हरियाणा में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस की ओर से कड़ी चुनौती का सामना कर रही है। वहां विधानसभा चुनाव के लिए कल प्रचार खत्म हो रहा है। सभी 90 विधानसभा सीटों पर 5 अक्टूबर को मतदान होगा। हालांकि सतह पर, मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच द्विध्रुवीय लग रहा है, लेकिन कुछ अन्य गठबंधन और सैकड़ों निर्दलीय उम्मीदवार मतदाताओं की गोलबंदी के जाने-पहचाने स्वरुप को बदल सकते हैं। भाजपा की पूर्व सहयोगी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के साथ और इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन में है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और हरियाणा लोकहित पार्टी भी मैदान में हैं। कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे पर बातचीत नाकाम होने के बाद, आम आदमी पार्टी ने पूरे राज्य में अपने उम्मीदवार उतार दिये हैं। भाजपा ने सत्ता में अपने 10 साल के ट्रैक रिकॉर्ड का बचाव करने और अपने प्रचार अभियान के जरिए ओबीसी मतदाताओं (जो कुल मतदाताओं के एक तिहाई हैं) को एकजुट करने की कोशिश की है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को ओबीसी को सशक्त बनाने की पार्टी की प्रतिबद्धता के एक प्रतीक के रूप में पेश किया गया है। भाजपा दलित वोटों का भी एक हिस्सा पाने की कोशिश कर रही है।
कांग्रेस दलितों की पसंदीदा पार्टी रही है जिनकी राज्य के कुल मतदाताओं में 20 फीसदी की हिस्सेदारी है। जेजेपी-एएसपी और आईएनएलडी-बसपा के गठबंधन दो प्रमुख मतदाता समूहों – जाट और दलित – पर असर डाल सकते हैं। कांग्रेस अपनी आक्रामक मुद्रा कायम रखने में सफल रही है, हालांकि गुटबाजी से उसका प्रचार अभियान बेपटरी होने का खतरा था। पार्टी ने संविधान को खतरा, सैन्य भर्ती के लिए अग्निपथ योजना, बेरोजगारी और महंगाई जैसे चर्चा पैदा करने वाले मुद्दों पर भाजपा को निशाना बनाया। भाजपा राज्य में नेताओं की अधिकता की समस्या का भी सामना कर रही है। दूसरे दलों से कई नेताओं को शामिल करने के बाद, अब उसे उनकी प्रतिस्पर्धा भरी दावेदारियों का सामना करना पड़ रहा है। हरियाणा में लगातार दो विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत मुख्यत: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और अच्छी सोशल इंजीनियरिंग (जिसने राज्य में गैर-जाट समुदायों को गोलबंद किया) के चलते हुई। इस बार दोनों लिहाज से पार्टी के लिए हरियाणा एक इम्तिहान होगा। कुल 10 साल से सत्ता से दूर रहने के कारण कांग्रेस के प्रति मतदाता कुछ नरम हैं। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के बतौर राहुल गांधी की नयी भूमिका का भी राज्य में इम्तिहान होगा। भाजपा का क्षेत्रीय नेतृत्व कांग्रेस के क्षेत्रीय नेतृत्व जितना तगड़ा नहीं है, लेकिन नतीजों पर उनके असर के बारे में कुछ कह पाना मुश्किल हो सकता है। कांग्रेस का ज्यादा तीन-तिकड़म से अपनी संभावनाओं को कमजोर करने का भी इतिहास रहा है।
Published - October 02, 2024 10:23 am IST