अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के पैकेज के लिए विस्तारित कोष सुविधा के तहत श्रीलंका के साथ 48 महीने की एक व्यवस्था को मंजूरी दे दी है। आईएमएफ के इस फैसले का कोलंबो और उसके उन लेनदारों ने स्वागत किया है, जिनके साथ राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे को अब ऋण पुनर्गठन समझौते करने होंगे। कुछ भारी दायित्व उठाने का श्रेय लेते हुए, भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत ऋण पुनर्गठन का समर्थन करने और जनवरी में आईएमएफ को आश्वासन देने वाला श्रीलंका का पहला द्विपक्षीय लेनदार था। पिछले साल से, नई दिल्ली श्रीलंका की सहायता संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है। वह श्रीलंका को क्रेडिट लाइन, ऋण और ऋण अदायगी टालने जैसे उपायों सहित चार बिलियन अमेरिकी डॉलर का पैकेज प्रदान करने के लिए आईएमएफ और विश्व बैंक से अपनी ओर से अपील करती रही है और जी-20 सहित बहुपक्षीय मंचों पर ऋण स्थिरता के मुद्दे को उठाती रही है। श्रीलंका के सबसे बड़े द्विपक्षीय लेनदार चीन और जापान (अंतरराष्ट्रीय फाइनेंसरों के पेरिस क्लब का हिस्सा) ने इतनी तेजी नहीं दिखाई। लिहाजा आईएमएफ की यह घोषणा काफी वक्त तक रुकी रही। मंगलवार को 330 मिलियन अमेरिकी डॉलर की पहली किश्त की घोषणा करते हुए, श्री विक्रमसिंघे ने कहा कि इस कदम का मुख्य संदेश अन्य ऋणदाताओं को श्रीलंका की ऋण चुकाने की क्षमता के बारे में आश्वस्त करना है और इसे संभावित रूप से अंतरराष्ट्रीय संस्थानों तथा आईएमएफ से लगभग सात बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता पाने हेतु समर्थ बनाना है। कुछ श्रेय श्री विक्रमसिंघे और उनके मंत्रिमंडल को जाता है जिन्होंने पिछले साल चुनौतीपूर्ण समय में सत्ता में आने के बाद से कुछ संकेतकों को स्थिर किया है।
हालांकि, आईएमएफ का यह ऐलान कोई जादू की पुड़िया नहीं है। श्रीलंका को आईएमएफ की तरफ से मिलने वाला यह 17वां और पिछले एक दशक में तीसरा ‘बेलआउट’ है। आईएमएफ का ऋण भी कई शर्तों के साथ आता है। ये शर्तें और ज्यादा दिक्कतों का सबब बनेंगी और लगभग 10 फीसदी की ‘अप्रूवल रेटिंग’ वाली मौजूदा सरकार को और ज्यादा अधिक अलोकप्रिय बना देंगी। सरकार के लिए बेचैनी बढ़ाने वाली एक बात यह भी है कि आईएमएफ ने स्थानीय चुनावों को स्थगित करने के उसके फैसले से खुद को यह कहते हुए अलग कर लिया है कि उसने कोई राजनीतिक शर्त नहीं रखी है। आईएमएफ ने अपनी रिपोर्ट में इस आर्थिक सहायता कार्यक्रम को लागू करने के जोखिमों को “असाधारण रूप से बहुत ज्यादा” बताया है, सुधारों को लागू करने के मामले में श्रीलंका के ट्रैक रिकॉर्ड को “कमजोर” करार दिया है और कमजोर बाजार संकेतकों से प्रेरित संकट के गहराने की स्थिति में आकस्मिक योजनाओं की जरूरत बताई है। बढ़ती हुई मुद्रास्फीति से जूझने, विकास को प्रोत्साहित करने और वैश्विक निवेश को आमंत्रित करने के अलावा, सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि लेनदार इसकी ऋण पुनर्गठन प्रक्रिया से संतुष्ट हों और कोई भी “इतर-सौदेबाजी” का आरोप नहीं लगाए। श्रीलंका हालात को बदलने के लिए प्रतिबद्ध जान पड़ता है और वह अमेरिका, जापान, भारत और चीन सहित अपनी जटिल भू-राजनीति से जुड़े हरेक अंतरराष्ट्रीय पक्षकार के साथ अपने रिश्ते सुधार रहा है। बदले में, यह जरूरी है कि ये पक्षकार कोलंबो की नाजुक स्थिति को समझें और इस द्वीपीय देश को हालात से उबरने में मदद करें क्योंकि वह एक मुश्किल आर्थिक रास्तों से गुजर रहा है।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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