गुजरात के मोरबी शहर में पर्यटकों को लुभाने वाले एक झूला पुल के टूट जाने से कम से कम 140 लोगों की मौत हो गई और इससे सैकड़ों लोग मच्छु नदी में गिर गए। मृतकों में कम से कम 47 बच्चे थे। यह हादसा भारत की सबसे भयावह त्रासदियों में एक बन गया है। वर्ष 1879 में बने इस पुल का नवीनीकरण किया गया और हादसे से चार दिन पहले 26 अक्टूबर को इसे दोबारा खोला गया था। इस हादसे से कई सवाल खड़े हो गए हैं। जिस कंपनी का इस क्षेत्र में कोई अनुभव या विशेषज्ञता मालूम नहीं पड़ती, उसे पुल के नवीनीकरण का ठेका दिया गया था। पुल के टिकाऊ होने को लेकर भी सवाल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, किसी भी नजरिए से यह एक समय में 150 से ज्यादा लोगों को सहने के लिए नहीं बना था। भीड़ नियंत्रण के अभाव की वजह से, हादसे के समय पुल पर सैकड़ों लोग मौजूद थे। लोगों को मौत के मुंह में जाने दिया गया। ये सभी तथ्य अलग-अलग स्तरों पर सरकार की नाकामी की ओर इशारा करते हैं। गुजरात भारत के समृद्ध राज्यों में से एक है, लेकिन प्रशासन के मामले में इसे अक्सर नाकामी झेलनी पड़ी है। महामारी का खराब प्रबंधन इसका एक उदाहरण है। मानवीय भूल-चूक अक्सर त्रासदियों का कारण बनती रही है और इसने प्राकृतिक आपदाओं के विध्वंसक नतीजे के मायने बदल दिए हैं। पुलिस ने नौ लोगों को गिरफ्तार किया है जिसमें उस कंपनी के दो अधिकारी भी शामिल हैं जो अब सवालों के घेरे में है। सरकार ने पीड़ितों के परिजनों को मुआवजे की घोषणा की है। मामले की गहन जांच और जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही तुरंत तय होनी चाहिए। जांच नतीजों को जल्द से जल्द सार्वजनिक किया जाना चाहिए और दोषियों को उचित सजा मिलनी चाहिए।
कोविड-19 महामारी की वजह से यात्रा पर लगे लंबे प्रतिबंधों में मिली छूट के बाद, दुनिया भर के लोग सैर-सपाटे को निकल पड़े हैं। दक्षिण कोरिया के सियोल में पिछले हफ्ते मची भगदड़ में 154 लोगों की मौत हो गई। भारत में भी रिकॉर्ड संख्या में लोग पर्यटन और तीर्थ स्थलों पर पहुंचने लगे हैं। हालांकि, पर्यटन और यात्रा अर्थव्यवस्था के लिए बहुत जरूरी चीज है, लेकिन इसमें सुरक्षा को सुनिश्चित करने पर और ज्यादा ध्यान देने की दरकार है। देश भर के पर्यटक स्थलों और तीर्थस्थलों का सुरक्षा और पर्यावरण की स्थिति की समीक्षा की जानी चाहिए, ताकि इस तरह की त्रासदियों से बचने के लिए भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा प्रोटोकॉल का उचित तरीके से लागू होना सुनिश्चित हो सके। पर्यटन के नए केंद्रों, जहां बड़ी तादाद में लोगों के पहुंचने की उम्मीद है, को विकसित करते समय ऐसे प्रबंधन पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है। हिमालय जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील जगहों में सड़क और बुनियादी ढांचे का तीव्र विकास, स्थानीय भौगोलिक बनावट की सीमा के दायरे में होना चाहिए। एक खास जगह के बुनियादी ढांचे की सीमा के हिसाब से यात्रियों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए और कदम उठाए जाने की दरकार है। पर्यटन से जुड़े प्रचार अभियानों में आगंतुकों और स्थानीय अधिकारियों के बीच सुरक्षा के प्रति जागरुकता फैलाने के काम भी शामिल होने चाहिए।
This editorial has been translated from English, which can be read here.