संविधान अंगीकृत होने की 74वीं सालगिरह पर, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्र के नाम परंपरागत और अपने पहले गणतंत्र दिवस संबोधन में गणतंत्र के बुनियादी मूल्यों पर जोर दिया। देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाली पहली आदिवासी महिला के तौर पर भारत की 15वीं राष्ट्रपति, अपने-आप में लोकतंत्र, बहुलतावाद और कमजोर वर्गों के सशक्तीकरण की दिशा में गणतंत्र की निरंतर यात्रा की प्रतीक हैं। इसकी नींव रखने वाले नेताओं ने आधुनिक राष्ट्र में जिस भ्राईचारा और लोकतांत्रिक मूल्यों की संकल्पना की थी, वह प्राचीन सभ्यता की शिक्षा से ही निकाले गए हैं। श्रीमती मुर्मू ने गणतंत्र की इस विशेषता को रेखांकित किया है जिसमें पुराने और नए, पारंपरिकता और आधुनिकता का मिश्रण है। राष्ट्रपति ने कहा कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ एकजुट होकर किया गया संघर्ष “जितना आजादी हासिल करने के लिए था, उतना ही खुद के आदर्शों को फिर से खोजने के लिए भी था”। श्रीमती मुर्मू ने “भारत के तत्व” पर जोर दिया, जो व्यापक होने के साथ - साथ सहज अनुमान योग्य भी है। “हम कामयाब हुए... क्योंकि इतने सारे पंथों और इतनी सारी भाषाओं ने हमें विभाजित नहीं किया है बल्कि हमें जोड़ा है।” इस चीज के प्रति हमारी प्रतिबद्धता ने आधुनिक राष्ट्र और सहस्राब्दियों से विकसित हुई प्राचीन सभ्यता को बनाए रखा है।
यह कहा जा सकता है कि जैसे-जैसे विचार विकसित होते हैं, वैसे-वैसे गणतंत्र बनने की प्रक्रिया सतत रूप से चलती रहती है। कुछ नई महत्वाकांक्षाओं की तरफ देश प्रेरित होता है, लेकिन कुछ मूलभूत सिद्धांत हमारे अस्तित्व और सफलता के लिए ऐसे कोड के रूप में मौजूद रहना चाहिए जो कालातीत हो। श्रीमती मुर्मू ने अपने संबोधन में अलग-अलग क्षेत्रों में भारत की कामयाबी और खासकर अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में तरक्की की तारीफ के दौरान, उन सिद्धांतों पर जोर दिया। वैश्विक मामलों में एक प्रभावशाली देश के रूप में भारत की उभार की तरफ ध्यान खींचते हुए उन्होंने सर्वोदय और आत्मनिर्भर भारत के सिद्धांतों को रेखांकित किया। सबका उत्त्थान और आत्मनिर्भरता के सिद्धांत पर सरकार काम कर रही है। भीषण और जानलेवा गरीबी अभी भी विशाल वर्गों को जकड़े हुए हैं और विकास की बात करने वाले अवसरों पर, भारत को निश्चित रूप से इस तथ्य को याद रखना चाहिए। अलग-अलग समय पर संविधान और राष्ट्रीय आंदोलन के आदर्शों के सामने राजनीतिक अधिनाकयवाद, सांप्रदायिक चरमपंथ, और अलगवावाद जैसे रूपों
में कई चुनौतियां सामने आईं, लेकिन भारत ने उनसे पार पा लिया। यह संतोष का विषय तो है ही, लेकिन आने वाले दिनों के लिए हमें सतर्क रहने की भी याद दिलाता है। गणतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों पर श्रीमती मुर्मू के जोर और नागरिकों को इसके प्रति आश्वासन ऐसे समय में आया है जब संविधान के तत्व पर हमले हो रहे हैं। संविधान के बारे में बहस भी उसी लोकतंत्र का हिस्सा है जो हमने स्थापित किया है और इसके मूलभूत सिद्धांत ही भारत के लोगों को एकजुट करते हैं। श्रीमती मुर्मू ने इसी ओर हमारा ध्यान दिलाया।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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