दिसंबर 2022 में भारतीय वस्तुओं के निर्यात में दो वर्षों में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। इस अवधि में 34.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के उत्पादों का निर्यात हुआ, जोकि एक साल पहले की तुलना में 12.2 फीसदी कम है। तीन महीने में यह दूसरा मौका है जब वस्तुओं के लदान (शिपमेंट) में साल-दर-साल आधार पर कमी आई और वाणिज्य मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों ने भारतीय वस्तुओं के लिए चुनौतियां पैदा करने वाली वैश्विक स्तर की विपरीत परिस्थितियों का हवाला देकर चिंताओं को शांत करने की कोशिश की। इनमें यूरोप एवं अमेरिका में छाए मंदी के बादल, चीन में कोविड-19 की स्थिति और कुछ बाजारों में संरक्षणवाद की ओर वापसी शामिल हैं। स्पष्ट रूप से, उच्च आधार प्रभाव (हाई बेस इफेक्ट) ने भी दिसंबर में साल-दर-साल आधार पर निर्यात में गिरावट को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने में भूमिका निभाई। वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान दिसंबर 2021 में निर्यात का दूसरा उच्चतम (39.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य) का आंकड़ा दर्ज किया गया था, जब भारतीय वस्तुओं का लदान 422 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड स्तर को पार कर गया था। तब से दुनिया के व्यापार के समीकरण बदल गए हैं, क्योंकि बढ़ती मुद्रास्फीति और 2022 के दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक झटका साबित होने वाले यूक्रेन-रूस संघर्ष जैसे भू-राजनैतिक उथल-पुथल के बीच व्यापार की रफ्तार महामारी के बाद झटकों से मजबूती से उबरने से लेकर लड़खड़ाने के दौर में पहुंच गई है।
इन उथल-पुथल भरे हालातों के बीच, निर्यात के रुझान का महीने-दर-महीना के आधार पर विश्लेषण करना शायद स्थिति का आकलन करने का एक बेहतर तरीका है। फिलहाल इस मोर्चे पर दिसंबर के निर्यात के आंकड़े, भले ही त्योहारों की छुट्टियों से पहले के लदान के अंतिम खेप के अपने नियत गंतव्यों तक पहुंचने से बढ़ गए हों, अक्टूबर और नवंबर के शुरुआती व्यापार अनुमानों के बरक्स अच्छे हैं। दूसरी उम्मीद की किरण यह है कि दिसंबर में आयात में भी 3.5 फीसदी की कमी आई। नवंबर 2020 के बाद यह पहला ऐसा उदाहरण है। हालांकि, क्रमिक रूप से वे लगभग 58.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर पर स्थिर रहे। वित्तीय वर्ष 2022-23 के पहले नौ महीनों के दौरान, भारतीय वस्तुओं का निर्यात अभी भी एक साल पहले की तुलना में 9.1 फीसदी अधिक है और यह नवंबर 2022 तक दर्ज 11.1 फीसदी की वृद्धि से थोड़ा कम है। कुछ एजेंसियों को यह आशंका है कि वैश्विक मंदी से मौजूदा तिमाही में भारतीय सामानों की मांग पर इतना ज्यादा असर पड़ेगा कि पूरा साल निर्यात में कमी से जूझते हुए बीत सकता है। ‘एस एंड पी ग्लोबल इंडिया मैन्यूफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स’ के अनुसार, दिसंबर में ही नए निर्यात के ऑर्डर में पांच महीनों में सबसे धीमी गति से बढ़ोतरी हुई क्योंकि प्रमुख निर्यात बाजारों में कंपनियां जूझ रही थीं। अमेरिकी खुदरा बिक्री के ताजा आंकड़े 12 महीनों में सबसे तेज गिरावट का संकेत देते हैं। यहां तक कि औद्योगिक उत्पादन में कमी आई है। यह इस बात संकेत है कि भारत के शीर्ष निर्यात गंतव्यों में तैयार माल या इनपुट की मांग में और कमी होने के आसार हैं। उधर चीन की अर्थव्यवस्था के फिर से खुलने के साथ, मांग में कमी होने के बावजूद प्रतिस्पर्धा तेज होने की उम्मीद है। निर्यात के लिए शुल्क में छूट की योजना और लौह अयस्क के लदान से अंकुश हटाने जैसे सरकार के कुछ हालिया कदमों से गड़बड़ियों को दूर करने में मदद तो मिली है, लेकिन निर्यात के इंजन की रफ्तार कायम रखने के लिए और ज्यादा व्यापक एवं तेज गति से सूक्ष्म-नीतिगत कार्रवाई की जरूरत है।
This editorial was translated from English, which can be read here.
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