अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य में इस महीने की शुरुआत में 48 घंटों के अंदर दो भीषण गोलीबारी की घटना, दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश को बंदूक की हिंसा की गंभीर चुनौतियों की फिर से याद दिलाती है। कैलिफोर्निया में 18 लोगों की जान गई थी। इसी 21 जनवरी को कैलिफोर्निया के मोंटेरी पार्क में एक बंदूकधारी ने बेरहमी के साथ 11 लोगों को गोली से भून डाला। यह इस साल की अब तक की सबसे घातक गोलीबारी थी। दो दिन बाद, उत्तरी कैलिफोर्निया में हाफ मून बे में सात लोगों की हत्या कर दी गई। कुछ घंटे बाद, ऑकलैंड में हुई एक गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गई और सात अन्य घायल हो गए। गोलीबारी की घटनाओं पर अफसोस जताते हुए कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूजोम ने अपने बयान में इन्हें “त्रासदी पर त्रासदी” कहा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक बार फिर खतरनाक हथियारों पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया। इन बयानों से परे, इस बात में शक है कि अमेरिकी कांग्रेस बंदूक पर पाबंदी लगाने वाला कोई कानून पारित करेगी। सिर्फ जनवरी महीने में अमेरिका के 17 अलग-अलग राज्यों में गोलीबारी की 38 घटनाएं हुई हैं। अमेरिका में दूसरे संविधान संशोधन के तहत नागरिकों को हथियार रखने का अधिकार है, लेकिन वहां हर 100 लोगों पर हथियारों का औसत 120 है। बड़े पैमाने पर होने वाली गोलीबारी की ऐसी घटनाओं के बावजूद, अमेरिका में हथियारों पर नियंत्रण से जुड़ा कोई राष्ट्रीय स्तर का मजबूत कानून नहीं है। ऐसी सामूहिक कत्लेआम के बाद, हर बार अमेरिका के राष्ट्रपति कड़े बयान जारी कर देते हैं और नए कानून बनाने की मांग कर डालते हैं। इन बातों का कोई असर नहीं पड़ता।
पिछले साल, 18 साल के एक पूर्व छात्र ने टेक्सास के उवालदे में प्राथमिक स्कूल के 19 बच्चों को गोली से उड़ा दिया था। इसके बाद कांग्रेस ने एक व्यापक आग्नेयास्त्र कानून पारित किया। बीते तीन दशक में इस तरह का यह पहला कानून था। इसमें 21 साल से कम उम्र के लोगों के लिए बंदूक खरीदने से पहले, उनकी पृष्ठभूमि की जांच की बात की गई है। साथ ही, बंदूक की तस्करी और किसी दूसरे के नाम पर की जाने वाली खरीदारी पर जुर्माने का प्रावधान किया गया। इन कानूनों की तारीफ की गई, लेकिन दुनिया में प्रति व्यक्ति सबसे ज्यादा बंदूक रखने वाले इस देश में हिंसा पर लगाम कसने के लिए ये कदम पर्याप्त नहीं थे। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने न्यूयॉर्क राज्य के एक कानून को निरस्त करने का फैसला सुनाया जिसमें घर के बाहर बंदूक ले
जाने पर पाबंदी की बात कही गई थी। इन फैसलों की वजह से यह धारणा और ज्यादा मजबूत होती जा रही है कि दूसरे संशोधन की वजह से राज्यवार सख्त कानून बनाना आसान नहीं है। हाउस डेमोक्रेट्स ने पिछले साल खतरनाक हथियारों पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन वह श्री बाइडेन की मेज तक पहुंचा ही नहीं क्योंकि बिल सीनेट में अटका पड़ा है। रिपब्लिकन अक्सर कानून को रोकने के लिए संवैधानिक अधिकारों का हवाला देते हैं। अंदर तक पहुंच रखने वाले और काफी प्रभावशाली राष्ट्रीय राइफल संघ और शक्तिशाली हथियार उद्योग ने बंदूक पर किसी भी तरह का नियंत्रण रखने की कोशिशों का लगातार विरोध किया है। भले ही, सर्वेक्षणों में बंदूकों पर कड़े प्रतिबंध की मंशा जाहिर होती हो। सबको पता है कि बंदूक पर कड़े नियंत्रण की दरकार है। इसके बावजूद यह देखना आश्चर्यजनक और दुखद है कि एक ऐसा लोकतंत्र जो अपने मूल्यों पर गर्व करता हो, एक ऐसी महाशक्ति जिसने अपने नागरिकों की रक्षा के नाम पर कई युद्ध लड़ा हो, वह हर साल बंदूक से होने वाले कत्लेआम में अनगिनत नागरिकों की हत्या के बावजूद, असहाय नजर आ रहा है।
This editorial has been translated from English, which can be read here.