नाजुक रफ्तार: भारतीय अर्थव्यवस्था और विकास दर

जनवरी माह में औद्योगिक उत्पादन में हुई वृद्धि असमान रही और आगे भी ऐसे ही अंदेशे हैं

March 14, 2023 12:01 pm | Updated 12:02 pm IST

पहली नज़र में, इस साल जनवरी माह में देश के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में 5.2 फीसदी की बढ़ोतरी उस पैमाने के लिहाज से एक अच्छा नया साल है, जिसने पिछले पांच महीनों में से दो महीने के दौरान उत्पादन में गिरावट देखा। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र द्वारा अर्थव्यवस्था में सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) के जुलाई से सितंबर 2022 तक की तिमाही में 3.6 फीसदी और अक्टूबर से दिसंबर 2022 तक की तिमाही में 1.1 फीसदी की कमी दर्ज किए जाने के मद्देनजर हर किसी को यही उम्मीद रहेगी कि इस वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही इस रुझान से बेहतर नतीजे दे। उस नजरिए से, कारखानों के उत्पादन के जनवरी माह के आंकड़े पर्याप्त न सही, लेकिन मध्यम स्तर की बढ़ोतरी दर्शाते हैं। क्योंकि, यह बढ़ोतरी पिछली तिमाही में दर्ज 2.6 फीसदी की औसत वृद्धि से लगभग दोगुनी है और दिसंबर 2022 के उत्पादन स्तर से 4.7 फीसदी की सुधार को इंगित करती है। प्राथमिक वस्तुओं में 9.6 फीसदी की वृद्धि और खनन एवं बुनियादी ढांचे के सामानों में आठ फीसदी की वृद्धि (दोनों ही तीन महीने के निचले स्तर पर) के साथ बिजली एवं पूंजीगत वस्तुओं में दहाई अंकों की वृद्धि ने औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) को ऊपर उठाया। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में 3.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, जोकि दिसंबर के 3.1 फीसदी की वृद्धि से थोड़ा बेहतर है। लेकिन जिन 23 उप-क्षेत्रों पर नज़र रखी गई, उनमें से 10 ने उत्पादन में गिरावट दर्ज की और उनमें से पांच जनवरी 2022 के स्तर से 10 फीसदी से ज्यादा नीचे लुढ़क गए। कपड़ा कारखानों ने उत्पादन में 11 फीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की। लकड़ी के उत्पादों में 12.6 फीसदी की गिरावट आई। परिधान से जुड़ी इकाइयों के उत्पादन में जहां 22.3 फीसदी की कमी हुई, वहीं कंप्यूटर एवं इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग में 29.6 फीसदी की गिरावट आई। वित्तीय वर्ष 2022-23 के पहले 10 महीनों में बिजली के उपकरण, कंप्यूटर एवं फार्मा और गहन रोजगार वाले वस्त्र, परिधान एवं चमड़े सहित सात क्षेत्रों में उत्पादन में गिरावट देखी गई है।

कमजोर वैश्विक मांग निश्चित रूप से फैक्ट्रियों के मिलने वाले ऑर्डर को नुकसान पहुंचा रही है और भारतीय निर्यातकों के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे महत्वपूर्ण बाजारों में लगातार आक्रामक होती मौद्रिक नीति कोई शुभ संकेत नहीं है। शुक्रवार को आईआईपी के आंकड़े जारी किए जाने के समय वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में 1.3 फीसदी की और गिरावट आई क्योंकि बाजारों को यह आशंका है कि केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज की दरों में बढ़ोतरी से मांग (और निर्यात ऑर्डर) को नुकसान पहुंचेगा। भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य जब अप्रैल की शुरुआत में बैठक करेंगे, तो उनके के लिए यह उतना ही चिंता का सबब होगा कि घरेलू मांग किस तरह बढ़ रही है। फरवरी की बैठक में एमपीसी के दो सदस्य पहले ही ब्याज दरों के बहुत ज्यादा हो जाने के बारे में अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। एक सदस्य ने तो भारत के विकास को ‘बेहद नाजुक’ करार दिया था। जनवरी के आईआईपी में उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन के आंकड़ों से मिलने वाले संकेत भी बहुत ज्यादा उत्साहजनक नहीं हैं। टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन जहां साल-दर-साल आधार पर लगातार दूसरे महीने तेजी से कम हुआ, वहीं यह कोविड के पहले के स्तर से लगभग 15 फीसदी नीचे रहा। उपभोग की गैर-टिकाऊ वस्तुओं में 6.2 फीसदी की वृद्धि हुई, जोकि तीन महीनों में सबसे धीमी गति रही और इस साल इसका कुल उत्पादन अभी भी 2021-22 के स्तर से नीचे है। के-आकार की रिकवरी को आधिकारिक तौर पर भले ही नकार दिया जाए, लेकिन उद्योग जगत कम आय वाले और ग्रामीण वर्गों में धीमी गति के उभार की ओर इशारा कर रहा है। अभी भी सबकुछ ठीक नहीं है।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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