डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय कैबिनेट द्वारा बैंकों के लिए 2,600 करोड़ रुपये निर्धारित करने का ताजा फैसला स्वागत योग्य है। इससे दुनिया भर में भुगतान के सबसे स्वीकृत रूप, नकदी के विकल्प को और व्यापक तथा ठोस बनाने में मदद मिलेगी। भारतीय रिजर्व बैंक के ‘भुगतान दृष्टिकोण 2025’ दस्तावेज में कहा गया है कि वित्तीय समायोजन को मजबूत करते हुए ‘भुगतान प्रणाली, आर्थिक विकास और वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देती है।‘ इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि डिजिटल भुगतान के तरीकों को तेजी और व्यापक रूप से अपनाने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को बैंकिंग प्रणाली के साथ जोड़ने की वजह से, कम मूल्य के लेन-देन में नकदी पर लोगों की निर्भरता कम हुई है। खासकर महानगरों और शहरी इलाकों में। भुगतान के क्षेत्र में आए इस बड़े बदलाव में भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम और इसका एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस (यूपीआई) का बहुत बड़ा हाथ रहा है। पिन आधारित लेन-देन के तौर पर यूपीआई का काम, इस परिवर्तन को रेखांकित करने में महत्वपूर्ण रहा है। दिसंबर 2022 में, यूपीआई-सुविधा के तहत कुल 783 करोड़ मासिक लेन-देन हुए जिसका कुल मूल्य 12.8 लाख करोड़ से अधिक था। बीते साल की तुलना में लेन-देन की संख्या में यह 71फीसदी और मूल्य में 55 फीसदी की बढ़ोतरी है। वहीं, पिछले महीने यूपीआई लेन-देन की कुल संख्या दिसंबर 2017 के मुकाबले करीब 54 गुना और पांच साल पहले की तुलना में 98.6 गुना ज्यादा था।
डिजिटल भुगतान प्रणाली को अपनाए जाने और कोविड-19 महामारी के दौरान इसमें आई तेजी से साथ-साथ, यूपीआई और स्वदेशी रूपे क्रेडिट और डेबिट कार्ड समर्थित बैंकों की संख्या भी बढ़ी है। बड़ी तादाद में उपयोगकर्ताओं की जरूरत के हिसाब से डिजिटल ऐप्लिकेशन तैयार करने वाले निजी वित्तीय प्रौद्योगिकी या फिनटेक फर्मों के साथ-साथ बड़ी-बड़ी टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया कंपनियों ने भी अपनी मुख्य सेवाओं के साथ भुगतान की सुविधा जोड़ी है। इसकी वजह से भी डिजिटल भुगतान को बढ़ावा मिला है। हालांकि, बैंकिंग सेक्टर को अपने मुख्य बिजनेस को आगे बढ़ाने में भुगतान की इस व्यवस्था को अपनाने में अपेक्षाकृत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है क्योंकि फिनटेक और प्रतिद्वंद्वी बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों के मुकाबले इस काम के लिए उन्हें अपने बुनियादी ढांचे पर असमान रूप से ज्यादा खर्च करना पड़ा है। बैंकों को निजी कंपनियों के स्तर पर लाने के लिए सरकार के नए प्रोत्साहन का लक्ष्य, छोड़े गए कमीशन के बदले में भुगतान की पेशकश का है। इससे “मर्चेंट डिस्काउंट” मिलेगा। अगर नए कदम नहीं उठाए गए होते, तो यह रकम बैंक को चुकता करना पड़ता। फिर भी, चुनौतियां बनी हुई हैं। सरकार के नीति नियंताओं को तत्काल निजी खर्च के आंकड़ों को सुरक्षित करना होगा और भुगतान प्रणाली को साइबर खतरों से बचाने के लिए लगातार निगरानी तंत्र मजबूत करने होंगे।
This editorial was translated from English, which can be read here.
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