इसी महीने 26 मार्च 2023 को औपचारिक रुप से चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करके होंडुरास उन देशों की बढ़ती सूची में शामिल हो गया है जिन्होंने हाल में ताइपे से हटकर बीजिंग को मान्यता दी है। ताइवान के पास अब वेटिकन के अलावा सिर्फ 12 देश रह गए हैं जिनके साथ उसके राजनयिक संबंध है। इन देशों में प्रशांत महासागर में स्थित चार छोटे द्वीपीय राष्ट्र, दक्षिणी अफ्रीका का इस्वातिनी, पैराग्वे और छह मध्य अमेरिकी और कैरेबियन राष्ट्र शामिल हैं। चीन के विदेश मंत्री किन गैंग, जिन्होंने अपने होंडुरास के समकक्ष एडुआर्डो रीना के साथ शासकीय सूचना पर हस्ताक्षर किए, ने कहा कि यह दर्शाता है कि होंडुरास ने “इतिहास के सही पाले में खड़े होने का विकल्प...” चुना है। ताइवान ने होंडुरास पर संबंधों को बनाए रखने के लिए पूर्व शर्त के रुप में वित्तीय सहायता मांगने का आरोप लगाया है और होंडुरास के पाला बदलने के बाद राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने कहा कि “ताइवान चीने के साथ डॉलर की कूटनीति की अर्थहीन प्रतियोगिता में शामिल नहीं होगा।” उन्होंन चीन पर “ताइवान की अंतरराष्ट्रीय भागीदारी को दबाने के लिए किसी भी और हर तरह के साधनों का लगातार (उपयोग) करने, उसकी सैन्य धमकियों को बढ़ाने... और क्षेत्रीय शांति को बाधित करने” का भी आरोप लगाया।
होंडुरास के पाला बदलने की कवायद के साथ - साथ ताइवान की अपनी सिकुड़ती अंतरराष्ट्रीय सीमा के बारे में चिंता ताइवान जलडमरुमध्य में मौजूदा यथास्थिति पर बढ़ते दबाव की ओर इशारा करती है। इस यथास्थिति के बने रहने से आमतौर पर जलडमरुमध्य के पार दोनों पक्षों को लाभ हुआ है और तमाम बाधाओं के बावजूद शांति बनी रही है। कई जनमत सर्वक्षणों के अनुसार ताइवान में, जो उच्च विकसित अर्थव्यवस्था के साथ-साथ एक संपन्न लोकतंत्र भी है, आज भी बहुसंख्य लोगों के लिए यथास्थिति बरकरार रहना सबसे उपयुक्त विकल्प है। एक छोटा सा तबका ही ताइवान की आजादी की घोषणा या चीन के साथ विलय का समर्थन करता है। हालांकि बीजिंग और ताइपे, दोनों एक- दूसरे पर इस यथास्थिति में बदलाव लाने का आरोप लगाते रहे हैं। ताइपे के अनुसार, बीजिंग ताइवान को अलग-थलग करने के लिए उसपर कूटनीतिक दबाव बढ़ाने के साथ-साथ अपनी सैन्य-ताकत प्रदर्शित करने की कवायद को बढ़ा दिया है, जैसाकि उसने पिछले साल अमेरिकी ‘हाउस स्पीकर’ नैन्सी पैलोसी की ताइवान यात्रा के
बाद इस द्वीपीय देश के इर्द-गिर्द युद्धाभ्यास किया था। बीजिंग के अनुसार, ताइपे में सत्तारुढ़ डीपीपी वाशिंगटन की सहायता से वास्तविक आजादी हासिल करने का इरादा दर्शाकर इस इलाके में तनाव बढ़ा रहा है। वर्ष 2015 में शी जिनपिंग और मा यिंग-जेउ के बीच की ऐतिहासिक बैठक के बाद बीजिंग का पिछले केएमटी शासन के साथ मधुर संबंध था। शी सरकार ने अमेरिका को चेतावनी दी है कि ताइवान चीन के लिए अभी भी लाल लकीर (रेड लाइन) बनी हुई है। लेकिन दोनों देशों के बीच बिगड़ते संबंधों के बीच ताइवान एक बार फिर संघर्ष बिन्दु के रुप में उभरा है, जैसा कि पिछल साल पेनोसी की यात्रा के बाद देखा गया था। बीजिंग जिसे वह पुनर्एकीकरण कहता है, उसके लिए अभी भी बल प्रयोग करने से इंकार कर रहा है, तो क्या इसे वाशिंगटन या ताइपे को लाल लकीर के रुप में देखना चाहिए। दुनिया के दो सबसे बड़ी शक्तियों के बीच तकरार ने एक जीवंत और समृद्ध द्वीप के दो करोड़ तीस लाख लोगों को बीच में फंसा कर रख दिया है।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
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