बलात्कार के मामले की रिपोर्टिंग: पीड़िता के सदमों का सवाल

इस जघन्य अपराध की शिकार महिलाओं के साथ जांच एवं मुकदमे की पूरी प्रक्रिया के दौरान सम्मानजनक व्यवहार किया जाना चाहिए

November 02, 2022 11:46 am | Updated 11:46 am IST

बलात्कार की पीड़िता को बार-बार सदमे से गुजरना होता है। सबसे पहले, उसके साथ एक जघन्य कृत्य होता है और फिर इसकी सूचना दर्ज करने का एक मुश्किल भरा काम होता है। वर्षों से, इस यौन अपराध की शिकार महिला के लिए इसके खिलाफ आगे आने में एक सबसे बड़ी अड़चन अंगुली द्वारा परीक्षण रही है, जोकि न सिर्फ निजता का घोर उल्लंघन है बल्कि एक  दहशत के ऊपर और दहशत जैसा है। सोमवार को, सुप्रीम कोर्ट ने इस चलन में संशोधन करते हुए यह घोषणा की कि बलात्कार या यौन उत्पीड़न की शिकार किसी महिला का दखलंदाज किस्म का “दो अंगुली” या “तीन अंगुली” वाला योनि परीक्षण करने वाला कोई भी शख्स कदाचार का दोषी माना जाएगा। इसे एक प्रतिगामी कार्रवाई बताते हुए न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “इस तथाकथित परीक्षण का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। यह न तो बलात्कार के आरोपों को साबित करता है और न ही उसका खंडन करता है। इसके उलट यह यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को फिर से पीड़ा एवं आघात पहुंचाता है और यह उनकी गरिमा का हनन है।” शीर्ष अदालत ने कहा कि एक महिला का “संभोग का आदी होना” या “संभोग की अभ्यस्त होना” यह तय करने के लिहाज से असंगत है कि उसके साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत बलात्कार हुआ है या नहीं। अदालत ने कहा कि यह परीक्षण इस गलत धारणा पर आधारित है कि यौन रूप से सक्रिय किसी महिला का बलात्कार नहीं किया जा सकता है; और “यह मानना एक पितृसत्तावादी और लैंगिकवादी नजरिया है कि किसी महिला के महज यह कहने भर पर यकीन नहीं किया जा सकता कि उसके साथ बलात्कार हुआ है”।

अदालत ने 2013 के उस विधायी उपाय की ओर इशारा किया जिसके तहत धारा 53 ए को भारतीय साक्ष्य अधिनियम में जोड़ा गया था और जिसमें साफ तौर पर यह कहा गया है कि “यौन अपराधों के मुकदमों में पीड़िता का चरित्र या किसी भी व्यक्ति के साथ उसके पिछले यौन अनुभव के साक्ष्य सहमति या सहमति की गुणवत्ता के लिहाज से प्रासंगिक नहीं होंगे।” स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने भी दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा था कि अंगुली का परीक्षण  नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने इस चलन के अभी भी जारी रहने पर नाराजगी जाहिर करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को इस संदेश को फैलाने के लिए हरसंभव प्रयास करने,  जिसमें मेडिकल पाठ्यक्रम में संशोधन भी शामिल है, का निर्देश दिया है ताकि छात्रों को यह पता चल सके कि बलात्कार पीड़िता की जांच करते समय अंगुली परीक्षण का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। वर्ष 2012 के निर्भया बलात्कार के बाद लाए गए कड़े कानूनों के बावजूद, कलंक और “वही इस हमले के लिए दोषी है” जैसी धारणा समेत कई अन्य किस्म के पूर्वाग्रहों से जूझने वाली एक बलात्कार पीड़िता के नजरिए से जमीनी हालात में कोई खास बदलाव नहीं आया है। बलात्कार के मामले अक्सर रिपोर्ट नहीं किए जाते हैं और इसमें सजा की दर भी कम है (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2021 में महज 28.6 फीसदी)। अब यह सरकारों, स्वास्थ्य केंद्रों और पुलिस थानों पर निर्भर करता है कि वे पूरी संवेदनशीलता के साथ बिना किसी भेदभाव के काम करें और यह सुनिश्चित करें कि बलात्कार की सूचना दर्ज कराने वाली महिलाओं को न्याय और सम्मान मिले।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

0 / 0
Sign in to unlock member-only benefits!
  • Access 10 free stories every month
  • Save stories to read later
  • Access to comment on every story
  • Sign-up/manage your newsletter subscriptions with a single click
  • Get notified by email for early access to discounts & offers on our products
Sign in

Comments

Comments have to be in English, and in full sentences. They cannot be abusive or personal. Please abide by our community guidelines for posting your comments.

We have migrated to a new commenting platform. If you are already a registered user of The Hindu and logged in, you may continue to engage with our articles. If you do not have an account please register and login to post comments. Users can access their older comments by logging into their accounts on Vuukle.