके गठबंधन ने 37 सीटें जीती। बाकी सीटें कई पार्टियों में बंट गईं। मसलन, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सात सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही। नागालैंड में राजनीति कुछ ऐसी है कि कोई भी विपक्ष में नहीं रहना चाहता और सभी विधायकों ने अब एनडीपीपी-भाजपा सरकार को समर्थन दे दिया है। स्वस्थ राजनीतिक एकता की निशानी से कोसों दूर, विधानसभा में विपक्ष की पूर्ण अनुपस्थिति ने विधायी जवाबदेही की कमी के मामले में इस राज्य को एक नए गर्त में धकेल दिया है। पिछली विधानसभा में शुरू हुई इस कुटिल एकता की कथित वजह संयुक्त रूप से “भारत-नागा राजनीतिक समस्या” का हल निकालने की दिशा में काम करना है जो अलगाववादी संगठनों के साथ एक समझौते से संबंधित है। लेकिन व्यवहार में यह अब सत्ता में हिस्सेदारी के लिए एक मारामारी बन गई है।
नेफियू रियो, जो मुख्यमंत्री के पद पर बने हुए हैं, को भाजपा का भरोसा हासिल है। भाजपा को राज्य की मंत्रिपरिषद में पांच स्थान मिले हैं। कांग्रेस से दलबदल करने की श्री रियो की हरकत ने इस पार्टी को पतन की ओर धकेल दिया। यहां तक कि वह एनपीएफ में शामिल होने के बाद भी 2003 में मुख्यमंत्री बने थे। राज्य विधानसभा में भी दो बातें पहली बार हुई हैं। इस बार दो महिला सदस्य चुनी गईं हैं। इनमें से एक राज्य की पहली महिला मंत्री भी बनी हैं। नागालैंड के पितृसत्तात्मक चरित्र को देखते हुए यह बेहद उल्लेखनीय है। वर्ष 2022 में एनपीएफ से एनडीपीपी में आए पूर्व मुख्यमंत्री टी.आर. जेलियांग उपमुख्यमंत्री बने हैं। नागालैंड के विभिन्न क्षेत्रों और प्रमुख नागा समुदायों का प्रतिनिधित्व इस बार कहीं ज्यादा संतुलित है। यह राज्य विकास की गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है और यहां शासन व्यवस्था बिल्कुल लचर है, जिसके लिए वर्षों के उग्रवाद और संबंधित जबरन वसूली को कसूरवार ठहराया जाता है। लेकिन यह तथ्य सिर्फ आंशिक रूप से ही मान्य है। सच्चाई के करीब धारणा तो यह है कि राजनीतिक दलों ने भी इस
गतिरोध में हिस्सेदारी निभाई है। पूर्वी नागालैंड के छह जिलों को राज्य का दर्जा देने की मांग ने एक नई दरार पैदा कर दी है। एनडीपीपी-भाजपा गठबंधन ने इस इलाके की 20 में से नौ सीटों पर जीत हासिल की है। बिना विपक्ष वाली विधानसभा में, सरकार की जवाबदेही छलावा साबित हो सकती है। सरासर रूप से, राजनेताओं ने नागालैंड में लोगों के भरोसे को तोड़ा है।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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