चार साल के अकाल और उसके बाद माओ के नाकाम “ग्रेट लीप फॉरवर्ड” अभियान के दौरान आखिरी बार, 1961 में चीन की आबादी में गिरावट देखने को मिली थी। हालांकि जनसंख्या में देखी जा रही ताजा गिरावट, कोई विचलन नहीं है। दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले इस देश में साल 2022 में जनसंख्या में आई 8,50,000 की गिरावट, चीन और दुनिया के लिए दीर्घकालिक नतीजों वाला एक बड़ा पल है। बीजिंग ने 17 जनवरी को घोषणा की कि पिछले साल चीन में जन्मदर में 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई। इस दौरान चीन में कुल 95.6 लाख बच्चे पैदा हुए और 1.04 करोड़ लोगों की मौत हुई। 1.411 अरब की आबादी को निश्चित रूप से भारत इस साल पीछे छोड़ देगा। चीन की जनसंख्या की कहानी उन देशों के लिए सबक है जिन्होंने सोशल इंजीनियरिंग पर काफी जोर देने की कोशिश की है। सन् 1980 में सरकार द्वारा कठोर “एक-बच्चा नीति” लागू करने के बाद से लगातार घट रही जन्म दर को बढ़ाने के लिए, चीन ने बीते दो दशकों से अपना बड़ा हिस्सा परिवारों को जन्म दर बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने में खर्च किया, लेकिन उसे नाकामी हाथ लगी है। वर्ष 2016 में देर से चीन ने भूल सुधार के लिए “दो-बच्चा नीति” की शुरुआत की, लेकिन जिस उत्साह के साथ नीति नियंताओं ने इसे लागू किया था कि इतने समय बाद लोगों को मिली छूट का सकारात्मक असर पड़ेगा, वह उम्मीद के मुताबिक सही साबित नहीं हुआ। एक सरकारी सर्वेक्षण में पाया गया कि 70 फीसदी लोग आर्थिक वजहों का हवाला देते हुए ज्यादा बच्चे पैदा नहीं करना चाहते।
जनांकिकीय बदलावों का असर पहले ही चीन की अर्थव्यवस्था पर महसूस की जा रही है। कामकाजी उम्र-सीमा के 16-59 वर्ष की आबादी (2022) 87.5 करोड़ थी। वर्ष 2010 के बाद से इसमें 7.5 करोड़ की गिरावट देखने को मिली है। मजदूरी दर बढ़ रही है, और श्रम-आधारित नौकरियां चीन से खत्म होकर दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की ओर जा रही हैं। इस बीच, 60 साल से ऊपर की आबादी में तीन करोड़ की बढ़ोतरी हुई है और यह संख्या अब 28 करोड़ तक पहुंच गई है। सन् 2050 तक बुजुर्गों की संख्या 48.7 करोड़ (जनसंख्या के 35 फीसदी) के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच जाएगी। बढ़ती उम्र पर चीन के राष्ट्रीय कार्यकारी आयोग का अनुमान है कि 2050 तक बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य देखभाल पर होने वाला खर्च सकल घरेलू उत्पाद का 26 फीसदी हो जाएगा। ऐसे संकेत मिल रहे है कि चीन पूरी तरह जापान की राह पर चल पड़ा है जिसने घटती श्रमशक्ति और गिरती विकास दर का एक लंबा दौर देखा। जापान के ‘रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमी, ट्रेड, एंड इंडस्ट्री’ के एक शोधपत्र के अनुसार 2020 तक चीन में बच्चों और बुजुर्गों की आबादी का अनुपात ठीक वही था जो 1990 में जापान का था। इसके अलावा, चीन इस स्तर पर कहीं तेजी से पहुंचा। चीन की प्रजनन दर चार दशकों में 2.74 से गिरकर 1.28 पर पहुंच गई, जबकि जापान की दर 1.75 से गिरकर 1.28 तक पहुंची थी। इस पत्र में बताया गया है कि 2020 में भारत में बच्चों और बुजुर्गों की आबादी का अनुपात ठीक वही है जो 1980 में चीन में था। यह चीन का ठीक वही दौर था जब वहां आर्थिक विकास की तेज छलांगें शुरू हुईं थीं। ऐसा तभी मुमकिन हो सका जब स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भारी पैमाने पर निवेश करके इस श्रमशक्ति को कामकाज के लिए इस तरह तैयार किया गया कि इसी जनांकिकीय ताकत के बूते चीन, दुनिया का कारखाना बनकर उभरा।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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