चीन में कोरोनावायरस के मामलों में तेजी की रिपोर्ट ने पूरी दुनिया को चौंकन्ना कर दिया है। भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को एक निर्देश जारी किया है कि वे पॉजिटिव नमूने भारतीय सार्स-सीओवी-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम यानी इंसाकॉग को भेजे, ताकि नए और चिंताजनक स्ट्रेन की जांच की जा सके। स्वास्थ्य मंत्री ने भी, भारत में कोरोनोवायरस की स्थिति को लेकर एक समीक्षा बैठक बुलाई है। भारत के आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि अब तक चिंता की कोई बात नहीं है। सक्रिय मामलों की संख्या सिर्फ 3,408 है। ताजा साप्ताहिक आंकड़ों के मुताबिक, देश में सिर्फ एक जिले में पॉजिटिविटी दर 10 फीसदी से ज्यादा है और चार जिलों में 5-10 फीसदी के बीच। भारत के कोविड-19 टीकाकरण का कवरेज 219.33 करोड़ को पार कर गया है और अस्पतालों से भी संकट के कोई संकेत नहीं मिले हैं। हालांकि, पिछले वर्षों का अनुभव यह है कि लहर की बात तो छोड़ दें, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कई हफ्तों बाद, मामले में ध्यान देने लायक बढ़ोतरी की पुष्टि की थी। सार्वजनिक सभाओं, हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर मास्क पहनने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है और इन जगहों की छिटपुट निगरानी की जा रही है, इसलिए कम संख्या होने का यह मतलब कतई नहीं है कि नया वेरिएंट जड़ नहीं जमा रहा है।
मुर्दाघरों में भीड़, अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या बढ़ने और दवा का स्टॉक खत्म हो जाने के बावजूद, चीन में साप्ताहिक मौतों की आधिकारिक संख्या इकाई अंकों में है। प्रचलित राय यह है कि कुछ कड़े प्रतिबंधात्मक उपायों के लगभग तीन साल के बाद हटने की वजह से ऐसे लोगों का समूह एक-दूसरे के सामने आया है जिनमें ‘प्राकृतिक प्रतिरक्षा’ की कमी है। कुछ गणितीय मॉडल का अनुमान है कि चीन में आने वाले दिनों में कोविड-19 के दस लाख मामले सामने आएंगे। यात्रा के मामले में दुनिया का बड़ा हिस्सा अब सामान्य स्थिति में आ गया है, ऐसे में चिंता की बात यह है कि इस उछाल से पूरी दुनिया में संक्रमण फैल सकता है। भारत में भी इसका फैलना तय है। चीन से हम दो सबक ले सकते हैं: लंबे लॉकडाउन से न तो वायरस खत्म होता है, न ही नए स्ट्रेन का बनना। और दूसरा, इस गंभीर बीमारी से बचने का एकमात्र
कारगर तरीका टीका है। चीन काफी हद तक कोरोनावैक और सिनोफॉर्म जैसे घरेलू टीकों पर निर्भर है जो निष्क्रिय वायरस तकनीक पर बने है। चीन में 90 फीसदी आबादी को एक खुराक, और आधी आबादी को दो खुराक मिल चुकी है, लेकिन इसके बावजूद चीन में बीमारों की संख्या बताती है कि लोगों की प्रतिरक्षा पहले ही कमजोर हो चुकी है। भारत के लिए बड़ा सबक यह है कि वह न सिर्फ मौजूदा कोरोनावायरस वेरिएंट पर नजर रखे, बल्कि यह भी देखे कि जो टीके दिए गए हैं वे आगे भी कारगर साबित होते हैं या नहीं। भारत में ज्यादातर टीके कोविशील्ड के लगे हैं, इसलिए वायरस में बदलाव के हिसाब से स्पाइक प्रोटीन को समायोजित करना पड़ सकता है। इंसाकॉग द्वारा स्ट्रेन की सीक्वेंसिंग को सिर्फ एक अकादमिक अभ्यास भर बनकर नहीं सिमट जाना चाहिए।
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Published - December 22, 2022 11:37 am IST