यूक्रेन में रूस का युद्ध दूसरे साल में प्रवेश करने वाला है, लेकिन दोनों पक्षों में से किसी के भी नरम पड़ने का कोई संकेत नहीं दिख रहा। मॉस्को ने इस युद्ध में अब लगभग 5,00,000 सैनिक तैनात कर दिए हैं, जो पिछली फरवरी में हमला करते समय तैनात किए गए सुरक्षा बलों के दोगुने से भी ज्यादा है। कीव के मुख्य सहयोगी पश्चिमी देश उसे वित्तीय और सैन्य समर्थन देने के साथ-साथ, रक्षात्मक और आक्रामक क्षमताओं को मजबूत करने के लिए बख्तरबंद वाहन, सटीक निशाना लगाने वाले बम, युद्धक टैंक और मिसाइल रक्षा प्रणाली भेज रहे हैं। सोमवार को कीव की अपनी औचक यात्रा में, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस युद्ध-पीड़ित राष्ट्र को अमेरिका के सतत समर्थन का संकल्प दोहराया। इसके अगले ही दिन, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में यह संकेत दिया कि रूस लंबे युद्ध के लिए तैयार है। उन्होंने ‘न्यू स्टार्ट’ संधि में रूस की हिस्सेदारी से भी कदम पीछे खींच लिए। इसे पश्चिम देशों के साथ रूस के संबंधों के दरकने के रूप में देखा जा रहा है और इससे परमाणु हथियारों की होड़ भी शुरू हो सकती है। पिछला साल सभी पक्षों के लिए निराशाजनक रहा। त्वरित जीत की उम्मीद रखने वाले श्री पुतिन ने कीव की प्रतिक्रिया और पश्चिमी देशों के समर्थन के स्तर का गलत अंदाजा
लगया था। यूक्रेन ने रूस को मानवीय और भौतिक संसाधनों की भारी कीमत अदा करने के लिए मजबूर तो किया, लेकिन फिर भी अपने कुछ इलाकों को खोने से वह बचा नहीं सका। रूस के प्रति अपनाए जाने वाले रवैये को लेकर होने वाले मतभेदों के बावजूद पश्चिमी देशों ने एकजुटता बना रखी है, लेकिन उसे इस युद्ध के आर्थिक कीमत का भी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
हालांकि, नाकामयाबियों के बावजूद कोई भी पक्ष बातचीत के लिए तैयार नहीं है। श्री पुतिन अपना मकसद पूरा करने तक लड़ना चाहते हैं और पश्चिमी देश उस मकसद को नाकाम करने तक यूक्रेन को हथियारों से मदद पहुंचाना चाहते हैं। फिर चाहे, इसमें जितना भी समय लगे। अगर युद्द लंबा चला तो यह यूक्रेन के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है क्योंकि युद्ध उसकी सीमाओं के अंदर लड़ा रहा जा रहा है। इस देश ने जमीन और हथियार के साथ-साथ हजारों जानें गंवाई हैं। इसके बुनियादी ढांचों पर हमले हो रहे हैं और अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। पश्चिम देशों से हथियारों की निरंतर आपूर्ति के बिना, रूसी हमले से इसके बच निकलने की कोई संभावना नहीं है। वहीं, अगर युद्ध लंबा खिंचता है, तो रूस-नाटो के बीच सीधे टकराव की आशंका मजबूत हो जाएगी। यूरोप में तेजी से चरमराती सुरक्षा व्यवस्था और प्रमुख शक्तियों के बीच गहराता अविश्वास, पहले विश्व युद्ध से पहले की स्थिति जैसा दिख रहा है। परमाणु हथियारों के खतरे की वजह से, आज की तारीख में महाशक्तियों के बीच सीधा टकराव विनाशकारी साबित होगा। इस तरह के संघर्ष की स्थिति बनने का मतलब है कि युद्ध सिर्फ यूरोप की दहलीज तक ही
सिमटा नहीं रहेगा। युद्ध को समाप्त करना वैश्विक सुरक्षा के लिहाज से बेहद जरूरी है। युद्ध आम तौर पर दो तरह से खत्म होते हैं- एकतरफा जीत या फिर बातचीत के जरिए। युद्ध के पहले साल से यह पता चलता है कि पहला विकल्प किसी भी पक्ष को मंजूर नहीं है। इसका मतलब है कि रूस, यूक्रेन और पश्चिमी देश को दूसरा विकल्प आजमाने के लिए तैयार होना चाहिए। पूरी दुनिया के लिए यह बेहतर होगा कि वे जल्द से जल्द बात करना शुरू करें।
This editorial has been translated from English, which can be read here.