चर्चा और अनुशासन: जगदीप धनखड़ का विशेषाधिकार समिति को निर्देश 

संसद वह मंच है जहां सरकार की जवाबदेही लोगों के प्रति होती है

Published - February 22, 2023 11:26 am IST

राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को उपसभापति और जद(यू) सांसद हरिवंश की अध्यक्षता वाली विशेषाधिकार समिति को 12 विपक्षी सांसदों द्वारा “अनुचित आचरण” की जांच करने का निर्देश दिया, जिसकी वजह से बजट सत्र के पहले चरण में कई बार सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 85 मिनट के संबोधन के दौरान विपक्ष लगातार नारेबाजी करता रहा, जिसे सदन की कार्यवाही का सीधा प्रसारण करने वाले संसद टीवी ‘ब्लैक आउट’ कर दिया। कैमरा विपक्षी सांसदों की तरफ मुड़ा ही नहीं। इससे पहले, एक भाजपा सांसद द्वारा की गई शिकायत पर कार्रवाई करते हुए श्री धनखड़ ने कांग्रेस सांसद रजनी पाटिल को सदन से निलंबित कर दिया। उन पर कथित रूप से मोबाइल फोन पर कार्यवाही रिकॉर्ड करने का आरोप था। कांग्रेस का आरोप है कि इसमें वाजिब प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और उन्हें अपनी स्थिति स्पष्ट करने का मौका देने वाला नोटिस नहीं दिया गया। श्री धनखड़ ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के 88 मिनट के भाषण को बीच में कई बार रोका। विपक्ष इस बात पर कड़ा ऐतराज जताया जिसमें सदन में भाषणों के दौरान की गई टिप्पणियों को सभापति ने बार-बार “प्रमाणित” करने का निर्देश दिया। श्री खड़गे ने कहा कि “अगर विपक्षी सांसद से यह उम्मीद की जाती है कि वह सदन के पटल पर कोई मुद्दा उठाने से पहले उसकी पूरी जांच-पड़ताल करे और सारा सबूत इकट्ठा करके दे, तो यह सरकारी व्यवस्था के उलट होगा”। 

राज्यसभा में श्री खड़गे के भाषण को छह जगहों से काटकर रिकॉर्ड से हटा दिया गया, जबकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लोकसभा में दिए गए भाषण को 18 जगह काटा गया। संसद वह मंच है जहां विपक्ष की जिम्मेदारी सरकार से सवाल पूछने की होती है और उन सवालों का जवाब देने की जिम्मेदारी मंत्रिपषद की होती है। इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए समय के साथ-साथ कई संसदीय नियम और मानदंड विकसित हुए। अगर सरकार की जवाबदेही तय करने के लिए विपक्ष को दंडित किया जाता है और सरकार को नियमों की ओट में छिपाया जाता है और मुद्दे को कमजोर किया जाता है, तो यह संसदीय लोकतंत्र का उपहास होगा। संसद में जो सवाल उठाए जाते हैं उनसे जुड़ी सारी जानकारी सरकार के पास होती है। किसी सांसद द्वारा उठाया गया कोई मुद्दा प्रामाणिक है या नहीं उसे स्पष्ट करने और उनकी किसी भी धारणा को स्पष्ट करने की जिम्मेदारी सरकार की है। यह अजीब है कि सरकार ने जनहित की कीमत पर निजी व्यावसायिक हितों की रक्षा करने के गंभीर आरोपों का जवाब नहीं दिया। वहीं, इनसे जुड़ा सवाल उठाने वाले सांसदों को अनुशासन के नाम पर निलंबन का सामना करना पड़ रहा है। संसदीय अनुशासन का तकाजा है कि इसमें चर्चा हो और सरकार सवालों का जवाब दे। 

This editorial has been translated from English, which can be read here. 

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