रूस की मुख्य भूमि को क्रीमिया प्रायद्वीप से जोड़ने वाले कर्च जलडमरुमध्य पुल पर हुए धमाके के बाद यूक्रेन के शहरों पर बड़े पैमाने पर रूसी बमबारी से पता चलता है कि यूक्रेन युद्ध ऐसे खतरनाक कुचक्र में फंस गया है जहां से निकलने की कोई राह अभी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही। शनिवार को रूस द्वारा निर्मित पुल पर हुए धमाके का यूक्रेन में कई लोगों ने जश्न मनाया। राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के सलाहकार मिखायलो पोदोलीक ने कहा कि अभी तो यह “सिर्फ शुरुआत” है। लेकिन, अगले दिन रूस ने यूक्रेन पर 24 फरवरी को शुरू हुए इस युद्ध के बाद से लेकर अब तक का सबसे घातक और ताबड़तोड़ मिसाइल हमला किया। इसमें सैन्य और नागरिक बुनियादी ढांचे को निशाना बनाया गया। इस मिसाइल हमले ने न सिर्फ आठ महीने से चल रहे इस युद्ध में रूस की मारक क्षमता का प्रदर्शन किया, बल्कि यह भी दिखाया कि रूस को नागरिक जीवन और बुनियादी ढांचे की रत्ती भर परवाह नहीं है। यह रूस की हताशा की ओर भी इशारा करता है जिसकी सेना को बीते कुछ हफ्तों में कई बार नाकामयाबी झेलनी पड़ी है। लेकिन, यूक्रेन के अवाम को बर्बाद करने की ताकत के इस प्रदर्शन के अलावा इस हमले का रणनीतिक महत्व बहुत कम है। इस हमले से रूस को युद्धक्षेत्र के मोर्चे पर कुछ भी हासिल नहीं हुआ। इससे यूक्रेन और उसके सहयोगियों द्वारा रूसी हमले का जवाब देने का संकल्प कमजोर नहीं हुआ है। इसके उलट, दुनिया के सात औद्योगीकृत देशों के समूह ने यूक्रेन को “जब तक जरूरत है” तब तक के लिए निरंतर समर्थन का ऐलान कर दिया।
आमतौर पर, युद्ध एक पक्ष की एकतरफा जीत के साथ या फिर बातचीत के जरिए खत्म हो जाते हैं, लेकिन यूक्रेन युद्ध में इन दोनों पहलुओं की संभावनाएं इस वक्त दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहीं। रूस कम से कम यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी प्रांतों पर कब्जा चाहता है। इसने कुछ इलाकों पर कब्जा जरूर किया, लेकिन नाटो के समर्थन से यूक्रेनी सैनिकों ने उसकी बढ़त को थाम लिया है। यूक्रेन क्रीमिया सहित कब्जे वाली सभी जगह से रूसी सैनिकों को खदेड़ना चाहता है, जो फिलहाल व्यावहारिक नहीं दिख रहा। वहीं, अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मानदंडों को ताक पर रखते हुए यूक्रेन के चार प्रांतों पर कब्जा करने के रूस के राष्ट्रपति पुतिन के एकतरफा ऐलान ने शांति की संभावनाओं पर ग्रहण लगा दिया है। बातचीत का एक ही विकल्प है- युद्ध का जारी रहना, लेकिन यूरोप में दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से लेकर अब तक की सबसे खतरनाक जमीनी लड़ाई में जान-माल की बर्बादी के साथ-साथ परमाणु हमले की आशंकाएं भी बढ़ती जा रही हैं। पूरी दुनिया नहीं चाहती कि यह नौबत आए। यहां तक कि 1962 में जब सोवियत संघ की परमाणु मिसाइलें क्यूबा में थीं और अमेरिकी युद्धपोतों ने कैरेबियन सागर को अलग-थलग कर दिया था, तब भी कैनेडी और ख्रुश्चेव ने एक-दूसरे से बात की थी, पत्रों का आदान-प्रदान किया और ऐसे मिसाइल संकट को खत्म किया जिसने समूची दुनिया को परमाणु युद्ध के मुहाने पर ला खड़ा किया था। श्री पुतिन को सनक भरी धमकियों से बाज आना चाहिए और बातचीत के लिए कुछ ठोस प्रस्ताव पेश करना चाहिए। पश्चिम के उनके प्रतिद्वंद्वियों को भी बातचीत के लिए ऐसे हालात बनाने की दिशा में काम करना चाहिए ताकि पहले ही काफी तबाही मचा चुके इस संघर्ष का अंत हो सके।
This editorial has been translated from English, which can be read here.