जब दुनिया भर के कई लोकतांत्रिक देशों में जातीय राष्ट्रवादी और धुर दक्षिणपंथी बहुसंख्यकवादी पार्टियां मजबूत हो रही है, ऐसे समय में श्वेत आबादी और ईसाई बहुल ब्रिटेन में प्रधानमंत्री पद की कमान, हिंदू धर्म को मानने वाले और अश्वेत ऋषि सुनक के हाथों में सौंपे जाने का एक बड़ा प्रतीकात्मक महत्व है। ब्रिटेन के पहले अश्वेत प्रधानमंत्री के रूप में उनका चुना जाना यह दिखाता है कि कंजर्वेटिव सांसद अब संकट में फंसे देश और पार्टी को उबारने के लिए जातीय और धार्मिक चौहद्दी से पार देखने को तैयार हो गए हैं। उनकी जीत पर भारत के कुछ खास वर्गों ने काफी जश्न मनाया। ये लोग भारत को उपनिवेश बनाने वाले देश पर किसी भारतीय मूल के व्यक्ति के शासन को ऐतिहासिक घटना की बराबरी के तौर पर देखते हैं। लेकिन मौजूदा समय की कठोर वास्तविकता की धरातल पर अगर इस प्रतीकात्मक सत्ता की शक्ति को देखें, तो यह सीमित नजर आती है। असल में, जिन हालात में उनका उदय हुआ, वही हालात श्री सुनक के सामने चेतावनी की शक्ल में तने हुए हैं। वह 2010 के आम चुनावों में टोरी पार्टी की जीत के बाद से पांचवें और पिछले दो महीनों में तीसरे प्रधानमंत्री हैं। उनकी हालिया पूर्ववर्ती लिज ट्रस ने भी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का वादा किया था, लेकिन उनके नीतिगत फैसलों पर बाजार की तीखी प्रतिक्रिया और टोरी सांसदों की खुली बगावत के बीच, उन्हें सात हफ्तों में ही पद छोड़ना पड़ा।
वर्ष 2019 के चुनाव में जब कंजरवेटिव पार्टी ने बोरिस जॉनसन की अगुवाई में धमाकेदार जीत दर्ज की थी, तो ज्यादातर लोगों को इस बात का इल्हाम नहीं था कि तीन साल के भीतर ही पूर्व हेज फंड मैनेजर श्री सुनक प्रधानमंत्री के ओहदे पर पहुंच जायेंगे। हालांकि अब वे 10 डाउनिंग स्ट्रीट पहुंच गए हैं और एक ऐसी पार्टी की कमान संभाल रहे हैं जिसके भीतर भीषण उठापटक चल रही है। यही नहीं, उनके सामने एक ऐसी अर्थव्यवस्था को संभालने का जिम्मा है जिसका अनुमानित बजट घाटा 45 बिलियन डॉलर का है और देश मंदी की ओर बढ़ रहा है। मुद्रास्फीति 10 फीसदी के आस-पास है और देश में रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े सामान की कीमत आसमान छू रही है। लेकिन उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है। एक तरफ, बजट घाटा बहुत बड़ा है और दूसरी तरफ बाजार नीचे की ओर जा रहा है, ऐसे में वह खर्चों में कटौती से जुड़ी नीति पेश
कर सकते हैं। लेकिन, पहले से ही उच्च मुद्रास्फीति की मार झेल रहे ब्रिटिश नागरिकों के लिए यह बुरी खबर होगी। उधर, रूस-यूक्रेन युद्ध के जल्द समाप्त होने के आसार भी नजर नहीं आ रहे हैं, ऐसे में ऊर्जा संकट और महंगाई को थामने का दबाव बना रहेगा। लिहाजा, श्री सुनक को संतुलित तरीका अख्तियार करते हुए बाजार को भरोसे में लेने के साथ-साथ, परेशान अवाम को महंगाई से राहत देनी होगी और विकास के लिए बड़े सुधारों के दरवाजे खोलने होंगे। यह एक मुश्किल काम है, लेकिन श्री सुनक अब इसकी नए सिरे से शुरुआत कर सकते हैं। प्रवासियों के मुद्दे पर कड़े तेवर अपनाने वाली और अतीत के ब्रिटिश साम्राज्य पर गर्व करने वाली सुएला ब्रेवरमैन को दोबारा नियुक्त करके श्री सुनक ने मिला-जुला संकेत दिया है। सुश्री ब्रेवरमैन को लिज ट्रस ने गृह मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था। ऐसे अस्थिर राजनीतिक और आर्थिक माहौल में अगर उन्हें अपने पूर्ववर्तियों जैसी नियति का शिकार नहीं होना है, तो उन्हें उनकी गलतियों को दोहराने से बचने का साहस जुटाना होगा।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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