ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की यह टिप्पणी कि स्कूली छात्राओं को जहर देना एक “माफ करने लायक गुनाह नहीं” है, दरअसल उन खबरों की पुष्टि है कि पिछले कुछ महीनों के दौरान इस इस्लामिक गणराज्य में हजारों लड़कियां जहर के हमलों का शिकार हुई हैं। कुख्यात नैतिकता पुलिस की हिरासत में ईरानी कुर्द महिला महसा अमिनी की मौत से भड़क उठने वाली महिलाओं के विरोध प्रदर्शन के बीच इस किस्म की पहली घटना नवंबर में पवित्र शहर क़ोम में सामने आई थी। तब से, ईरान के 31 प्रांतों में से कम से कम 25 में हजारों लड़कियां जहर के हमलों से कथित तौर पर प्रभावित हुई हैं। शुरू में इसको लेकर दो सिद्धांत थे। पहले सिद्धांत का मानना है कि यह स्कूल जाने वाली लड़कियों के खिलाफ धार्मिक चरमपंथियों की करतूत हो सकती है। जबकि दूसरा सिद्धांत इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारक देखता है। कम से कम कुछ मामलों में। श्री खामेनेई की टिप्पणी से यह पता चलता है कि अधिकारी रासायनिक विषाक्तता की संभावना पर गंभीरता से गौर कर रहे हैं। इन खबरों ने घबराहट पैदा कर दी है और देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शनों को जन्म दे दिया है। शायद इन्हीं वजहों ने सर्वोच्च नेता को यह बयान देने के लिए प्रेरित किया है। श्री खामेनेई ने सोमवार को कहा कि शासन इन घटनाओं के जिम्मेदार लोगों को कतई नहीं बख्शेगा। लेकिन उसी दिन, जहर देने के मामलों को उजागर करने वाले क़ोम शहर के पत्रकार अली पौरताबाताबेई की गिरफ्तारी की खबर सामने आई।
तालिबान के शासन वाले अफगानिस्तान के उलट, ईरान में लड़कियों को स्कूल जाने से रोकने का इतिहास नहीं रहा है। 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद, शासन ने महिलाओं पर पाबंदियां आयद तो कीं लेकिन उनकी शिक्षा और कामकाजी जिंदगी में बतौर एक कामगार उनके शामिल होने को बढ़ावा दिया। विश्व बैंक के मुताबिक, महिला साक्षरता 1976 में 26 फीसदी से बढ़कर 2021 में 85 फीसदी हो गई। एक दशक से भी अधिक समय से ईरान के विश्वविद्यालयों में महिलाओं की तादाद लगातार पुरुषों से अधिक रही है। इस इतिहास को देखते हुए स्कूली छात्राओं को निशाना बनाया जाना बेहद ही हैरतअंगेज है। ऐसा क्रांति के चरम के दौर में भी नहीं हुआ था। लिहाजा ऐसी घटनाएं अधिकारियों को कार्रवाई के वास्ते झकझोर देने के लिए काफी होनी चाहिए। यह महज एक संयोग नहीं हो सकता कि स्कूली छात्राओं को ऐसे समय में निशाना
बनाया जा रहा है, जब स्कूली छात्राओं सहित हजारों महिलाएं अधिक आजादी की मांग कर रही हैं। शासन की प्रतिक्रिया क्रूर रही है। लेकिन मुल्लाओं को इस बात का अहसास होना चाहिए कि अगर आर्थिक और सामाजिक संकट बरकरार रहा, तो ये हालात पहले से ही विरोध की लहरें झेल रहे उनके निजाम को और कमजोर कर देंगे। देश के युवाओं और इसके उम्रदराज क्रांतिकारियों के दरमियान बढ़ती खाई के बीच जहर के हमले जैसी घटनाएं स्थिति को और खराब ही करेंगी।
शासन को इन हमलों के जिम्मेदार लोगों को न्याय के कठघरे में लाना चाहिए। लेकिन बड़ी समस्या ईरान की व्यवस्था में सुधारों का अभाव और राज्य एवं समाज के बीच बढ़ती खाई की है। विरोध की ये लहरें शासन के लिए जितनी चुनौती है, उतनी ही राजनीतिक सुधारों को आगाज करने का एक मौका भी। मुल्लाओं को इन चुनौतियों से निपटने के लिए राजनीतिक सुधारों को अपनाना चाहिए।
This editorial has been translated from English, which can be read here.