देश के विकास की गति को बढ़ावा देने वाले एक महत्वपूर्ण उत्प्रेरक और रोजगार सृजन में एक अहम भूमिका निभाने वाले भारत के माल निर्यात की 2023 में निराशाजनक शुरुआत हुई। जनवरी माह में सामानों का लदान साल-दर-साल आधार पर 6.6 फीसदी गिरकर 32.91 बिलियन डॉलर का रह गया। निर्यात में कमी आने का जहां यह दूसरा महीना है, वहीं यह गिरावट दिसंबर 2022 में हुई तीन फीसदी की कमी से दोगुनी से अधिक है और कुल मिलाकर 13.6 फीसदी की क्रमिक गिरावट का संकेत है। क्रिसमस के बाद मांग में अनुमानित कमी साथ-साथ शायद आर्थिक गतिविधियों की वास्तविक धीमी गति और उपभोक्ताओं के विश्वास के स्तर को लेकर खरीदारों के सतर्क आकलन से ऑर्डर बुक पर गहरा असर पड़ा है। निराशाजनक और बर्बादी के आसार वाले वैश्विक आर्थिक अनुमानों के बीच नए साल का आगाज़ हुआ। इंजीनियरिंग सामानों का निर्यात 10 फीसदी गिरा। फार्मा उत्पादों की तरह ही आभूषण एवं वस्त्र सहित भारत के निर्यात की शीर्ष 30 वस्तुओं में से 14 अन्य उत्पादों के निर्यात ने अपनी रफ्तार खो दी। उम्मीद की किरण यह है कि आयात में भी गिरावट आई है, जिससे माल - व्यापार घाटा मात्र 17.75 बिलियन डॉलर के 12 महीने के निचले स्तर पर आ गया है, जोकि पिछले छह महीनों के दौरान हर महीने में औसतन 25 बिलियन डॉलर और सितंबर 2022 के रिकॉर्ड 29.23 बिलियन डॉलर के घाटे से खासा दूर है। अगर यह रुझान जारी रहा, तो 2022-23 के लिए भारत का चालू खाता घाटा अधिकांश एजेंसियों द्वारा अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद के तीन फीसदी से अधिक के स्तर से नीचे रह सकता है।
बहरहाल, जनवरी के दौरान आयात में गिरावट से यह पता चलता है कि घरेलू मांग में बढ़ोतरी मद्धिम पड़ रही है। साल-दर-साल आधार पर यह गिरावट जहां सिर्फ 3.6 फीसदी की रही, वहीं जनवरी माह का 50.66 बिलियन डॉलर का आयात खर्च पिछले 18 महीनों में सबसे कम है और दिसंबर के संशोधित 60.2 बिलियन डॉलर के आंकड़े से 15.8 फीसदी कम है। जनवरी 2022 के स्तर से गैर-तेल, गैर-सोने के आयात में 6.7 फीसदी की तेज गिरावट की वजह से जिन्सों की कीमतों में कमी को आयत खर्च में इस गिरावट के केवल एक हिस्से के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है। वाणिज्य मंत्रालय ने यह तर्क दिया है कि इस वित्तीय वर्ष में भारत का कमजोर व्यापार संतुलन वैश्विक अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार के “दोतरफा असर” से प्रेरित है, जोकि निर्यात को नुकसान पहुंचा रही है और मजबूत घरेलू मांग आयात को बढ़ा रही है। इस किस्म का असर अब काम नहीं कर रहा है। वैश्विक मंदी की आशंकाओं के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल भारतीय निर्यातकों की संभावनाओं के बारे में सही ही चिंता व्यक्त की है। उनका यह नुस्खा भी सही है कि निर्यातक अलग-अलग बाजारों में होने वाले घटनाक्रमों पर बारीक नजर रखें ताकि वे “हतोत्साहित” होने से बच सकें। समग्र विपरीत परिस्थितियों के बीच, प्रमुख बाजारों में रूझान बदल रहे हैं। अमेरिकी खुदरा बिक्री जनवरी में उम्मीद से कहीं अधिक तेजी से बढ़ी जबकि जापान का व्यापार घाटा रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। सांख्यिकी कार्यालय के एक सर्वेक्षण के अनुसार, गिरावट की आशंका वाले अन्य व्यवसायों की तुलना में यूनाइटेड किंगडम (यूके) के साथ लेन-देन पर ज्यादा निर्भर रहने वाले व्यापारिक व्यवसाय के टर्नओवर में अब इस साल मार्च में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। उद्योग जगत से जुड़े संगठनों और सरकार को सिकुड़ते अवसरों को बेहतर ढंग से भुनाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए और राह में आने वाली बाधाओं को भांप कर निर्यातकों को अनिश्चितता से निपटने में मदद करनी चाहिए।
This editorial has been translated from English, which can be read here.