संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में गतिरोध बना हुआ है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) चाहती है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारत में लोकतंत्र के ह्रास पर हाल ही में लंदन में की गई अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगें। दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी अदाणी समूह की कंपनियों के खिलाफ संदिग्ध वित्तीय लेनदेन और कारोबारी फर्जीवाड़े के आरोपों की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के गठन पर जोर दे रही है। उपलब्ध साक्ष्य बताते हैं कि श्री गांधी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि भारतीय लोकतंत्र की चुनौतियों को घरेलू स्तर पर ही हल किया जाना चाहिए और विदेशी ताकतों की इसमें कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। चूंकि प्रवासी भारतीयों का लगातार दुनिया में विस्तार हो रहा है, तो भारत में होने वाले राजनीतिक घटनाक्रमों का प्रभाव सीमापार पड़ना अपरिहार्य है। भाजपा जिस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में विश्वास करती है वह भी भारत की भौगोलिक सीमाओं तक सीमित नहीं है। श्री मोदी ने दुनिया भर के में लोगों के सामने राष्ट्रीय राजनीति पर बात की है। कोई लोकतंत्र जो आलोचना की इजाजत नहीं देता है, जिसमें खुद लोकतंत्र की आलोचना भी शामिल है, वह अपने आप में विरोधाभास है। श्री गांधी संसद में अपनी टिप्पणी पर अब तक कोई सफाई नहीं दे पाए हैं जबकि भारतीय जनता पार्टी के एक सदस्य ने उनकी लोकसभा सदस्यता समाप्त करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। यह एक गलत कदम है, और अगर इसे अंजाम दिया जाता है तो यह भारत में लोकतंत्र को और नुकसान पहुंचाएगा।
श्री गांधी द्वारा माफी मांगने की मांग के बहाने भाजपा के मंत्री अदाणी समूह को सरकारी संरक्षण पर उठाए जा रहे सवालों से भी बच रहे हैं। कांग्रेस सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) के अदाणी समूह के साथ संबंधों पर सरकार से लगातार जवाब मांग रही है। भाजपा और सरकार इस गंभीर मुद्दे पर चुप है जबकि यह मसला सरकार, सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों सबको अपनी जद में लेता है। निर्णय लेने में मनमानी और उसके बाद जवाबदेही का न होना मिलीभगत नहीं तो शासन की विफलता का संकेत जरूर है। अदाणी विवाद से उपजे मुद्दों पर चर्चा के लिए सरकार, राज्यसभा के सभापति और लोकसभा अध्यक्ष को विपक्ष के साथ मिलकर काम करना चाहिए। सरकार की विश्वसनीयता, नियामकीय माहौल और निजी क्षेत्र को बनाए रखने के लिहाज से सरकार का इस मामले में साफ-सुथरा निकल आना जरूरी है। वित्तीय घोटालों के मामलों में पहले भी जेपीसी बनती रही है। बेशक भाजपा के पास संसद में इतना संख्याबल है कि वह किसी भी संसदीय मानदंड की अवहेलना कर के बच निकल सकती है लेकिन उसे इस प्रलोभन से ऊपर उठना चाहिए और सही अर्थों में राजकाज चलाने वाली एक पार्टी के रूप में खुद को विकसित करना चाहिए। जवाबदेही तय करने में संसद की एक भूमिका है और भाजपा को इससे बचना नहीं चाहिए।
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