अल्पविरामः डेनमार्क में वामपंथी धड़ों की विजय

डेनमार्क में वाम धड़े की जीत ने यूरोप में दक्षिणपंथियों का रथ रोक दिया है

November 03, 2022 10:53 am | Updated 10:53 am IST

डेनमार्क के मतदाताओं ने यूरोप में दक्षिणपंथ को मिलने वाली चुनावी बढ़त के ताजा रुझान को धता बता दिया है। वहां, मध्य-वाम विचारधारा वाली प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसन को संसदीय चुनाव में मंगलवार को दोबारा जीत हासिल हुई। गठबंधन के अपने सहयोगियों के दबाव में आकर सुश्री फ्रेडरिकसन को समय से पहले चुनाव कराना पड़ा, लेकिन 27.5 फीसदी वोट के साथ सोशल डेमोक्रेट ने बीते दो दशकों में अपना सबसे बढ़िया प्रदर्शन किया। जिस वामपंथी गुट की वह अगुवाई करती हैं उसे मुख्य डेनमार्क में 87, फराओ द्वीप में एक और स्वायत्त डेनिश क्षेत्र ग्रीनलैंड में दो सीटें मिलीं। यानी, 179 सीटों वाली संसद में पार्टी ने बहुमत के लिए जरूरी 90 सीटें जीत ली। कोविड-19 महामारी के दौरान लाखों मिंक (एक जानवर) को मारने के सुश्री फ्रेडरिकसन के फैसले की आलोचना के बीच हुए इस चुनाव में विश्लेषकों ने अनुमान जताया था कि सुश्री फ्रेडरिकसन को हार का मुंह देखना पड़ सकता है। सितंबर महीने में पड़ोसी नॉर्डिक देश स्वीडन और दक्षिणी यूरोपीय देश इटली में हुए चुनाव में धुर दक्षिणपंथ को तगड़ी जीत हासिल हुई थी। स्वीडन में जहां नव-नाजी मूल की पार्टी द्वारा समर्थित दक्षिणपंथी पार्टी ने मध्य-वाम सरकार की जगह ली, वहीं इटली में तो सीधे मुसोलिनी की फासिस्ट पार्टी से तालुल्क रखने वाली पार्टी जीतकर सत्ता में पहुंची। इसके उलट, डेनमार्क के अधिकांश मतदाता सोशल डेमोक्रेट्स, ग्रीन लेफ्ट और सोशल लिबरल के पीछे मजबूती से खड़े रहे।

चुनाव से पहले, सुश्री फ्रेडरिकसन ने कहा था कि वह डेनमार्क की राजनीति के पारंपरिक दक्षिण-वाम विभाजनों को दरकिनार करते हुए उदारवादी मध्यमार्गी दलों के साथ सरकार बनाएंगी। हालांकि, सरकार बनाना उनके लिए अब कोई चिंता की बात नहीं है। यूरोप के ज्यादातर देशों की तरह डेनमार्क के लोग भी रोजमर्रा के बढ़ते खर्च की समस्या से जूझ रहे हैं। डेनमार्क में 11.1 फीसदी की मुद्रास्फीति की दर यूरोपीय संघ के कुल औसत से कहीं ज्यादा है। यूक्रेन पर रूसी हमले के मद्देनजर ऊर्जा क्षेत्र की स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। इसलिए, गैस आपूर्ति में व्यवधान को लेकर खासी चिंताएं हैं। नाटो के संस्थापक सदस्यों में शामिल डेनमार्क पर भी नाटो के अन्य सदस्य देशों की तरह रक्षा खर्च बढ़ाने का दबाव है। खासकर, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद। सितंबर में जब डेनमार्क के तट पर हुए धमाकों में समुद्र के अंदर वाली नॉर्ड स्ट्रीम रूस-यूरोप पाइपलाइन क्षतिग्रस्त हुई, तो युद्ध ने लगभग डेनमार्क की दहलीज पर दस्तक दे दी थी।

वामपंथी गठबंधन की जीत ने भले ही सुश्री फ्रेडरिकसन को राजनीतिक रूप से मजबूत किया हो, लेकिन डेनमार्क धुर दक्षिणपंथ की समस्या से पूरी तरह मुक्त नहीं हुआ है। नई धुर-दक्षिणपंथी पार्टी डेनमार्क डेमोक्रेट्स ने 8.1 फीसदी वोट के साथ संसद में अपनी जगह बना ली है। इस पार्टी की अगुवाई एक पूर्व मंत्री कर रहे हैं जो वहां पर शरणार्थियों को गैर-कानूनी तरीके से अलग-थलग करने के आरोपों में जेल काट चुके हैं। लिहाजा, सुश्री फ्रेडरिकसन के लिए लक्ष्य बिल्कुल तय है। वह आज पहले से ज्यादा मजबूत दिख रही हैं, लेकिन उनकी स्थिति अभी भी नाजुक ही है। लंबे समय की राजनीतिक कामयाबी के लिए उन्हें युद्ध के प्रभाव को न्यूनतम रखते हुए, डेनमार्क की जनता के रोजाना के खर्चों के बोझ को कम करने के साथ शुरुआत करनी होगी।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

Top News Today

Comments

Comments have to be in English, and in full sentences. They cannot be abusive or personal. Please abide by our community guidelines for posting your comments.

We have migrated to a new commenting platform. If you are already a registered user of The Hindu and logged in, you may continue to engage with our articles. If you do not have an account please register and login to post comments. Users can access their older comments by logging into their accounts on Vuukle.