तार्किक परिणति : मेघालय विधानसभा चुनाव का खंडित जनादेश

एनपीपी को हासिल विस्तारित जनादेश के मद्देनजर उसे एक स्थिर गठबंधन की अगुवाई करने का मौका मिलना चाहिए

March 07, 2023 10:21 am | Updated 10:21 am IST

“खंडित जनादेश” की शब्दावली मेघालय विधानसभा चुनाव के नतीजों की सटीक व्याख्या करती है। कॉनराड संगमा के नेतृत्व वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी जहां 60-सदस्यीय विधानसभा में 26 सीटों (2018 से सात सीटें ज्यादा) के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, वहीं एक तथ्य यह भी है कि दो निर्दलीय उम्मीदवारों के अलावा कम से कम दो सीटें जीतने वाली सात अन्य पार्टियों ने एक ऐसा जनादेश पेश किया, जो चुनाव के बाद एक दक्ष गठबंधन के लिए अनिवार्य थी। तृणमूल कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा ने एनपीपी और (दो सीटों वाली) भाजपा के बिना एक नया गठबंधन बनाने की कोशिश की, लेकिन उनकी पार्टी को सिर्फ पांच सीटों पर ही मिली जीत ने इस किस्म के गठबंधन को नामुमकिन बना दिया। छोटे दलों के साथ मिलकर बनाया गया कोई भी गठबंधन अस्थिर ही होता। भाजपा एनपीपी के साथ अपने गठबंधन से बाहर आ गई थी और एनपीपी नीत सरकार के शासन में हुए भ्रष्टाचार को उजागर करके वोट बटोरने की कोशिश में वह सभी 60 सीटों पर लड़ी थी, लेकिन चुनाव के बाद वह तुरंत एनपीपी का समर्थन करने के लिए तैयार हो गई। यह समझना बेहद आसान है कि एनपीपी ने भाजपा के साथ गठबंधन करना क्यों पसंद किया है - पूर्वोत्तर में सरकारें केंद्र सरकार द्वारा आवंटित धन पर निर्भर होती हैं और केंद्र सरकार को खुश रखना एक अनिवार्य शर्त मानी जाती है। लेकिन भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के बाद भाजपा का तुरंत सरकार में शामिल होना भी उसके द्वारा अपने आधार का विस्तार करने की खातिर सत्ता की रेवड़ियों का इस्तेमाल करने की हताशा का संकेत देता है। कुछ कौतूहल के बाद, 11 सीटों वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी और दो सीटों वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट ने एनपीपी को समर्थन की पेशकश की जिसे दो निर्दलीय और हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के दो विधायकों के समर्थन से भी बल मिला और गठबंधन को एक आरामदायक बहुमत हासिल हो गया।

एनपीपी को भले ही पूर्ण बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने जयंतिया पहाड़ी और खासी पहाड़ी के इलाकों में आठ सीटों पर जीत हासिल करके गारो पहाड़ी से इतर अपना आधार बढ़ाने में कामयाबी हासिल की। इससे उसे पूरे राज्य में जनाधार वाली एकमात्र ताकत के रूप में कांग्रेस

की जगह लेने का मौका मिल गया है। इस किस्म के जनादेश के साथ, पार्टी को राज्य की विकास की पुरानी समस्याओं को हल करने पर ध्यान देना चाहिए, जो अभी भी उच्च गरीबी दर से बेहाल है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट ने मेघालय को गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी बसर करने वाली 32.67 फीसदी आबादी के साथ भारत के पांचवें सबसे गरीब राज्य के रूप में सूचीबद्ध किया है। भ्रष्टाचार के अभिशाप ने यहां बुनियादी ढांचे के विकास में बाधा डाली है। खनिज के मामले में संपन्न इस राज्य में व्यापक पैमाने पर अवैध खनन होता है। कॉनराड संगमा को मिला यह नया और विस्तारित जनादेश, जोकि अन्य पार्टियों के समर्थन पर निर्भर है, आदर्श रूप से नई सरकार को तब तक सजग और सतर्क रखेगा जब तक कि इस गठबंधन के सहयोगी सत्ता की मलाई खाने में मशगूल होने के बजाय नीतिगत मुद्दों को उठाने में ज्यादा रुचि लेंगे।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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