यह अकल्पनीय है कि कानून और मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन सरेआम होता है और जब इन मामलों में हस्तक्षेप किया जाता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है। ताजा मामला तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले के अंबू ज्योति आश्रम का है जहां अनजाने में ही घर के अंदर घटने वाली घटनाओं और स्याह रहस्यों से पर्दा उठा। मामला तब सामने आया जब पुलिस ने एक व्यक्ति के लापता होने की शिकायत की तफ्तीश करनी शुरू की। फिर, एक के बाद एक घिनौने तथ्य सामने आए। इसमें यौन और शारीरिक शोषण, डराने की विचित्र रणनीति और यहां तक कि तस्करी भी शामिल है। बिना लाइसेंस वाले इस आश्रम के नाम का मोटा-मोटा अनुवाद किया जाए, तो इसे ‘प्यार की लौ’ कहा जा सकता है। इस आश्रम में उन लोगों को आश्रय दिया जाता था जिन्हें शारीरिक और सामाजिक रूप से समर्थन की सख्त जरूरत होती है। यह निराश्रित महिलाओं, परित्यक्त वरिष्ठ नागरिकों, भिखारियों, शराब की लत वाले लोगों और मानसिक तौर पर विक्षिप्त या बीमार लोगों को आश्रय देता था। जिन लोगों को वहां से बचाया गया उन्होंने बाद में कहानी बयां की कि किस तरह उन्हें डर, आतंक और विकृत यौन व्यवहारों का सामना करना पड़ता था। यहां तक कि रहने वालो लोगों को डराने के लिए वहां के मालिक बंदरों का भी सहारा लिया जाता था। यह आश्रम वर्षों से चल रहा था और बीते दिनों बिना वैध लाइसेंस से आश्रम चलाने के आरोप में मालिकों को गिरफ्तार करने, पहली बार पुलिस इसके अंदर गई। यहां रहने वाले कुल 142 लोगों को बचाया गया और दूसरी जगह स्थानांतरित किया गया। इसके बाद, आश्रम में रहने वाली महिलाओं ने जब वहां के मालिक जुबिन बेबी और उसकी पत्नी मारिया के खिलाफ यौन उत्पीड़न और यातने का आरोप लगाए, तो पुलिस ने दंपती को गिरफ्तार कर लिया। पुडुचेरी के पास उनके द्वारा संचालित एक अन्य आश्रम को भी बंद कर दिया गया है और वहां से 20 से ज्यादा लोगों को बचाया गया। इसके बाद, राष्ट्रीय महिला आयोग ने छुड़ाई गई महिलाओं की गवाही दर्ज की और जांच को सीबी-सीआईडी को सुपुर्द कर दिया।
अगर कानून राज्य द्वारा बनाई गई सुरक्षा व्यवस्था को लागू किया गया होता, तो अंबु ज्योती आश्रम की घटना कभी नहीं घटती। सभी देखभाल केंद्रों का सही से पंजीकरण होना चाहिए और चलने देने के लिए समय-समय पर उनका मूल्यांकण किया जाना चाहिए। यह संस्थान कैसे इन नियमों से बच गया? प्रतिकूल हालात में रहने वाले लोगों की सेवा करने वाले सामाजिक क्षेत्र के कानून में इन संस्थानों के बच निकलने के लिए कोई जगह नहीं बचनी चाहिए। यह मामला बताता है कि कानून को लागू करने में पूरी तरह कोताही बरती गई। देखभाल केंद्रों की साख जांचने के लिए समय-समय पर इसकी पड़ताल की जानी चाहिए। सामाजिक क्षेत्र में शोषण का मसला खास तौर पर असहनीय है। यह वैसा ही है जैसे टिड्डे को फसल चट करने के लिए छोड़ दिया जाए। इस सेक्टर के निगरानी और पर्यवेक्षण तंत्र में कोई कमी नहीं होनी चाहिए और यह पूरी तरह भ्रष्टाचार मुक्त होना चाहिए। अधिकारियों को न सिर्फ आश्रम के नियमों के हुए हर आखिरी उल्लंघन का दस्तावेजीकरण होना चाहिए, बल्कि वह एक ऐसी मिसाल बनना चाहिए कि आश्रय लेने वाले किसी भी व्यक्ति का शोषण करने का ख्याल भी आने से पहले लोगों की हिम्मत जवाब दे जाए।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
Published - February 21, 2023 11:22 am IST