ऑस्ट्रेलिया अपने इतिहास में एक काले अध्याय के प्रायश्चित की ओर बढ़ रहा है। ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ ने आदिवासी और टोरेस स्ट्रेट द्वीप के लोगों को संवैधानिक मान्यता देने के लिए अपने मतदाताओं से एक जनमत संग्रह करवाने का वादा किया है। इससे आदिवासी और टोरेस स्ट्रेट आईलैंडर लोगों को सरकार में स्थायी प्रतिनिधित्व मिल सकेगा, भले ही यह सिर्फ परामर्श की शक्ल में होगा। इस साल के अंत में होने वाले प्रस्तावित जनमत संग्रह के केंद्र में ऑस्ट्रेलियाई संसद के भीतर वॉयस नाम का एक मूलनिवासी संगठन है, जो देश के मूल समुदायों को प्रभावित करने वाले नीतिगत विषयों पर संसद को अबाध्यकारी परामर्श प्रदान करेगा। उम्मीद है कि एक प्रतिनिधित्व प्रणाली के रूप में यह मूलनिवासियों के हितों को बेहतर ढंग से संबोधित कर सकेगा। फिलहाल सरकारी आंकड़ों में ये समुदाय एक सामाजिक श्रेणी के रूप में कम जीवन प्रत्याशा, उच्च शिशु मृत्यु दर, खराब शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के निम्न स्तर, यतीम बच्चों, आत्महत्या, और सामुदायिक व पारिवारिक हिंसा की अत्यधिक दर के लिए ही जाने जाते हैं। हालांकि, वॉयस के प्रस्ताव को लगभग 59 फीसदी सार्वजनिक समर्थन (हाल ही में एक सर्वेक्षण के अनुसार) प्राप्त है, लेकिन राजनीतिक हलके में इसका छिटपुट प्रतिरोध भी है। विडंबना यह है कि कंट्री लिबरल पार्टी की सीनेटर जसिंटा प्राइस जैसे प्रमुख मूलनिवासी नेता विरोध करने वालों में शामिल हैं। सुश्री प्राइस ने इस प्रस्ताव की शब्दावली पर चिंता व्यक्त की है जिसमें कहा गया है कि मूलनिवासी और टोरेस स्ट्रेट द्वीपीय लोगों का वॉयस “संसद और राष्ट्रमंडल की कार्यकारी सरकार को प्रतिवेदन दे सकते हैं”। उनके मुताबिक यह वॉयस को कैबिनेट मंत्री से ऊपर का दरजा देता है और अदालतों में विधायी निर्णयों के लिए संभावित चुनौतियों का खतरा पैदा करेगा। कुछ अन्य मूलनिवासी नेता भी हैं, जो दृष्टिकोण के मामले में अलग प्राथमिकता रखते हैं। मसलन, उनके हिसाब से सबसे पहले मूलनिवासियों और गैर- मूलनिवासियों के बीच एक संधि पर सहमति बनना चाहिए, जो यह स्वीकार करे कि मूलनिवासियों की जमीन कभी भी “आक्रमणकारियों” को नहीं सौंपी गई थी।
इस जनमत संग्रह प्रस्ताव के केंद्र में ही सुलह का विचार है, भले ही यह राजनीतिक रूप से भयावह हो। वर्ष 1778 में “टेरा नलियस“ या “बेनामी भूमि“ पर यूरोपीय उपनिवेशीकरण के बाद से सरकार को “चोरी का शिकार हुई पीढ़ियों” के लिए खेद व्यक्त करने में लगभग 200 साल लग गए। इस अवधि में मूलनिवासी समाज का ताना-बाना ही बिखर गया। सन् 2000 के दशक के अंत में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने औपचारिक रूप से “क्लोज द गैप स्टेटमेंट ऑफ इंटेंट” पर हस्ताक्षर किए, जिसमें मूलनिवासियों के लिए बेहतर स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा संबंधी नतीजों को हासिल करने की प्रतिबद्धता जतायी गयी। इतने पुराने घावों को जितने लंबे समय तक भरने के लिए छोड़े रखा जाएगा, उनका इलाज उतना ही मुश्किल होगा। इस संदर्भ में देखें तो वॉयस के जनमत संग्रह पर राजनीतिक आपत्तियां और इसके तौर-तरीके चाहे जो भी हों, अल्बानीज़ सरकार द्वारा इस प्रक्रिया को अपने तार्किक निष्कर्ष तक ले जाना अच्छा ही होगा और प्रत्येक ऑस्ट्रेलियाई को अपने राष्ट्र में सामाजिक सद्भाव लाने के लिए अपने विचार के अनुसार इस बहाने बोलने का अवसर मिलेगा।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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