अंतरिम राहत: खुदरा महंगाई दर 11 महीने के निचले स्तर पर

नवंबर माह में हेडलाइन मुद्रास्फीति का नरम होकर छह फीसदी से नीचे जाना ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकता है.

December 14, 2022 11:58 am | Updated December 30, 2022 04:35 am IST

भारतीय उपभोक्ताओं द्वारा 10 महीने तक अंतहीन सी मालूम होती छह फीसदी से अधिक की महंगाई दर का सामना करने के बाद, खुदरा मुद्रास्फीति नवंबर माह में थोड़ी घटकर 5.88 फीसदी के स्तर पर आ गई। मुद्रास्फीति में यह कमी भले ही भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की छह फीसदी की ऊपरी सहन सीमा से थोड़ी ही नीचे है, लेकिन राहत देती है। अप्रैल 2022 से, जब खुदरा कीमतें लगभग आठ साल में पहली बार 7.8 फीसदी की ऊंची दर से बढ़ी थीं, लेकर वित्तीय वर्ष 2022-23 के पहले आठ महीनों में से पांच महीने में सात फीसदी से अधिक की मुद्रास्फीति दर्ज की गई। क्रमिक रूप से, महंगाई में अक्टूबर के 6.77 फीसदी के स्तर से नवंबर माह में 0.9 प्रतिशत बिंदु की कमी इस अवधि में सबसे तेज गिरावट है। ग्रामीण मुद्रास्फीति के रूख में भी इसी किस्म का सुधार हुआ है, हालांकि यह 6.1 फीसदी के ऊंचे स्तर पर बनी हुई है। वित्त मंत्रालय ने इसे एक ‘भारी गिरावट’ करार दिया है, जिसकी मुख्य वजह सरकारी उपायों से खाद्य पदार्थों की कीमतों में आई तेज गिरावट है। उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति नवंबर माह में 11 महीने के निचले स्तर 4.67 फीसदी पर आ गई, जोकि अक्टूबर माह में सात फीसदी से अधिक थी। खाद्य मुद्रास्फीति में अधिकांश गिरावट में सब्जियों की कीमतों का अहम योगदान है। इसमें अक्टूबर माह में 7.8 फीसदी की मुद्रास्फीति से पिछले महीने 8.1 फीसदी की अपस्फीति और महीने-दर-महीने आधार पर 8.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।

सब्जियों की कीमतें कुछ समय तक नरम रह सकती हैं, लेकिन उनकी प्रकृति अस्थिर होती है। कुछ लोगों का अनुमान है कि सब्जियों की कीमतों को अगर छोड़ दिया जाए, तो नवंबर माह में खुदरा मुद्रास्फीति सात फीसदी तक बढ़ गई होती। अनाज, दूध और मसालों जैसी जरूरी रसोई की आपूर्ति, जिनकी मुद्रास्फीति दर क्रमशः 13 फीसदी, 8.2 फीसदी और 19.5 फीसदी तक बढ़ गई है, सहित अन्य घरेलू बजट के सामानों की कीमतों में थोड़ी ही राहत मिली है। सरकार को उम्मीद है कि आने वाले महीनों में अनाज और दालों की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए उठाए गए कदमों का असर ‘और अधिक उल्लेखनीय’ तरीके से दिखाई देगा। मिट्टी के तेल और

कोयले की कीमतों में महीने-दर-महीने आधार पर बढ़ोतरी के साथ ईंधन मुद्रास्फीति 10.6 फीसदी तक पहुंच गई है। कोर मुद्रास्फीति, जिसमें खाद्य पदार्थों और ऊर्जा की कीमतें शामिल नहीं होती हैं और जिसकी ‘स्थिरता’ को लेकर आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने ताजा मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान चेताया था, में भी इजाफा हुआ है। परिवहन एवं संचार, स्वास्थ्य और घरेलू सामान एवं सेवाओं की कीमतों में तेजी आई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक बास्केट में शामिल लगभग 56 फीसदी वस्तुओं में नवंबर माह में छह फीसदी से अधिक की मुद्रास्फीति देखी गई, जोकि सितंबर और अक्टूबर माह के मुकाबले अधिक अनुपात में है। सबसे बुरे दौर के बीत चुकने का ऐलान करते हुए, आरबीआई द्वारा इस तिमाही में मुद्रास्फीति के औसतन 6.6 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। लिहाजा, दिसंबर माह में महंगाई दर में सात फीसदी से अधिक का उछाल देखने को मिल सकता है। मुद्रास्फीति को छह फीसदी से नीचे बनाए रखना होगा और उसे चार फीसदी के पसंदीदा लक्ष्य तक ले जाना होगा। लेकिन औद्योगिक उत्पादन में गिरावट के मद्देनजर केंद्रीय बैंक के पास ब्याज दरों में आक्रामक बढ़ोतरी करने का बहुत ही सीमित मौका होगा और स्थिति से उबारने के लिए राजकोषीय नीति को अब भारी मशक्कत करनी पड़ सकती है। भारत में पेट्रोल पंप पर कीमतों के स्थिर बने रहने का सीधा मतलब यह है कि वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का उपभोक्ताओं को कोई लाभ तब तक नहीं मिलेगा जब तक कि पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों को रोजाना आधार पर निर्धारित करने की व्यवस्था को फिर से शुरू करने की इजाजत नहीं दी जाती। हालात को बेहतर करने के लिए सरकार ऐसा कर सकती है।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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