रविवार को मेलबर्न में खत्म हुए आईसीसी ट्वेंटी20 विश्व कप ने क्रिकेट के इस सबसे छोटे प्रारूप को और प्रासंगिक बनाया। इंडियन प्रीमियर लीग से लेकर बिग बैश जैसी लगातार चलने वाली घरेलू लीग के बीच कभी-कभी लगता था कि टी20 अंतरराष्ट्रीय मैचों में द्विपक्षीय मुकाबले लगभग गुम-से हो गए हैं। रस्म-अदायगी के लिए कभी-कभार कोई मैच भले ही खेल लिए जाते हैं, लेकिन सभी क्रिकेट बोर्ड खुद की घरेलू लीग को मजबूत करने में जुटे हैं। पूरी दुनिया फुटबॉल की दीवानी है, लेकिन क्रिकेट की सीमित दुनिया में फ्रैंचाइज-क्रिकेट का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में खेल के इस प्रारूप में टिकाऊपन का भाव आना चाहिए क्योंकि टी20 को अक्सर फटाफट निपटने वाले खेल के रूप में जाना जाता है। टेस्ट और एकदिवसीय मैचों के अपने समर्पित दर्शक हैं, लेकिन टी20 को शोर-शराबे और पैसे पीटने वाले ऐसे खेल के रूप में देखा जाता है जिसमें गली क्रिकेट वाली हुड़दंग शामिल है। टी20 विश्व कप हर दो साल में एक बार उस धारणा को बदल देता है। ऑस्ट्रेलिया में हुआ ताजा आयोजन भी कोई अपवाद नहीं था। टेस्ट क्रिकेट की परंपरा में जीने वाले इंग्लैंड ने यह ट्रॉफी जीती, इससे इस प्रारूप की अहमियत बढ़ी है। भले ही, इस खेल के कारोबारी पहलू पर भारत का कब्जा हो। यह इंग्लैंड की कोचिंग के बुनियादी ढांचे के लचीलेपन का भी नतीजा है क्योंकि वहां का प्रशासन टेस्ट, वनडे और टी20आई को पूरी तरह अलग-अलग प्रारूप मानता है। इसी वजह से टीम की संरचना से लेकर खेल के प्रति रवैये को भी तीनों प्रारूपों की जरूरत के हिसाब से अलग-अलग रखा गया है। इंग्लैंड के टी20 अंतरराष्ट्रीय मैचों में जो रूट का नहीं खेलना यह दिखाता है कि भावनाओं के आधार पर इंग्लैंड कोई फैसला नहीं ले रहा है।
फाइनल मुकाबले में इंग्लैंड के खिलाफ पाकिस्तान था। भले ही अंतिम नतीजा जॉस बटलर की टीम और उनके पावर-क्रिकेट के पक्ष में आया हो, लेकिन बाबर आजम के दस्ते ने दिखाया कि पाकिस्तान के पास तेज गेंदबाजों का खजाना बरकरार है। आठ विकेट पर 137 रन के मामूली स्कोर और मैच के आखिरी समय शाहीन शाह अफरीदी के पैरों में चोट लगने के बावजूद, अपने तेज गेंदबाजों के बूते पाकिस्तान इस मैच को आखिर तक ले गया। एक तरफ इंग्लैंड और पाकिस्तान, ग्रुप स्टेज के खराब प्रदर्शन को दरकिनार कर आगे बढ़े, वहीं चमक फीकी पड़ने से पहले, शुरुआती राउंड में भारत और न्यूजीलैंड ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। मैन इन ब्लू ने
सेमीफाइनल में इंग्लैंड के खिलाफ शिकस्त झेलने से पहले विराट कोहली की निरंतरता, सूर्यकुमार यादव की चपलता और ठीक-ठाक धारदार गेंदबाजी के बूते सफर जारी रखा। यह साफ है कि भारत जिस तरह टी20आई मुकाबलों को खेलता है उसमें और गति भरने की जरूरत है। धीमी शुरुआत के बाद आखिरी ओवरों में विस्फोटक पारी खेलने का तरीका एकदिवसीय मैचों के लिए तो मुफीद है, लेकिन इस छोटे प्रारूप के लिहाज से यह कमजोरी है। ज्यादातर अहम खिलाड़ी 30 साल से ज्यादा उम्र के हैं। भारतीय चयनकर्ताओं को नए खून को मौका देने की जरूरत है। इस विश्व कप में पिछले चैंपियन ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका का बाहर हो जाना और आयरलैंड और नीदरलैंड्स द्वारा बड़े उलटफेर को अंजाम देना भी बेहद दिलचस्प रहा। वहीं, वेस्ट इंडीज की टीम का क्वालिफाई तक नहीं कर पाना दुखद है क्योंकि कैरेबियाई क्रिकेटरों के बिना क्रिकेट अधूरा है।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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