सलीके से संदिग्ध: तमिलगा वेत्तरी कजगम का उद्घाटन सम्मेलन

अभिनेता विजय बीजेपी और डीएमके, दोनों पर निशाना साधते नजर आ रहे हैं

Published - October 30, 2024 10:04 am IST

यथास्थिति और परिवर्तन ऐसे शब्द थे, जो अनुभवी तमिल अभिनेता विजय द्वारा रविवार को अपनी पार्टी तमिलगा वेत्तरी कजगम या टीवीके (तमिलनाडु विक्ट्री फेडरेशन) के बहुप्रतीक्षित उद्घाटक राज्यस्तरीय सम्मेलन में दिए गए भाषण में शुमार रहे। जब बात “द्रविड़म” की राजनीतिक अवधारणा, सांप्रदायिकता के विरोध, दो-भाषा फार्मूला, जाति-आधारित सर्वेक्षण, नीट, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा की राज्य सूची में वापसी जैसे मुद्दों की आई, तो ज्यादातर युवाओं की भारी भीड़ जुटाने में कामयाब रहे विजय आजमाए हुए रास्ते पर ही चले। उनकी नजर में “द्रविड़म” और तमिल राष्ट्रवाद दो आंखों की मानिंद थे। यह एक अलग बात है कि उन्होंने इन दोनों शब्दों को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया। दोनों प्रमुख द्रविड़ पार्टियों, द्रमुक और अन्नाद्रमुक में से किसी ने भी खुद को तमिल राष्ट्रवाद के खिलाफ खड़ा नहीं किया है। इसके बजाय उन्होंने जो लोकप्रिय धारणा बनाई है, वह इन दोनों शब्दों की पूरकता की है। द्रमुक के संस्थापक एवं पूर्व मुख्यमंत्री सी.एन. अन्नादुरई के “एक समुदाय, एक भगवान (ओंत्रे कुलम ओरुवेन देवान”) के नजरिए को उद्धृत करते हुए, टीवीके नेता ने यह साफ कर दिया कि उनका संगठन आस्तिकों के खिलाफ नहीं है। यह एक ऐसा नजरिया है, जिसे कमोबेश राज्य की अधिकांश पार्टियों की मंजूरी हासिल है। लेकिन “धर्मनिरपेक्ष सामाजिक न्याय” से उनका क्या आशय है, यह बिल्कुल साफ नहीं है। उन्होंने “आनुपातिक प्रतिनिधित्व” शब्द का इस्तेमाल शिक्षा और रोजगार में आनुपातिक आरक्षण की अवधारणा - जोकि 1950 के दशक की शुरुआत तक तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में बतौर एक योजना कायम थी और इन दिनों खासी लोकप्रियता हासिल कर रही जाति जनगणना की मांग के अनुरूप है - के लिए किया। सन् 1970 में, ए.एन. सत्तनाथन की अध्यक्षता वाले प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग ने यह निष्कर्ष दिया था कि जाति-आधारित आनुपातिक कोटा “न तो प्रशासनिक लिहाज से व्यवहारिक होगा और न ही यह सामाजिक एकीकरण के हित में होगा...”। इसी तरह, मदुरै में सचिवालय की एक शाखा स्थापित करने का प्रस्ताव इस शहर को दूसरी राजधानी बनाने की मांग को नरम कर रहा है।

विजय ने “बम गिराने” वाले अपने अंदाज के अनुरूप सत्ता में हिस्सेदारी की पेशकश की। यह एक ऐसी मांग है, जिसे प्रमुख द्रविड़ पार्टियों ने मानने से इनकार किया है। इस पैंतरे का मकसद सत्तारूढ़ द्रमुक की अगुवाई वाले खेमे को अस्थिर करना हो सकता है, जिसमें कांग्रेस और वीसीके गठबंधन सरकार की धारणा के समर्थक हैं। नफरत की राजनीति न करने या विरोधियों के प्रति आक्रामक न होने का उनका आश्वासन उल्लेखनीय है। वृहद स्तर पर, उन्होंने भाजपा और द्रमुक का नाम लिए बिना साफ तौर पर खुद को उनके खिलाफ खड़ा किया। यह देखा जाना बाकी है कि यह राजनीतिक हमला उन्हें द्रमुक व भाजपा विरोधी खेमे में जगह दिलाने में मददगार होता है या नहीं। दिखने के लिहाज से, यह कार्यक्रम प्रभावशाली था लेकिन टीवीके को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि राजनीतिक हल्के में तमिलनाडु एकाधिकार के लिए जाना जाता है, जहां वैकल्पिक ताकत बनाने के प्रयास विफल रहे हैं। लब्बोलुआब यह कि विजय ने जिस सामान्य लहजे में बात की और जिन मसलों को उन्होंने उठाया, उनमें न तो स्वागत और न ही निंदा करने लायक कुछ है।

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