मोरक्को का जिक्र आते ही, जेहन में शेफशेवन शहर की मशहूर नीलिमा से लेकर 1940 के दशक की प्रतिष्ठित फिल्म कैसाब्लांका की छवियां उभरने लगती हैं। फ्रांसीसी औपनिवेशिक इतिहास के अलावा इसकी अफ्रीकी-अरब संस्कृति और मिली-जुली भाषा, मोरक्को के आकर्षण को और बढ़ा देती हैं। दोहा के फीफा विश्वकप में एटलस लायन (मोरक्को की टीम का दूसरा लोकप्रिय नाम) के बढ़ते सफर ने इस आकर्षण को और गहरा बना दिया। मोरक्को के लिए यह एक बेहतरीन विश्वकप रहा। हालांकि, सेमीफाइनल में फ्रांस के हाथों 0-2 से शिकस्त खाकर उसे विश्वकप से बाहर होना पड़ा, लेकिन मोरक्को की टीम ने वे सारे हुनर दिखाए जिनसे उसका रुतबा बना। कमजोर समझी जाने वाली इस टीम ने कई दावेदार टीमों को मात दी। अचरफ हकीमी की इस टीम ने ग्रुप एफ में शीर्ष स्थान हासिल किया और नॉकआउट में जगह बनाई। इससे पहले 1986 के मेक्सिको विश्वकप में मोरक्को ने यह कारनामा किया था, लेकिन डिएगो माराडोना के जादुई प्रदर्शन के सामने उसकी यह कामयाबी दब गई थी। मौजूदा विश्व कप में, मोरक्को ने बेल्जियम, स्पेन और पुर्तगाल जैसी बड़ी टीमों को धूल चटाई। जहां मोरक्को और पूरे अफ्रीका में इसका जश्न मनाया गया, वहीं मेजबान कतर और पश्चिम एशिया के मुल्कों में अरबी भाईचारा की भावना दिखी। इस बात को स्वीकार करते हुए मिडफील्डर अजेदीन ओनाही ने कहा,“हमने अफ्रीका और यहां तक कि अरबों के लिए भी इतिहास रचा है।” खुद अपने ही गोलपोस्ट में दागे गए एक गोल को छोड़ दें, तो बेहद चुस्त और कभी-कभी परेशान करने वाली डिफेंस को बेधना दूसरी टीमों के लिए काफी सिरदर्दी भरा रहा। इसने मोरक्को की आगे की राह मजबूत की। आखिरकार फ्रांस ने उसे भेदने का रास्ता तलाश लिया।
लियोनेल मेसी की प्रतिभा की गाथा साबित हो रही इस चैंपियनशिप में मोरक्को का प्रदर्शन एक अविश्वसनीय कहानी जैसा है। विश्वकप सेमीफ़ाइनल के लिए क्वालीफाई करने वाले पहले अफ्रीकी देश मोरक्को के साथ-साथ सेनेगल, जापान और दक्षिण कोरिया ने मिलकर यह दिखा दिया कि फुटबॉल का पर्याय बन चुके दक्षिण अमेरिका और यूरोप के बाहर एफ्रो-एशियाई इलाकों में भी इस खेल की वैकल्पिक इबारतें लिखी जा सकती हैं। मोरक्को की इस कामयाबी के पीछे
कई तरह की उम्मीदें जगमगा रही थीं। हकीमी की मां स्पेन में दूसरे के घरों में काम किया करती थीं। खेल के बाद हकीमी का उन्हें गले लगाना, एक अद्भुत पल था। ताकतवर टीमों के खिलाफ जीतने का भरोसा, प्लेमेकर हाकिम ज़िच, मिडफील्डर सोफियान अम्राबेट और संरक्षक यासीन बाउनोउ के प्रदर्शन से साफ झलक रहा था। यासीन तो इस टूर्नामेंट में अभेद्य किला बनकर उभरे। कोच वालिद रेगरागी की टीम के सदस्य चाहे दरिजा, बर्बर, अंग्रेजी या फ्रेंच में से कुछ भी बोलते हों, लेकिन फुटबॉल ने उन्हें ऐसी जुबान दी जिसे देखकर उत्साह में एक कंमेंटेटर ने कहा, ‘असंभव शब्द मोरक्कन नहीं है’। यह तब तक सच लग रहा था जब तक कि फ्रांस ने उनके इरादों पर पानी नहीं फेर दिया। ग्रुप एफ से मोरक्को के अलावा, क्रोएशिया ने भी क्वार्टर फाइनल में ब्राजील जैसी बेहतरीन टीम को परास्त कर स्तब्ध कर दिया। इस मैच ने दूसरे लैटिन अमेरिकी दिग्गज टीम अर्जेंटीना को सेमीफाइनल के शुरुआती समय में चौकस बना दिया था। फिर, मेसी के जादू ने लुका मोड्रिक का सपना तोड़ दिया। अब तीसरे स्थान के लिए मोरक्को और क्रोएशिया में भिड़ंत होगी।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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