दादागिरी का अंत: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग का गूगल के खिलाफ फैसला

भारत जैसे संभावनाशील ‘डिजिटल पावरहाउस’ के मोबाइल उपयोगकर्ताओं को वास्तविक पसंद के माहौल की जरूरत है

October 26, 2022 11:44 am | Updated 11:44 am IST

एंड्रॉइड मोबाइल डिवाइस इकोसिस्टम में अपनी प्रभुत्व वाली स्थिति का दुरुपयोग करने के लिए गूगल के खिलाफ भारतीय प्रतिस्पर्धा नियामक का हालिया आदेश न केवल लगाए गए जुर्माने की राशि बल्कि उस व्यावसायिक चलन में भारी बदलाव के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है, जिसे अपनाना अब सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) के इस दिग्गज कंपनी के लिए जरूरी होगा। गुरुवार को, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने गूगल द्वारा मूल उपकरण निर्माताओं (जो गूगल के एंड्रॉइड प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं) के साथ अपने समझौतों में प्रतिस्पर्धा से बच सकने की नीयत वाली प्रतिबंधात्मक शर्तें थोपने के लिए उसपर लगभग 1,337 करोड़ रुपये, जिसे एक अंतरिम राशि कहा जा रहा है, का जुर्माना लगाया। आयोग के आदेश के मुताबिक, इस किस्म के समझौतों के जरिए “गूगल ने यह सुनिश्चित किया कि उपयोगकर्ता मोबाइल उपकरणों पर इसकी ‘खोज सेवाओं’ का उपयोग करना जारी रखें, जिससे  उसके विज्ञापन राजस्व में निर्बाध वृद्धि हुई।” लिहाजा, आयोग ने यह निष्कर्ष निकाला कि अपने डिवाइस भागीदारों पर इस तरह के प्रतिबंध थोपने का गूगल का पूरा विचार “सामान्य खोज सेवाओं के मामले में अपनी प्रभुत्व वाली स्थिति और इस प्रकार, खोज विज्ञापनों के माध्यम से अपने राजस्व को सुरक्षित करने तथा उसे और अधिक मजबूत करने” के मकसद से प्रेरित था। प्रतिस्पर्धा आयोग के जुर्माने के फैसले और गूगल को “अपना आचरण सुधारने” के उसके निर्देश का स्वागत हर उस शख्स द्वारा किया जाएगा जो प्रतिस्पर्धा को रोकने और इस तरह उपयोगकर्ताओं को उनके पसंद से वंचित करने के बड़े आईटी प्लेटफार्मों की ताकत से वाकिफ है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अब गूगल  के लिए व्यवसाय पहले जैसा नहीं रहेगा, क्योंकि प्रतिस्पर्धा नियामक ने उसके खिलाफ ऐसी हरकतों से बाज आने और भविष्य में भी इससे दूर रहने का एक आदेश जारी किया है। इस आदेश के तहत उसे मूल उपकरण निर्माताओं के साथ किए जाने वाले सौदों की शर्तों में भारी बदलाव करना होगा। मसलन, प्रतिस्पर्धा आयोग के आदेश के तहत  गूगल  को अब से मूल उपकरण निर्माताओं को डिवाइस पर प्री-इंस्टॉल करने के वास्ते उसके ऐप के गुलदस्ते में से चुनने के लिए बाध्य नहीं करना होगा। और न ही अब उपकरण निर्माताओं को अपने प्ले स्टोर के लाइसेंस के लिए पूर्व शर्त के रूप में गूगल सर्च, क्रोम, यूट्यूब और  मैप्स जैसे अन्य ऐप को प्री-इंस्टॉल करने की जरूरत होगी। उसे उपयोगकर्ताओं को उसके पहले से इंस्टॉल किए गए ऐप को अनइंस्टॉल करने से प्रतिबंधित करने के खिलाफ भी निर्देश दिया गया है। गूगल के लिए इन बाध्यताओं में से एक, दरअसल उसके प्राथमिक राजस्व के स्रोत को लक्षित करता है। प्रतिस्पर्धा आयोग के आदेश में कहा गया है, “प्रारंभिक डिवाइस सेटअप के दौरान, गूगल उपयोगकर्ताओं को सभी खोज प्रविष्टि बिंदुओं के लिए अपना डिफॉल्ट सर्च इंजन चुनने की इजाजत देगा।” इस तरह की कई बाध्यताओं का सीधा मतलब यह होगा कि गूगल को भारत में अपने व्यवसाय के मॉडल को बदलना होगा। गूगल ने इस आदेश को यह कहते हुए भारतीय व्यवसायों और उपभोक्ताओं के लिए एक “बड़ा झटका” करार दिया है कि यह आदेश जहां सुरक्षा संबंधी जोखिमों के लिए रास्ता खोलेगा,  वहीं संभावित रूप से मोबाइल उपकरणों की लागत भी बढ़ाएगा। अब जबकि इस आदेश की कानूनी समीक्षा का विकल्प खुला है,  भारतीय प्रतिस्पर्धा नियामक को इस बात का श्रेय जाता है कि उसने गूगल की प्रतिस्पर्धा-विरोधी हरकतों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। वाकई भारत जैसे संभावनाशील ‘डिजिटल पावरहाउस’ के मोबाइल उपयोगकर्ताओं को वास्तविक पसंद के माहौल की जरूरत है।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

0 / 0
Sign in to unlock member-only benefits!
  • Access 10 free stories every month
  • Save stories to read later
  • Access to comment on every story
  • Sign-up/manage your newsletter subscriptions with a single click
  • Get notified by email for early access to discounts & offers on our products
Sign in

Comments

Comments have to be in English, and in full sentences. They cannot be abusive or personal. Please abide by our community guidelines for posting your comments.

We have migrated to a new commenting platform. If you are already a registered user of The Hindu and logged in, you may continue to engage with our articles. If you do not have an account please register and login to post comments. Users can access their older comments by logging into their accounts on Vuukle.