मुश्किल दौर: भारत और दुनिया के प्रमुख बाजारों में बदलता परिदृश्य

फरवरी माह में विदेशी व्यापार में हुई तेज गिरावट के मद्देनजर नीतिगत स्तर पर बारीकी से गौर करने की जरूरत है

March 17, 2023 12:07 pm | Updated 12:07 pm IST

फरवरी माह के दौरान भारत का माल निर्यात पिछले पांच महीनों में तीसरी बार गिरा। कुल 33.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की माल लदाई एक साल पहले के स्तर से 8.8 फीसदी की गिरावट की ओर इशारा करती है। हाल के दिनों में निर्यात में आम तौर पर हुई भरपूर बढ़ोतरी के दौर में, एकमात्र तेज गिरावट अक्टूबर 2022 के दौरान दर्ज की गई थी। तेल के निर्यात में 29 फीसदी की तेज गिरावट, रासायनिक वस्तुओं के लदान में 12 फीसदी की गिरावट और इंजीनियरिंग सामानों के बाहर की ओर प्रवाह में 10 फीसदी की कमी यानी कुल मिलाकर भारत के माल निर्यात के लगभग आधे हिस्से ने फरवरी माह की गिरावट को गति दी। लेकिन लड़खड़ाती वैश्विक मांग के असर ने इससे भी आगे जाते हुए भारत से निर्यात की जाने वाली शीर्ष 30 वस्तुओं में से 13 को भी नीचे लुढ़का दिया। फरवरी का निर्यात अभी भी अक्टूबर के आंकड़ों से 7.3 फीसदी अधिक है, लेकिन तात्कालिक अनुमान 2022 की अंतिम तिमाही में फैली निराशा की तरफ लौट रहा है। दुनिया का बड़ा हिस्सा मंदी में गिरफ्त में जा रहा है। पिछले कुछ महीनों के दौरान प्रमुख बाजारों के सुदृढ़ होते आर्थिक आंकड़ों ने एक भरोसा पैदा किया था कि दुनिया की अर्थव्यवस्था 2023 में बेहद खराब स्थिति की आशंका से बच सकती है। लेकिन मार्च महीने की संभावनाओं ने उन उम्मीदों पर कम से कम फिलहाल के लिए पानी फेर दिया है।

भारत के सबसे बड़े निर्यात गंतव्य, संयुक्त राज्य अमेरिका (यू.एस.) में खुदरा बिक्री जनवरी माह में एक सकारात्मक आश्चर्य के तौर पर तीन फीसदी बढ़ गई थी, लेकिन फरवरी माह में इसमें फिर से गिरावट आ गई। मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व की आपाधापी के बीच दो अमेरिकी बैंकों की विफलताओं और यूरोपीय बैंकर क्रेडिट सुइस द्वारा किए गए कमजोरियों के खुलासे ने यह बिल्कुल साफ कर दिया है कि इस गति में जल्द ही कोई बदलाव नहीं आनेवाला है। बुधवार को, ब्रेंट क्रूड की कीमतें लगभग पांच फीसदी नीचे गिर गईं। नतीजतन अप्रत्याशित रूप से इस साल की सौम्य शुरुआत के बाद, मंदी के जोखिम साफ तौर पर एक बार फिर से उभर आए हैं। अब जबकि मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र पहले ही दो तिमाहियों से सिकुड़ रहा है, माल के लदान में आने वाली गिरावट के एक निरंतर दौर का सीधा नतीजा कारखाने की नौकरियों के खत्म होने और उपभोग में सेंध लगने के रूप में होगा। जो भी हो, फरवरी माह के दौरान आयात में आई 8.2 फीसदी की गिरावट घरेलू मांग की स्थिति को सही तरह से नहीं दर्शाती है। घरेलू मांग से अर्थव्यवस्था को वैश्विक झटकों से बचाने की उम्मीद लगाई जा रही है। आयात में आई यह गिरावट पिछले तीन महीनों में सबसे तेज है और लगभग एक साल में आयात का खर्च (51.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर) सबसे कम है। कुछ वस्तुओं के आयात में कमी मात्रात्मक कारकों के बजाय कीमतों की वजह से हो सकती है (यूक्रेन युद्ध के बाद कच्चे तेल और खाद्य तेल की कीमतों में उछाल आया था)। निर्यात के कमजोर रहने के बीच व्यापार घाटे को काबू में रखने के लिए सरकार गैरजरूरी आयातों पर अंकुश लगाने पर विचार कर रही है। लेकिन यह एक ऐसा नाजुक मामला है जहां गुणवत्ता, मूल्य निर्धारण और आपूर्ति श्रृंखला के लिंकेज जैसे कारक भी मायने रखते हैं और गलत कदम उपभोक्ता (और निवेशक) की पसंद को कुंद कर सकते हैं। जनवरी और फरवरी के दौरान व्यापार घाटा के पिछले सितंबर के रिकॉर्ड 29.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर से पहले ही तेजी से कम होने के मद्देनजर नीतिगत उपायों का बेहतर इस्तेमाल निर्यातकों को नए बाजारों तक पहुंचाने और प्रमुख बाजारों में तेजी से बदलते परिदृश्य के प्रति अधिक तेजी से प्रतिक्रिया करने में किया जा सकता है। वर्ष 2015-20 की अवधि के लिए निर्धारित विदेश व्यापार नीति में लंबे समय से अटकी हुई फेरबदल में अब किसी भी कीमत पर और देर नहीं किया जाना चाहिए।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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