भारत के माल निर्यात में अक्टूबर में लगभग 17 फीसदी की गिरावट के बाद नवंबर में 0.6 फीसदी की मामूली बढ़ोतरी हुई। निर्यात का मूल्य जहां अक्टूबर में 29.8 बिलियन डॉलर से बढ़कर 32 बिलियन डॉलर हो गया, वहीं यह अभी भी अप्रैल और सितंबर के बीच के औसत 39 बिलियन डॉलर के आंकड़े से काफी नीचे है। लदान के मूल्य के लुढ़क कर 55.9 बिलियन डॉलर तक आने के साथ आयात वृद्धि गिरकर 5.4 फीसदी तक आ गई। आखिरी बार यह स्तर फरवरी 2022 में देखी गयी थी, जिसके बाद सात महीने का आयात बिल लगभग 60 बिलियन डॉलर का रहा। सामानों का व्यापार घाटा पांच महीनों में पहली बार 25 बिलियन डॉलर के नीचे रहा। कुछ वस्तुओं की कीमतों में गिरावट से आयात बिल और घाटे में कुछ हद तक कमी लाने में मदद मिल सकती है। लेकिन, इसका असर दोतरफा हो सकता है क्योंकि कुछ निर्यातों का मूल्य जो पहले वैश्विक कीमतों के रुझान की वजह से तेजी से बढ़ा था, उसमें भी गिरावट आएगी। आयात बिल में गिरावट के एक हिस्से के लिए अपेक्षाकृत कम गैर-तेल कार्गो जिम्मेदार रहा, जोकि घरेलू मांग के धीमा पड़ने की ओर इशारा करता है, लेकिन गैर-तेल निर्यात में लचर प्रदर्शन एक बड़ी चिंता का सबब है। सितंबर से लेकर नवंबर के दौरान कई क्षेत्रों में आए तेज संकुचन से निर्यात वृद्धि में उनकी हिस्सेदारी जून से कम हो रही है। इंजीनियरिंग सामान, जोकि 2021-22 के दौरान भारत के माल निर्यात को रिकॉर्ड 422 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने में मददगार रहे थे, के निर्यात में जहां 11.3 फीसदी का संकुचन आया, वहीं कपड़े के निर्यात में 25 फीसदी की गिरावट आई।
दिसंबर के लंबित त्योहारी ऑर्डर अभी भी महीने-दर-महीने निर्यात के आंकड़ों में बढ़ोतरी कर सकते हैं, लेकिन 2023 की शुरुआत से भारत के व्यापार पर अधिक दबाव पड़ेगा क्योंकि प्रमुख बाजार मंदी की ओर बढ़ रहे हैं। मंगलवार को ‘क्रेडिट एनालिसिस एंड रिसर्च लिमिटेड (केयर रेटिंग्स)’ के एक शोध पत्र ने आगाह किया है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 के पहले आठ महीनों में 11.1 फीसदी बढ़ने के बावजूद माल निर्यात में पूरे वर्ष के दौरान 2.3 फीसदी की गिरावट रह सकती है। विश्व व्यापार संगठन को जहां 2023 में सामानों के वैश्विक व्यापार में महज एक फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद है, वहीं केयर का मानना है कि 2023-24 के दौरान भारत के निर्यात में 1.5 फीसदी की मामूली वृद्धि हो सकती है। सेवा निर्यात और प्रेषण प्रवाह माल व्यापार में आए असंतुलन की वजह से होने वाले भारत के चालू खाता घाटे को कम कर सकते हैं और अर्थव्यवस्था की बाहरी कमजोरियों को सीमित रख सकते हैं, लेकिन नीति निर्माताओं को गहन निर्यात वाले क्षेत्रों, जोकि बड़े पैमाने पर रोजगार भी प्रदान करते हैं, में कारखानों के लिए आसान लैंडिंग सुनिश्चित करने पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि वैश्विक स्तर पर फैली मंदी घरेलू भावना को प्रभावित नहीं करे। हाल के दिनों में सरकार ने इस्पात और लौह अयस्क पर लगने वाले निर्यात शुल्क, जोकि इंजीनियरिंग निर्यात को नुकसान भी पहुंचा रहा था, को देर से समाप्त किया और उन्हें अब तक बहिष्कृत रहे दवाओं और रसायनों जैसे क्षेत्रों के साथ टैक्स रिफंड योजना के तहत लाया। उभरती चुनौतियों का चतुराई से जवाब देने हेतु बाजार की हकीकतों पर नजर रखना भारतीय निर्यातकों के लिए आने वाले उथल-पुथल के दौर में बने रहने और शायद वैश्विक व्यापार में अपनी हिस्सेदारी का विस्तार करने के लिहाज से बेहद अहम है। कोविड-19 से पहले के वर्षों में खुद वैश्विक व्यापार वृद्धि में गिरावट के दौर में भी वियतनाम, कंबोडिया, बांग्लादेश और चीन की व्यापारिक हिस्सेदारी में बढ़ोतरी देखी गई थी। भारत को भी इस तूफान से और मजबूत होकर उभरने की आकांक्षा रखनी चाहिए।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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