यूक्रेन पर कथित तौर पर ‘डर्टी बम’ धमाके का सिलसिला शुरू करने की योजना बनाने का रूस का आरोप, यह बताता है कि यूक्रेन संघर्ष किस तरह एक नाटकीय घटनाक्रम की ओर मुड़ रहा है। रूस के रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने राजनाथ सिंह समेत दुनिया भर में अपने कई समकक्षों से बातचीत की और यूक्रेन पर संभावित “परमाणु आतंकवाद” फैलाने का आरोप लगाया। डर्टी बम कोई परमाणु बम नहीं होता, बल्कि यह रेडियोधर्मी सामग्री वाला एक पारंपरिक विस्फोटक उपकरण है, जिसके धमाके से दशकों तक कोई इलाका निर्जन भूमि में तब्दील हो सकता है। यूक्रेन और उसके पश्चिमी समर्थकों ने रूस के आरोपों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कई झटके झेलने के बाद, रूस अब इस हमले को लेकर निराधार दावे कर रहा है। आर-पार के इस युद्ध से उठे धुंध के पीछे क्या चल रहा है इसका पता लग पाना मुश्किल है, लेकिन डर्टी बम और परमाणु आतंकवाद की चर्चा गलत संकेत दे रही है। सन 1945 में जापान पर अमेरिका के परमाणु हमले के बाद से मोटे तौर पर दुनिया ने परमाणु हमले को वर्जित माना है। यहां तक कि 1962 में जब सोवियत संघ और अमेरिका टकराव के कगार पर थे, तब भी उनके नेता बातचीत के जरिए उस संकट को सौहार्दपूर्ण तरीके से खत्म करने में कामयाब रहे। लेकिन दुर्भाग्य से, अपने देश की रक्षा के लिए व्लादिमीर पुतिन की ओर से सभी उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करने की धमकी और जो बाइडेन की ओर से "परमाणु जनसंहार" की चेतावनी इस संघर्ष में परमाणु हमले के विकल्प को सामान्य बनाने की दिशा में ले जा रही है और लगातार यह संघर्ष उकसावे के कुचक्र में फंसता जा रहा है।
इससे भी ज्यादा हैरतअंगेज यह है कि भले ही युद्ध के हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हों, लेकिन किसी भी पक्ष द्वारा बातचीत शुरू करने की दिशा में कोई सचेत प्रयास नहीं किया जा रहा। रूस का कहना है कि वह बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन इसके लिए उसने कोई ठोस प्रस्ताव पेश नहीं किया है। बातचीत के उसके दावे पर भरोसा नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब उसने आंशिक कब्जे वाले यूक्रेन के चार क्षेत्रों को अपनी सीमा में मिलाने की घोषणा की हो। यूक्रेन का कहना है कि वह रूस के साथ तब तक बातचीत नहीं करेगा जब तक कि श्री
पुतिन सत्ता में हैं और वह तब तक लड़ेगा जब तक क्रीमिया समेत यूक्रेन के सभी क्षेत्र रूसी कब्जे से मुक्त नहीं हो जाते। यूक्रेन के पश्चिमी समर्थकों का कहना है कि “चाहे जितनी देर भी चले”, वे यूक्रेन के प्रतिरोध का समर्थन करना जारी रखेंगे। एक तरफ, कोई भी पक्ष एक इंच जमीन नहीं छोड़ना चाहता, दूसरी तरफ तनाव की गतिशीलता अपने अंदाज में बढ़ रही है और यह पूरी दुनिया को अपनी जद में लेती जा रही है। आठ महीने के इस युद्ध ने पहले ही काफी आर्थिक और मानवीय आपदा खड़ी कर दी है। तिस पर, रूस और नाटो जैसी दो परमाणु ताकतों के बीच सीधे टकराव की आशंका भी बढ़ती जा रही है। गंभीर बातचीत शुरू करने से पहले इस युद्ध के सभी हितधारक आखिरकार और क्या चाहते हैं? उन्हें यह समझना चाहिए कि रूस-नाटो युद्ध की खुली संभावना की स्थिति का और बिगड़ना, पूरी दुनिया के लिए विनाशकारी साबित होगा। असल में, भू-राजनीतिक लक्ष्यों से कहीं बड़ी चीज दांव पर लगी हुई है। परमाणु हमलों और बदले की बयानबाजियां फौरन बंद होनी चाहिए और युद्ध को खत्म करने के लिए रूस, यूक्रेन और पश्चिमी देशों को बातचीत शुरू करनी चाहिए। इसके अलावा, दूसरे सारे विकल्प प्रलय की ओर ले जाएंगे।
This editorial has been translated from English, which can be read here.