भारतीय महिला मुक्केबाजों ने हांग्झाऊ एशियाई खेलों से पहले अपने खेल कौशल की जोरदार मुनादी करते हुए दिल्ली में आयोजित विश्व चैंपियनशिप में चार स्वर्ण पदक जीते। उनकी यह उपलब्धि अपने पूर्ववर्ती खिलाडियों - एम.सी. मैरी कॉम, सरिता देवी, के.सी. लेखा और आर.एल. जेनी – द्वारा 2006 में दिखाए गए कमाल की तरह ही है। गौरतलब है कि इस विश्व चैंपियनशिप में जीत 2024 के पेरिस ओलंपिक में प्रवेश पाने की एक पूर्व-शर्त है। सत्रह साल पहले जब भारत ने चार स्वर्ण, एक रजत और तीन कांस्य जीतकर अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था, उस वक्त यह प्रतियोगिता अपने शुरूआती दौर में ही थी और महिला मुक्केबाजी ओलंपिक में अपना आगाज करने से छह साल दूर थी। अब जबकि यह खेल ओलंपिक में शामिल हो चुका है और यह चैंपियनशिप (जिसमें इस बार कुछ प्रमुख देशों द्वारा बहिष्कार के बावजूद यूक्रेन युद्ध के बीच रूसी और बेलारूसी एथलीट अपने झंडे के तले भाग ले रहे हैं) 65 देशों से 300 से अधिक प्रविष्टियां पाने वाली प्रतियोगिता बन चुकी है, चार स्वर्णों का वर्तमान प्रदर्शन उल्लेखनीय है क्योंकि इसने तीसरी बार के मेजबान भारत को पदक तालिका में शीर्ष पर पहुंचा दिया है। स्वर्ण पदक जीतने वाली नीतू घनघस (48 किलोग्राम), निकहत ज़रीन (50 किलोग्राम), लवलीना बोरगोहेन (75 किलोग्राम) और स्वीटी बूरा (81 किलोग्राम) के नाम अलग-अलग किस्म की उपलब्धियां तो थीं, लेकिन उन्हें इस प्रतियोगिता में फिर से खुद को साबित करने की जरूरत थी। राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता नीतू ऊंचे दर्जे वाली इस चैंपियनशिप में अपनी पहचान बनाना चाहती थीं। दूसरी तरफ 52 किलोग्राम वर्ग में विश्व चैंपियन रही निखत, जो ओलंपिक के लिए निर्धारित भार वर्ग से नीचे आ गई थी और गैर वरीयता प्राप्त थी, को छह मजबूत प्रतिद्वंद्वियों से जूझना पड़ा और मैरी के बाद एक से ज्यादा विश्व खिताब जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला खिलाड़ी बनने के लिए खुद को नए भार वर्ग में शामिल करना पड़ा। उधर ओलंपिक पदक विजेता लवलीना, जो विश्व चैंपियनशिप में दो बार की कांस्य पदक विजेता भी हैं, खुद को एक नए ओलंपिक भार वर्ग में स्थापित करने के लिए दृढ़ थीं। वर्ष 2014 की विश्व चैंपियनशिप की रजत पदक विजेता रहीं तीस वर्षीय स्वीटी यह साबित करना चाहती थी कि वह भी किसी से कम नहीं हैं। कुछ हैरतअंगेज प्रतिभाओं में शुमार 19 साल की प्रीति साई पवार (54 किलोग्राम) और जैसमीन लम्बोरिया (60 किलोग्राम) ने अपने हुनर से सभी को प्रभावित किया। हरेक स्थान के लिए कई मुक्केबाजों के बीच होड़ के
मद्देनजर, ओलंपिक की तैयारियों में जुटे प्रशिक्षकों को एक ‘अच्छी समस्या’ का सामना करना पड़ रहा है।
महिला मुक्केबाज़ी की प्रतिस्पर्धात्मकता और अपील को प्रदर्शित करने वाले इस आयोजन से अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज़ी संघ (आईबीए) को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। आईबीए फ़िलवक्त विभिन्न मुद्दों पर इस स्पर्धा को ओलंपिक से बाहर किए जाने की वजह से अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के साथ तकरार में उलझा हुआ है। प्रतियोगिता स्थल पर एक स्वतंत्र मैकलेरन टीम की निगरानी में आईबीए ने पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने का प्रयास किया। इसने निचले दर्जे का प्रदर्शन करने वाले मैच के अधिकारियों और इसका बेजा फायदा उठाने वाले एथलीटों के खिलाफ कार्रवाई की। इसने प्रत्येक विजेता को 100,000 अमेरिकी डॉलर की राशि सहित आकर्षक पुरस्कारों की एक झोली पेश की और इस प्रतियोगिता में भागीदारी को बढ़ावा देने के मकसद से प्रोत्साहन के रूप में मुक्केबाजों को वित्तीय सहायता दी। कुछ विषम बाधाओं को छोड़कर, इस प्रतियोगिता के सफल आयोजन ने आईबीए को भारत, जोकि व्यापक संभावनाओं वाला एक बाजार है, को बॉक्सिंग के एक उपयुक्त गंतव्य के रूप में देखने के लिए प्रेरित किया है। ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन को ध्यान में रखते हुए, भारतीय मुक्केबाजी महासंघ की और ज्यादा संख्या में इस किस्म की विशिष्ट प्रतियोगितओं का आयोजन करने की इच्छा मुक्केबाजी समुदाय को और ज्यादा प्रेरित करेगी।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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