भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा में फरवरी में नई विधानसभाओं के लिए चुनाव होंगे। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का सबसे ज्यादा दांव पर लगा है क्योंकि उसे त्रिपुरा में अपनी सत्ता बनाए रखनी है और दो अन्य राज्यों में वह मुख्य सत्ताधारी प्रतिष्ठान की एक प्रमुख भागीदार बनी हुई है। भाजपा मेघालय में मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और नागालैंड में मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो की नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के साथ गठबंधन में है। कांग्रेस, जो कभी पूर्वोत्तर में मुख्य पार्टी हुआ करती थी, अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। नागालैंड में उसका सफाया हो गया है, त्रिपुरा में वह मैदान में टिके रहने की कोशिश कर रही है और मेघालय में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) द्वारा उसपर धावा बोला गया है। पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय दल केंद्र में सत्तारूढ़ दल के साथ गठबंधन करते हैं और भाजपा ने हाल के वर्षों में इस इलाके में अपनी मौजूदगी बढ़ाई है। वर्ष 2018 में त्रिपुरा में भाजपा की जीत ने वहां दो दशकों से अधिक समय से जारी वाम मोर्चा के शासन का अंत कर दिया। हालांकि, उसके लिए सत्ता में बने रहना आसान नहीं रहा है। इसके पहले मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब को 2022 में हटाकर उनकी जगह एक दंत चिकित्सक माणिक साहा को बिठाया गया, जोकि पार्टी की लोकप्रियता में आ रही गिरावट को उलटने का एक प्रयास था। अप्रैल 2021 में त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (त्रिपुरा ट्राइबल एरियाज ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल) के चुनावों में जीत हासिल करने वाली एक क्षेत्रीय पार्टी टिपरा मोथा के उभार ने इन इलाकों की 20 विधानसभा सीटों के समीकरण को बदल दिया है। वाम-कांग्रेस गठबंधन भी संभव है।
टीएमसी नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पूर्वोत्तर इलाके में पैर जमाने की कोशिश करती रही हैं, लेकिन उन्हें सीमित सफलता ही मिली है। मेघालय में, कांग्रेस के 12 विधायक 2021 में टीएमसी में शामिल हो गए थे। लेकिन उसके बाद से इसका कुनबा बिखरता ही जा रहा है। मजबूत क्षेत्रीय भावनाओं वाले इस राज्य में टीएमसी को एक बंगाली पार्टी के रूप में देखा जाता है। राज्य के गारो पहाडियों में इस पार्टी का थोड़ा प्रभाव है। नागालैंड में, भाजपा ने अपने वर्तमान सहयोगी एनडीपीपी के साथ चुनाव-पूर्व गठबंधन की घोषणा की है। मेघालय में, भाजपा और एनपीपी न सिर्फ अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं बल्कि एक-दूसरे के खिलाफ तोहमत भी मढ़ रही हैं। इस राज्य में आमतौर पर गठबंधन चुनाव के बाद ही बनते हैं। एनपीपी भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही है और वह असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा से बहुत ज्यादा प्रभावित हो रही है, जोकि पूर्वोत्तर में भाजपा के कर्ताधर्ता हैं। हमेशा की तरह, नागालैंड में स्थानीय समूहों ने विभिन्न मांगों को लेकर चुनावों का बहिष्कार करने की धमकी दी है। एक शीर्ष जनजातीय निकाय, कोन्याक यूनियन द्वारा फ्रंटियर नागालैंड के गठन की मांग इस चुनावी मौसम का एक नया रंग है। संभावना है कि भाजपा क्षेत्रवाद से निपटने के अपने प्रयोगों को जारी रखेगी, जबकि इन चुनावों में विपक्ष के टिके रहने की क्षमता की परीक्षा होगी।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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