काफी हंगामा खड़ा करने वाले एक अभूतपूर्व कदम के तहत लिंग-भेद से परे जाकर, भारत के अग्रणी पहलवान पिछले हफ्ते सड़कों पर उतरे। विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया ने जंतर मंतर पर धरने की अगुवाई की। वे भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्लूएफआई) के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह से खफा हैं। विनेश ने बृज भूषण पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि वह आत्महत्या तक के बारे में सोचने लगी थी। साक्षी और पुनिया ने भी जोर देकर कहा कि डब्ल्यूएफआई के कामकाज में काफी गड़बड़ी है। इस बीच महासंघ ने सभी आरोपों का खंडन करते हुए संकेत दिया कि ‘हरियाणा लॉबी’ महासंघ के चुनाव से पहले अध्यक्ष को बदनाम करने की कोशिश कर रही है। श्री बृज भूषण उत्तर प्रदेश से भारतीय जनता पार्टी के सांसद भी हैं। वे इन आरोपों को सिरे से खारिज कर रहे हैं। वहीं, पीड़ित एथलीट टस से मस होने का नाम नहीं ले रहे। खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ कई बार बैठक करने के अलावा, उन्होंने अपना धरना जारी रखा है। हालांकि, अब तक यह मामला तीखे आरोपों और सपाट खंडन का है, लेकिन यह घटना भारत के खेल जगत में पर्दे के पीछे की खामियों को उजागर करती है। मोटे तौर पर इस पितृसत्तात्मक देश में ग्रामीण महिला एथलीटों का अपने घरेलू परिवेश के बाहर जिस पुरुष से वास्ता पड़ता है, वह अक्सर या तो कोच होता है या कोई खेल अधिकारी। अगर यह भरोसा टूटता है, तो एथलीट को ऐसा जख्म मिलता है जो जिंदगी भर नहीं भर सकता।
आपसी सम्मान पर आधारित कोच-एथलीट संबंध बहुत कम देखने को मिलते हैं, वहीं सतह के नीचे शोषण के कई किस्से दफन हैं। यह नीम खामोशी टूटनी चाहिए थी और बहुचर्चित पदक विजेता पहलवानों ने इस दिशा में पहला कदम बढ़ाया है। अब खेल मंत्री द्वारा गठित पांच सदस्यीय निरीक्षण समिति को आरोपों पर आगे की कार्रवाई करनी है और सच्चाई तक पहुंचना है। यह जिम्मेदारी ओलंपियन मैरी कॉम को दी गई है, जो इस समिति की प्रमुख हैं। इसके बाद, दोनों पक्षों को अब शांत हो जाना चाहिए। मैरी कॉम और उनके साथी सदस्यों को सहानुभूति रखने के साथ-साथ सच की तह तक जाना होगा। बृजभूषण का संबंध सत्ताधारी पार्टी से होना, इस मामले में आड़े नहीं आना चाहिए और खेल मंत्रालय ने डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष को संघ के रोजमर्रा के काम में हस्तक्षेप करने से रोककर अच्छा किया। यह एक ज्ञात तथ्य है कि पार्टी लाइन से परे, तरह-तरह के राजनेता भारत के खेल प्रशासनिक तंत्र का हिस्सा हैं। खेल की “सॉफ्ट पावर” और इससे पैदा होने वाली सद्भावना से आकर्षित होकर, ज्यादातर खेल निकायों के अहम पदों पर राजनेताओं ने अपनी कुर्सी जमा रखी है। इन महासंघों के भीतर जिस तरह की ताकत वे दिखाते हैं और नई दिल्ली में फोन घुमाने की जो पहुंच उन्हें हासिल है उससे घुटन भरा माहौल तैयार होता है। पहलवानों को अपने आरोपों के पक्ष में सबूत पेश करने होंगे, लेकिन ताजा प्रकरण खेलों की प्रशासनिक इकाई में सफाई करने का एक अच्छा अवसर है।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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