तीन साल तक दुनिया के सबसे कड़े महामारी प्रतिबंधों के तहत जिंदगी गुजारने के बाद, चीन में हजारों लोग सड़क पर उतर आए हैं। वे लॉकडाउन और “शून्य-कोविड” नीति को खत्म करने की मांग कर रहे हैं। चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के लिए इस मांग पर गौर करना अच्छा होगा। वर्ष1989 के बाद चीन में हुए इन अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शनों ने यह दिखाया है कि लोग उस नीति के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं जो समय के हिसाब से पुरानी मालूम हो रही है। लॉकडाउन, व्यापक परीक्षण और संक्रमित व बड़ी संख्या में लोगों को एक-दूसरे के निकट आने से रोकने से जुड़ी रणनीति ने चीन को कोविड-19 की घातक लहर उबरने में मदद की और इस देश ने बाकी दुनिया की तुलना में मौत का भयानक मंजर नहीं देखा। हालांकि, संक्रामक लेकिन हल्के वैरिएंट ने कोविड से लड़ने के उस नजरिए को बेतुका साबित कर दिया। खासकर तब, जब टीकों ने दुनिया के लिए इस वायरस के साथ जीना संभव बना दिया है। नए वैरिएंट से निपटने के क्रम में चीन की लॉकडाउन नीति और सख्त होती जली गई। मार्च महीने में शंघाई में दो महीनों का बेहद सख्त लॉकडाउन लागू किया गया जिसमें लोगों को भोजन और दवा की किल्लत से जूझना पड़ा। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि चीन का सबसे बड़ा शहर, देश के सबसे बड़े प्रदर्शनों में से एक का गवाह बना। सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह होगी कि ज्यादातर युवा प्रदर्शनकारियों द्वारा लॉकडाउन को खत्म करने के लिए उठाई गई इस आवाज की गूंज सुनाई देगी क्योंकि जीरो-कोविड नीति की वजह से आर्थिक और सामाजिक लागत बढ़ती जा रही है। विरोध प्रदर्शन का स्वर उरुमची के एक अपार्टमेंट में लगी आग के बाद उठा जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई थी। लॉकडाउन उपायों की वजह से इस आग से निपटने की आपातकालीन प्रतिक्रिया बेहद सुस्त रही थी।
चीनी नेतृत्व ने जीरो-कोविड नीति का यह कहते हुए बचाव किया कि लॉकडाउन में ढील देने से बड़े पैमाने पर मौत हो सकती है। ऐसा इसलिए कहा गया क्योंकि वहां बुजुर्गों की बड़ी आबादी का टीकाकरण नहीं हुआ है। लॉकडाउन जारी रखने की दिशा में राज्य की क्षमता को झोंकने के बजाय, चीन को बुजुर्गों के टीकाकरण के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान तत्काल शुरू करना चाहिए। हांगकांग के आंकड़ों से पता चलता है कि एमआरएनए शॉट से कम प्रभावी होने के बाजवूद, चीनी टीकों की तीन खुराकें बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त रूप से कारगर है। समस्या यह है कि चीन ने अपने नागरिकों का टीकाकरण करने से अपने पैर खींच लिए हैं। इस महीने तक, 60 और उससे ज्यादा उम्र के 25 करोड़ से ज्यादा चीनी लोगों में से 68 फीसदी को तीन टीके लग चुके हैं। 80 और उससे अधिक आयु के 3 करोड़ लोगों में से सिर्फ 40 फीसदी को तीन खुराकें मिली हैं। सरकार को डर है कि संक्रमण के लिहाज से इतनी बड़ी नाजुक आबादी के रहते हुए लॉकडाउन खोलने पर चीन की स्वास्थ्य प्रणाली चरमरा जाएगी। साथ ही, इसकी विश्वसनीयता को भी नुकसान होगा। राष्ट्रपति शी ने निजी रूप से जीरो-कोविड नीति का समर्थन किया और बताया कि व्यापक पैमाने पर कोविड की वजह से होने वाली मौत के गवाह बने पश्चिमी देशों की तुलना में उनकी यह नीति अलग है। टीकाकरण कवरेज को पूरा करना और इसके साथ-साथ जीरो-कोविड रणनीति को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना ही एकमात्र रास्ता है।
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